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आरजी कर अस्पताल मामला: प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के दोषी संजय रॉय को उम्रकैद, ₹50,000 का जुर्माना

Source : BT

आरजी कर अस्पताल मामला: प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के दोषी संजय रॉय को उम्रकैद, ₹50,000 का जुर्माना |

संजय रॉय, जो कोलकाता में एक पुलिस स्वयंसेवक था, को आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की 31 वर्षीय प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में उम्रकैद और ₹50,000 जुर्माने की सजा सुनाई गई है। यह घटना 9 अगस्त 2024 को हुई थी, जब पीड़िता का शव अस्पताल परिसर में एक पानी की टंकी में पाया गया था। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश और विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया।

मुख्य विवरण:

  1. परिस्थितिजन्य साक्ष्य:
    • यह सजा पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दी गई, क्योंकि प्रत्यक्षदर्शी मौजूद नहीं थे।
    • केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने इस मामले की जांच की और आरोपी के लिए फांसी की मांग की, लेकिन अदालत ने पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में उम्रकैद की सजा दी।
  2. फैसले पर प्रतिक्रिया:
    • पीड़िता का परिवार: पीड़िता के माता-पिता इस फैसले से असंतुष्ट हैं। उनका मानना है कि इस अपराध में और भी लोग शामिल हो सकते हैं।
    • आरोपी का पक्ष: संजय रॉय ने खुद को निर्दोष बताया है और कहा है कि वह ऊपरी अदालत में अपील करेगा।
  3. समाज पर प्रभाव:
    • इस मामले ने चिकित्सा समुदाय के बीच व्यापक आक्रोश पैदा किया। लगभग 3 लाख रेजिडेंट डॉक्टरों ने अस्पतालों में सुरक्षा बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल में भाग लिया।
    • महिला अधिकार संगठनों ने “रात reclaim” जैसे मार्च आयोजित किए, ताकि महिलाओं के खिलाफ हिंसा और सार्वजनिक स्थानों पर उनकी सुरक्षा की कमी पर ध्यान आकर्षित किया जा सके।
  4. घटना की पृष्ठभूमि:
    • पीड़िता एक होनहार मेडिकल प्रशिक्षु थी, जो रात की ड्यूटी कर रही थी। 9 अगस्त को वह गायब हो गई और बाद में उसका शव पानी की टंकी में मिला।
    • फोरेंसिक साक्ष्यों, विशेष रूप से डीएनए परीक्षण, ने आरोपी को अपराध स्थल से जोड़ा, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला मजबूत हुआ।
  5. सार्वजनिक और कानूनी बहस:
    • इस मामले ने भारत में महिलाओं की सुरक्षा, नागरिकों की रक्षा में कानून प्रवर्तन की भूमिका और सार्वजनिक संस्थानों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुधार की आवश्यकता पर बहस को फिर से जीवित कर दिया है।
    • कानूनी विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर अत्यधिक निर्भरता की आलोचना की और अधिक मजबूत जांच प्रक्रियाओं की मांग की।

यह मामला महिलाओं की सुरक्षा, पीड़ितों को न्याय दिलाने और कार्यस्थलों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण चर्चा का केंद्र बना हुआ है।

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