कहर बरपा रही कोहड़ा नदी: बेतिया में कोहड़ा नदी में उफान; बाढ़ के कारण कोहड़ा चमरटोली गांव बना टापू, 3 किमी कमर भर पानी में 3 घंटे का सफर करने को मजबूर हैं लोग

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बेतिया19 मिनट पहले

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कोहड़ा चमरटोली के लोगों को इसी नाव का है सहारा।

बेतिया में लगातार हो रही बारिश के कारण जिले के कई गांव बाढ़ की चपेट में हैं। वहीं, बेतिया के मझौलिया प्रखंड के कई पंचायतों में बाढ़ का पानी घुस चुका है। मझौलिया प्रखंड के डुमरी पंचायत का कोहड़ा चमरटोली गांव कोहड़ा नदी के किनारे बसा हुआ है, जिसकी वजह से बाढ़ एवं कटाव का दंश यहां के करीब 1 हजार से भी अधिक की आबादी हर साल झेलती रहती है। इस साल भी लोग बाढ़ का दंश झेल रहे हैं। गांव के चारों तरफ बाढ़ का पानी है। इसलिए गांव टापू में तब्दील हो चुका है। गांव में आने-जाने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है।

स्थानीय लोगों में नाराजगी है कि बाढ़ के वक्त कोई उनकी सुध तक लेने नहीं आता। गांव में किसी की तबयत खराब हो जाने पर गांव से बाहर जाने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। 3 किलोमीटर तक पानी भर कमर में नाव के सहारे 3 घंटे का सफर करना पड़ता है, जिसके बाद अस्पताल पहुंचा जा सकता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव में अगर कोई मर भी जा रहा है तो दाह-संस्कार के लिए भी कोई जगह नहीं है। कमर भर पानी हेल कर 3 किलोमीटर दूर जाकर दाह-संस्कार करना पड़ता है। अभी तक हम लोगों का हाल जानने ना कोई जनप्रतिनिधि या कोई अधिकारी ही पहुंचे हैं।

मझौलिया प्रखंड का डुमरी पंचायत का कोहड़ाचमर टोली चारों तरफ से कोहड़ा नदी से घिरा हुआ है। जब भी मानसून की बारिश होती है यह गांव टापू बन जाता है। आने-जाने का कोई रास्ता नहीं बचता। लोगों ने बताया कि घर में खाने का राशन तक खत्म हो गया है। घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं। समझ में नहीं आता कि क्या खाएं और क्या बच्चों को खिलाएं?

अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए तो गांव में ही मरण हो जाता है, लेकिन गांव से बाहर नहीं निकल सकते। सरकारी नाव की व्यवस्था नहीं है कि कोई सामान खरीदने गांव से बाहर निकल सकें। ऐसे में निजी नाव ही एक सहारा है। वह भी दूसरे से मांग कर कभी-कभार गांव में आता है। पीने के लिए जो पानी है वह भी बाढ़ के पानी में जलमग्न हो चुका है। सांप-बिच्छू का डर बना रहता है। रात को सोते वक्त डर सताता है कि ना जाने पानी कब उनके घर के अंदर आ जाए।

स्थानीय लोगों ने कहा कि अभी पंचायत चुनाव भी होने वाला है। ऐसे में अगर मुखिया हमारे गांव में आएंगे तो उसे गांव से बाहर कर दिया जाएगा। चुनाव के वक्त हमारी हमारी याद आती है, लेकिन जब गांव आज टापू बना हुआ है, तो कोई जनप्रतिनिधि हमारी सुध लेने नहीं आ रहे हैं।

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