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- Know The Effect Of Karnataka Result In Bihar, Opposition Unity Will Be Strong If Congress Wins, Nitish’s Problems Will Increase If He Loses
पटनाएक घंटा पहलेलेखक: शंभू नाथ
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देश की दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस जब कर्नाटक चुनाव में बिजी थी, तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे थे। वे अलग-अलग राज्यों का दौरा कर वहां के क्षेत्रीय पार्टियों के मुखिया से मुलाकात कर रहे हैं। सीएम नीतीश 2024 लोकसभा चुनाव से पहले गैर बीजेपी दलों को एक साथ एक मंच पर लाने की कोशिश में लगे हैं।
इधर, आज कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने वाले हैं। कर्नाटक चुनाव के नतीजे नीतीश कुमार के विपक्षी एकता मुहिम के बेहद अहम पड़ाव साबित हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस चुनाव नतीजे से विपक्षी एकता को लेकर नीतीश कुमार का कद और रोल भी तय हो जाएगा।
शायद यही वजह है कि देश भ्रमण पर निकले नीतीश कुमार ने कर्नाटक चुनाव नतीजे के बाद गैर बीजेपी दलो या कहें कि भाजपा विरोधी दलों की मीटिंग बुलाने का फैसला किया है। ये मीटिंग पटना में ही होगी। इसकी घोषणा वे पहले ही कर चुके हैं। हालांकि, मीटिंग कब होगी इसकी तारीख अभी तय नहीं की गई है।
कर्नाटक चुनाव के नतीजे बिहार की सियासत क्या असर डालेगा …इसे समझने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से बात की। पढ़ें इस पर एक्सपर्ट क्या कहते हैं…।
सबसे पहले समझिए अगर कांग्रेस बहुमत के साथ जीतती है तो क्या असर होगा
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक जीतने के लिए काफी मेहनत की है। पार्टी वहां सरकार बनाने के लिए पूरी शिद्दत से जुटी हुई है। अगर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं और वहां सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो इससे पार्टी को नई ताकत मिलेगी।
कांग्रेस की यह जीत से अगले 6 महीने में दूसरे राज्यों में होने वाली विधानसभा चुनाव के लिए बूस्टर का काम करेगी। हालांकि, सीनियर जर्नलिस्ट अरविंद मोहन का मानना है कि कर्नाटक एक ऐसा राज्य है, जहां किसी भी पार्टियों की जीत का असर दूसरे राज्यों में उतना दमदार नहीं होता। यही वजह है कि कर्नाटक में लगातार जीत के बाद भी आजतक बीजेपी दक्षिण के अन्य राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल में उतनी मजबूत नहीं हो पाई।

कांग्रेस की जीत का देश की विपक्षी राजनीति पर पड़ेगा सकारात्मक असर
इधर, सीनियर जर्नलिस्ट उर्मिलेश का कहना है कि अगर कर्नाटक में कांग्रेस जीतती है तो इसका असर केवल कांग्रेस पर ही नहीं पूरे विपक्ष की राजनीति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस जीत से विपक्ष की मोर्चेबंदी को नई ताकत मिलेगी। साथ ही भाजपा के नेतृत्व पर भी सवाल उठेंगे।
उर्मिलेश के मुताबिक, ये मोर्चाबंदी जितनी ताकतवर होगी, 2024 के चुनाव में भाजपा के खिलाफ विपक्ष उतना ही मजबूत बनेगा। क्या कांग्रेस की जीत से नीतीश कुमार को नुकसान होगा? इस सवाल पर जर्नलिस्ट उर्मिलेश ने कहा कि विपक्ष में नीतीश कुमार की बड़ी हैसियत है।
नीतीश कुमार बिहार से आते हैं, जहां लोकसभा की 40 सीटें हैं। वे बिहार में आरजेडी और लेफ्ट के साथ सफल गठबंधन में सरकार चला रहे हैं। इनका सीधा असर हिन्दी भाषी राज्यों में पड़ेगा। अभी तक जो तस्वीर है वो संयुक्त नेतृत्व की है। नीतीश कुमार उन लोगों में शामिल हैं जो राष्ट्रीय स्तर बीजेपी के खिलाफ प्रस्तावित नेता के रूप में उभर सकते हैं। हालांकि, नेता कौन होगा इसपर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है। क्योंकि किसी पार्टी ने भी अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

सीएसडीएस के संजय कुमार और वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं कि कांग्रेस की जीत के बाद विपक्षी पार्टियों की मोर्चेबंदी आसान होगी।
कांग्रेस की जीत से मोर्चेबंदी तो आसान होगी, लेकिन झुकाना मुश्किल
CSDS (सेंट्रल फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपमेंट सोसाइटी) के प्रोफेसर संजय कुमार ने बताया कि कांग्रेस की जीत के बाद विपक्षी दलों की मोर्चाबंदी में आसानी होगी। ये भी तय है कि कांग्रेस की जीत के बाद सीएम नीतीश अभी से ज्यादा एक्टिव हो जाएंगे। क्योंकि वो जितने नेताओं से मिल रहे हैं, इसमें कहीं न कहीं कांग्रेस की सहमति है। उन्होंने राहुल गांधी और सोनिया गांधी की रजामंदी के बाद ही मुलाकातों का दौर तेज किया है।
नीतीश की इस मुहिम से ऐसी विपक्षी पार्टियां जो कांग्रेस से परहेज करती रही हैं, वो पार्टियां भी कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद आसानी से महागठबंधन के साथ जुड़ सकती हैं। संजय कुमार कहते हैं कि अगर कांग्रेस जीतती है तो मोर्चेबंदी में वो अपने कई शर्तों को जोड़ेगी। अभी कांग्रेस कोई भी कठिन शर्त लगाने के मोड में नहीं है, लेकिन अगर जीतती है तो वो एक ऐसी राष्ट्रीय पार्टी है और जो इतनी आसानी से किसी पार्टियों की बातों में नहीं आएगी।

अब जानिए कर्नाटक में बीजेपी की जीत असर…
मोदी की अपराजेय छवि और मजबूत होगी, नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ेगी
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी कर्नाटक को दक्षिण के राज्यों में एंट्री गेट के तौर पर देखती है। कर्नाटक चुनाव नतीजे के मद्देनजर सिर्फ राज्य की बीजेपी सरकार दांव पर नहीं है। बल्कि इस बार कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।
बीजेपी ने चुनाव से पहले पूरी सरकार ही बदल दी थी। इसके अलावा कई सीटिंग विधायकों के टिकट भी काट दिए गए। कर्नाटक भाजपा इसलिए भी नहीं खोना चाहेगी, क्योंकि यहां की 28 लोकसभा सीटों में से अभी 25 पर बीजेपी का कब्जा है। अगर बीजेपी जीतती है तो देश में नरेंद्र मोदी की अपराजेय छवि और मजबूत होगी।
बिहार की सियासत को करीब से समझने वाले नलिन वर्मा कहते हैं कि कर्नाटक में अगर बीजेपी जीतती है तो विपक्षी एकजुटता को करारा झटका लगेगा। कांग्रेस और कमजोर होगी, लेकिन इस मुहिम की अगुआई कर रहे नीतीश कुमार मजबूत होंगे। हालांकि, इसके बावजूद उनके मुश्किलें बढ़ेंगी। क्योंकि 2024 में बीजेपी को हराने के लिए उन्हें और ज्यादा ताकत झोंकनी पड़ेगी।
नलिन वर्मा ने कहा कि ये लड़ाई नरेंद्र मोदी को रिप्लेस करने की है। इसके लिए जरूरी है कांग्रेस का मजबूत रहना। कांग्रेस जितना कमजोर होगा 2024 की लड़ाई पार्टी के लिए उतनी ही कमजोर होगी।

नीतीश भी जानते हैं कि किस-किस को कांग्रेस के साथ लाने में आएगी मुश्किलें
सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद नीतीश लगातार नेताओं से मिल रहे हैं। बीजेपी विरोधी लगभग सभी राज्यों के सीएम से वे मुलाकात कर चुके हैं। इस मुलाकात के बाद उन्हें भी इस बात का अंदाजा लग चुका होगा कि कांग्रेस के साथ कि कौन-कौन सी पार्टियां एक साथ एक मंच पर आएंगी।
कई ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो किसी भी सूरत पर कांग्रेस को अपने राज्य में विस्तार करते हुए नहीं देखना चाहेंगे। इसमें सबसे पहला नाम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आता है। उनकी कांग्रेस के साथ मतभेद जगजाहिर है।
इसके अलावा अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव भी कांग्रेस के साथ आने में परहेज कर सकते हैं। ये वो नेता हैं जिनका अपने राज्य में कांग्रेस से पटरी नहीं बैठती।
एक्सपर्ट कहते हैं कि ऐसे में अगर कांग्रेस कर्नाटक खोती है ये क्षेत्रीय पार्टियां किसी भी सूरत में कांग्रेस को गठबंधन का नेता मानने को तैयार नहीं होंगे। हालांकि, नीतीश कुमार भी ये कहते रहे हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री पद का कोई लालच नहीं है।
नवीन ने पत्ते नहीं खोले, ममता पटना में तय करेगी…यही नीतीश की चुनौती
कर्नाटक चुनाव के नतीजे से पहले ही दो बड़े क्षेत्रीय पार्टियों से नीतीश कुमार को निराशा हाथ लग चुकी है। पहले ममता बनर्जी नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद कुछ भी स्पष्ट बोलने से बचती रहीं। उन्होंने कहा कि बिहार में विपक्षी दलों की बैठक हो इसके बाद इस पर चर्चा हो।
वहीं ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने तो मामले को लगभग खारिज ही कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया 2024 के लिए तीसरे मोर्चे की जरूरत नहीं। नीतीश से मुलाकात के दो दिन बाद उन्होंने PM मोदी से भी मुलाकात की थी।
ऐसे में नीतीश के सबसे बड़ी चुनौती ये रहेगी इन नेताओं को कांग्रेस के साथ एक मंच पर कैसे लाया जाए?
प्रोफेसर संजय कुमार का मानना है कि केवल ममता नहीं आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और भारत राष्ट्र समिति के के चंद्रशेखर राव को भी कांग्रेस के साथ मना पाना मुश्किल होगा।

बिहार की सियासत को करीब से समझने वाले नलिन वर्मा कहते हैं कि अगर बीजेपी जीतती है तो विपक्षी एकजुटता को करारा झटका लगेगा। वहीं अरविंद मोहन कहते हैं कि सारा खेल नंबर्स का है।
250 सीटों पर बीजेपी से सीधा मुकाबला करने की कोशिश
नीतीश कुमार बार-बार इस बात को दोहराते रहे हैं कि बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए उन्हें सिर्फ 100 सीटों पर हराना है। इसके लिए जरूरी है कि ऐसे राज्य जहां क्षेत्रीय पार्टी की सरकार है, वहां महागठबंधन बनाया जाए और बीजेपी के खिलाफ बस एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाए। इसमें मुख्य रूप से यूपी की 80, बिहार की 40, बंगाल की 42, महाराष्ट्र की 48, दिल्ली 7, पंजाब की 13 और झारखंड की 14 लोकसभा सीटें शामिल हैं।