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पटना7 मिनट पहलेलेखक: शंभू नाथ
लोकसभा चुनाव से 20 महीने से पहले बिहार के CM नीतीश कुमार ने अपना पाला बदल लिया। BJP के साथ नाता तोड़कर अब वे महगठबंधन के नेता बने हैं। इस बीच लालू के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को PM पद का सबसे योग्य उम्मीदवार बता दिया है।
मंगलवार को राज्यपाल से मुलाकात के बाद तेजस्वी यादव ने नीतीश को PM पद का सबसे योग्य, अनुभवी और समझदार उम्मीदवार बतााय। जब तेजस्वी ये बयान दे रहे थे भीड़ में नारे लग रहे थे कि देश का PM कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो। हालांकि, वे इन सवालों को मुस्कुरा कर टाल गए।
ऐसे में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या वे 2014 की तरह एक बार फिर से विपक्ष का PM उम्मीदवार बनने की कोशिश करेंगे। आंकड़े बताते हैं कि बिना BJP के सपोर्ट के JDU का लोकसभा में अपना अस्तित्व बचाना भी मुश्किल हो जाता है। सबसे पहले बिना NDA के नीतीश कुमार के प्रदर्शन को समझिए…
क्या नीतीश कुमार 2014 की तरह एक बार फिर से विपक्ष का PM उम्मीदवार बनने की कोशिश करेंगे?
बिना BJP के चौथे नंबर की पार्टी बन गई थी JDU
2014 के लोकसभा चुनाव में BJP और JDU ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। BJP 30 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिनमें 22 सीट पर जीत दर्ज की। JDU 38 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र दो सीटें ही जीत पाई थी। 6 सीटें जीतकर LJP उससे ज्यादा बड़ी पार्टी बनी। 4 सीट जीतकर RJD तीसरे नंबर पर खिसक गई थी।
इसके अलावा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी जो अब नीतीश कुमार के साथ हैं) 3 सीट पर सिमट गई। एनसीपी महज 1 ही सीट जीत पाई। 2014 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी को 29.38 तो JDU को 15.78% वोट मिले थे। कांग्रेस 8.42% वोट पाने में कामयाब रही थी।
BJP के साथ आते ही JDU के सांसदों की संख्य 2 से 16 हुई
2019 का लोकसभा चुनाव JDU एक बार फिर से BJP के साथ लड़ी। लोकसभा की 40 सीटों में से BJP और JDU ने 50-50 के फॉर्मूले के हिसाब से 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा। बाकी सीटें LJP को दे दी गई थी। उन्हें 6 सीटें मिली थी। BJP और LJP ने अपनी सभी सीटें जीती थीं। वहीं, जेडीयू 17 में से एक सीट हार गई थी। उसके पास इस वक्त 16 सांसद हैं।
BJP के साथ आते ही JDU के सांसदों की संख्या 2 से 16 हुई।
अब इन 2 कारणों से जानिए कि बिहार में क्यों जरूरी है गठबंधन
1. 1995 के बाद किसी दल को अपने दम पर बहुमत नहीं
राजनीतिक विशलेषकों की माने तो बिहार में 1995 के बाद से कोई भी दल अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सका है। इसका सबसे बड़ा कारण पार्टियों को जाति-आधारित समर्थन है। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के मुताबिक एक जाति विशेष के अधिकतर मतदाता एक ही पार्टी को कई चुनावों से वोट करते रहे हैं। राज्य में पहले सवर्णों के वोट कांग्रेस को मिला करते थे।
2. बिहार के हर कोने में एक जाति का वर्चस्व है
बिहार में अधिकतर समुदाय समान रूप से फैले हुए नहीं हैं, इसलिए पार्टियों के हाथ मिलाने का यह एक और कारण है। राजपूत और यादवों को छोड़कर कुछ हद तक OBC की अन्य सभी जातियां राज्य भर में बिखरी हुई है। उदाहरण के लिए ब्राह्मण की बसावट उत्तर बिहार में अधिक है। जबकि भूमिहारों बसावट दक्षिण-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम बिहार में अधिक है। कोइरी और कुर्मियों के लिए दक्षिण बिहार को लेकर यही बात कही जा सकती है।
BJP को इसलिए रास आता है JDU का साथ
पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो पिछले 17 साल से बिहार की राजनीति में नीतीश और BJP के वर्चस्व का बड़ा कारण जातियों का नया गठजोड़ है। नीतीश कुमार ने दलित श्रेणी से महादलित अलग कर नई श्रेणी बनाई। OBC यानी पिछड़े वर्ग से EBC यानी अति पिछड़े वर्ग को निकाला और ये लिस्ट लंबी होती गई। ये सभी नीतीश के वोट बैंक बनते चले गए। साथ में सवर्ण बीजेपी के वोट। इस गणित से ये गठजोड़ इतना मजबूत रहा कि लालू की RJD सत्ता से बाहर रही।
बिहार में OBC निर्णायक भूमिका में
1990 से पहले का एक दौर था जब सवर्ण बिहार में निर्णायक भूमिका में थे। लेकिन अब OBC यानी पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग सरकार तय कर रहा है। यही कारण है कि सभी दल अब उसे अपने पाले में करने में जुटे हुए हैं। राज्य में OBC और EBC मिलाकर कुल 51% आबादी है।
इनमें यादव 14%, और कुर्मी 4%, कुशवाहा (कोइरी) 8% सबसे बड़ा वर्ग है। इसके बाद महादलित की कुल आबादी 16% है। वहीं मुस्लिम की आबादी लगभग 17% वहीं सवर्णों की बात करते तो इनकी कुल आबादी लगभग 15% है। इनमें भूमिहार 6%, ब्राह्मण-5%, राजपूत 3% और कायस्थ की आबादी 1% है। इसके अलावा बिहार में आदिवासी की कुल आबादी 1.3% है।
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