आखिर क्या है यूपी कनेक्शन: कुछ तो गड़बड़ है; दागी पर ही आया दिल, बीआरएबीयू ने टेंडर में दोगुने से अधिक देकर एजेंसी से किया करार

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मुजफ्फरपुरएक घंटा पहलेलेखक: शिशिर कुमार

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सबसे बड़ा सवाल कि सारे ऐसे काम खास कंपनी काे ही क्याें, शर्तें ऐसी कि बाकी सब ठेके से बाहर हाे जाएं।

  • संयोग ऐसा कि बिहार विवि काे भी मगध विवि का काम लेने वाली लखनऊ की कंपनी ही पसंद

भ्रष्टाचार मामले में मगध विश्वविद्यालय के कुलपति के विशेष निगरानी इकाई (एसवीयू) की गिरफ्त में आने के बाद बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर भी चर्चा में है। वजह कॉपी खरीद और प्रिंटिंग का उत्तर प्रदेश कनेक्शन है। यह निहायत संयोग है या फर्जीवाड़ा भी कि बीआरए बिहार विवि काे भी लखनऊ की वही आरोपित एक्सएलआईसीटी सॉफ्टवेयर प्रालि. कंपनी भा गई, जिसे मगध विवि में परीक्षा संबंधी तमाम गोपनीय कार्य दिए गए। वह भी एक अन्य ठेकेदार से दोगुने से भी अधिक दर पर। काॅपी, क्वेश्चन, ओएमआर शीट, एडमिट कार्ड, मार्कशीट हाे या डिग्री सभी के लिए पिछले साल विवि ने टेंडर निकाला।

चार ठेकेदारों ने ऑनलाइन टेंडर भरा। लेकिन, विवि की शर्तें ही ऐसी थीं कि कम दर देने वाले ठेकेदार भी बाहर हाे गए। टेंडर में दिशा इंटरप्राइजेज ने प्रति कॉपी 4.50 रुपए की दर भरी थी। जबकि एक्सएलआईसीटी सॉफ्टवेयर ने तकरीबन साढ़े 9 रुपए की दर। प्रति ओएमआर शीट 1.90 रुपए दर के बदले लखनऊ की कंपनी की दर तकरीबन डेढ़ गुना थी। अन्य सामग्री और कार्याें के लिए भी इसी तरह के अंतर के बाद भी विवि की 10 कराेड़ सालाना टर्नओवर वाली शर्त के कारण दिशा इंटरप्राइजेज बाहर हाे गई। प्रति ओएमआर शीट किसी तरह भी 3 रुपए खर्च नहीं आ सकता।

क्याेंकि, बनाने पर खर्च 80 पैसे प्रति शीट और 20% मुनाफा जाेड़ लें, ताे 96 पैसा आता है। अन्य ऑफिशियल खर्च जाेड़ लिया जाए ताे अधिकतम 1.20 रु. होगा। यह भी संयोग ही कहा जाएगा कि 4 ठेकेदाराें में 3 यूपी के ही थे। एक काे काम मिला। जानकार बताते हैं शर्तें ही ऐसी रखी गईं कि चहेते काे ही ठेका दिया जा सके।

बिहार विवि के प्राे. विजय कुमार ने मगध विवि में 15 कराेड़ का भुगतान राेका ताे पद से ही छुट्टी
मगध विश्वविद्यालय में कराेड़ाें रुपए के बंदरबांट मामले में एसवीयू जांच चल रही है। प्रिंटिंग व कॉपी खरीद जैसे मामलों में एक्सएलआईसीटी सॉफ्टवेयर भी जांच के दायरे में है। कंपनी ने काम के बाद एकमुश्त 15 कराेड़ भुगतान के लिए तत्कालीन कुलसचिव एवं बीआरएबीयू के प्राे. विजय कुमार के पास बिल भेजा था। उन्होंने फाइल देख टेंडर, एग्रीमेंट की काॅपी, वर्क ऑर्डर आदि प्रक्रिया का पालन नहीं हाेने के कारण भुगतान पर राेक लगा दी। पता चला कि एजेंसी से काेई एस्टीमेट या कोटेशन नहीं मांगा गया।

उसने जाे बिल दिया, उसी काे प्रस्ताव मान मुहर लगा दी गई। तत्कालीन कुलसचिव डाॅ. विजय कुमार के अनुसार, वित्त पदाधिकारी और वित्त सलाहकार ने भी इस पर आपत्ति की थी। इसके बाद मगध विवि के कुलपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद का दबाव पड़ने लगा। हालांकि, पिछले साल 10 मार्च काे शिकायत के बाद इन्हें पद से ही हटा दिया गया। वित्त सलाहकार का ट्रांसफर हाे गया और वित्त पदाधिकारी ने इस्तीफा दे दिया।

विजिलेंस के रडार पर अन्य विवि, 13 बिंदुओं पर सवाल, कुलसचिव बाेले- यहां कोई गड़बड़ी नहीं
निविदा प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी के खुलासे के बाद एसवीयू के रडार पर अन्य विश्वविद्यालय भी हैं। प्रिंटिंग, कॉपी खरीद, छात्रों की संख्या, आपूर्ति की स्थिति, आपत्ति करने वाले अधिकारी के नाम सहित 13 बिंदुओं पर जवाब मांगा गया है। हालांकि, कुलसचिव डाॅ. आरके ठाकुर ने कहा कि मिथिला विवि काे जारी पत्र के बारे में उन्हें पता है। लेकिन, बीआरए बिहार विवि में वह दाे दिनाें से पत्र ढूंढवा रहे हैं। लेकिन, अब तक नहीं मिला है। यहां किसी तरह की गड़बड़ी नहीं है। इसलिए पत्र आए, भी ताे जवाब दिए जाएंगे।

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