Home Bihar मौत पर मुखाग्नि का संकट: परिवार को खोने के बाद परिजनों से अंतिम संस्कार का सौदा, अस्पताल में सब कुछ खोने के बाद घाट पर गिड़गिड़ाते हैं परिजन

मौत पर मुखाग्नि का संकट: परिवार को खोने के बाद परिजनों से अंतिम संस्कार का सौदा, अस्पताल में सब कुछ खोने के बाद घाट पर गिड़गिड़ाते हैं परिजन

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मौत पर मुखाग्नि का संकट: परिवार को खोने के बाद परिजनों से अंतिम संस्कार का सौदा, अस्पताल में सब कुछ खोने के बाद घाट पर गिड़गिड़ाते हैं परिजन

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पटना19 मिनट पहले

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पटना के गुलबी घाट पर शव के साथ परिजन। - Dainik Bhaskar

पटना के गुलबी घाट पर शव के साथ परिजन।

  • हर घाट पर है यही हाल, परेशान हैं कोरोना से मौत पाने वालों के परिजन
  • घाटों पर प्रशासनिक अधिकारियों की तैनाती की मांग

कोरोना से जान गंवाने वालों के लिए मुखाग्नि का संकट हो रहा है। परिवार अपनों को खोने के बाद घाट पर गिड़गिड़ाता है। अस्पताल में सब कुछ लुटने के बाद परिवार वाले घाट पर गिड़गिड़ाते रहते हैं। दैनिक भास्कर ने जब पटना के गुलबी घाट पर कोरोना से मौत के बाद परिजनों की पीड़ा जानने की कोशिश की तो दिल को दहलाने वाला सच सामने आया। कोरोना से मरने वालों की बॉडी भी घाट पर तभी जलती है, जब परिवार वाले कर्मचारियों की डिमांड पूरी कर देते हैं।

मां की मौत के बाद टूटा बेटा

पटना मेडिकल कॉलेज में एक कोरोना संक्रमित महिला की मौत हो गई। पूरा परिवार अनाथ हो गया। एक सप्ताह से अस्पताल में भर्ती मां के ठीक होने का हर पल इंतजार करता बेटा वार्ड के बाहर से नहीं हिला। वह हर पल यही जानने की कोशिश करता रहा कि मां की रिपोर्ट निगेटिव आ जाए और वह उसे लेकर घर चला जाए। परिवार को भी बड़ी उम्मीदें थी, लेकिन, 7 दिन बाद कोरोना वार्ड से खबर आई तो मौत की। जिसके बाद पूरा परिवार पूरी तरह से टूट गया।

कोरोना ने मां बेटे के बीच अंतिम समय में बना दी दूरी

कोरोना के कारण मां बेटे में संक्रमण के बाद जो दूरी बनी वह कम नहीं हुई। इलाज से लेकर घाट तक दूरी बनी रही। बेटे का रो रोकर बुरा हाल था लेकिन कोरोना के कारण कोई चाह कर भी मदद नहीं कर सकता था। हॉस्पिटल से ही शव पैक कर एम्बुलेंस से गुलबी घाट पहुंच गया। लेकिन यहां अंतिम संस्कार में भी मां के लिए बेटे से सौदा किया गया।

पैर पकड़कर गिड़गिड़ाया बेटा, बिना पैसा दिए नहीं उठी लाश

PMCH से लाश गुलबी घाट पहुंच गई, लेकिन, यहां कोई हाथ लगाने को तैयार नहीं था। एम्बुलेंस से उतारकर शव को जमीन पर रखा गया था लेकिन कर्मचारी हाथ इसलिए नहीं लगा रहे थे कि उन्हें पैसा नहीं मिल रहा था। मां के इलाज में टूटे बेटे के पास इतना पैसा नहीं था कि वह डिमांड पूरी कर पाता। कर्मचारी ने 5 हजार रुपए की डिमांड की थी, पैसा नहीं होने से बेटा कर्मचारी के आगे पैर पकड़कर बैठ गया और बोला बस मां को मुखाग्नि दे दीजिए, लेकिन बेटे की इस तड़प का कर्मचारी पर कोई असर नहीं पड़ रहा था। वह 5 हजार की जिद किए जा रहा था। आसपास मौजूद लोगों को भी यह देख तरस आ गया और वह भी कर्मचारी से बोलने लगे, लेकिन, इसका भी कोई असर नहीं पड़ा। बेटे के साथ एक रिश्तेदार ने जब पैसा निकालकर दिया तो कर्मचारी अंतिम संस्कार के लिए तैयार हुआ। लगभग 15 से 20 मिनट तक कोरोना से हुई मौत में महिला की डेडबॉडी जमीन पर ऐसे पड़ी रही।

अंतिम संस्कार में प्रशासन फेल

काेरोना से मरने वालाें के अंतिम संस्कार में प्रशासनिक सिस्टम पूरी तरह से फेल है। शव का अंतिम संस्कार प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। लेकिन, इसमें हर तरह से सौदा किया जा रहा है। नियम है कि कोरोना से हुई मौत वाली डेडबॉडी को घाट पर राेका नहीं जाए। एम्बुलेंस से शव के पहुंचने के साथ ही उसका अंतिम संस्कार जितना जल्दी हो सके कर दिया जाए। घाट पर शव को अधिक समय तक रखने से मना किया गया है। इसके बाद भी परिवार वालों को घाट पर बड़ी पीड़ा दी जा रही है। जब तक घाट पर प्रशासनिक अधिकारियों की तैनाती नहीं होगी, उनकी निगरानी में शव को नहीं डिस्पोज किया जाएगा तक तक यह खेल चलता रहेगा। लोगों को कोरोना से पीड़ा मिलने के बाद घाट पर भी एक-एक रुपए के लिए नोचा जाएगा।

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