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- Story Of 6 Polling Booths Where No Or Little Facility Seen As Promished By ECI For Bihar Election 2020
पटनाएक घंटा पहलेलेखक: शालिनी सिंह
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दानापुर का एक बूथ जहां कतार में खड़े लोग गमछे से चेहरा ढंके थे।
- तीसरे चरण के मतदान से पहले भास्कर बता रहा है दूसरे चरण का आंखों देखा हाल
- 5 जिलों के 6 बूथ पर भास्कर रिपोर्टरों ने जो देखा, वह पढ़कर समझिये चुनाव आयोग की तैयारी
भारत निर्वाचन आयोग कोरोना महामारी के दौरान बिहार में चुनाव करा दुनिया भर में एक उदाहरण पेश करना चाह रहा है। अब यह चुनाव अपने आखिरी दौर में है। अंतिम चरण के लिए प्रचार ख़त्म हो गया है और मतदान के लिए 24 घंटे का वक्त बचा है। ऐसे में यह देखना जरूरी है कि क्या अब तक आयोग सुरक्षित मतदान के अपने उन दावों पर खरा उतर सका है, जो इस महामारी में कराये जा रहे चुनाव को लेकर किये गए थे। प्रचार के दौरान तो प्रत्याशियों और नेताओं की सभा में आयोग द्वारा जारी कोविड गाइडलाइन की धज्जियां उड़ते हम सब देख चुके हैं। अब तीसरे चरण के मतदान से पहले दैनिक भास्कर आपको बता रहा है कि हमारे रिपोर्टरों ने दूसरे चरण के मतदान के दौरान बूथों पर क्या-क्या देखा :
दानापुर, बूथ संख्या 134, समय सुबह 10 बजे के करीब – बूथ के बाहर वोटरों की दो कतार में महिला और पुरुष थे। पुरुषों की कतार में कुछ के चेहरों पर मास्क था तो कोई गले में गमछा लपेटे था। महिलाएं सर पर आंचल ओढ़े थीं। धीरे-धीरे आगे बढ़ती कतार में दूसरे नंबर पर खड़ी थी सुषमा। अचानक उसका ध्यान चुनाव कर्मी की ओर गया, जिसने उससे पहले की महिला वोटर की पहचान करने के बाद हाथ में लगाने के लिए ग्लब्स दिया और फिर मुंह ढकने का इशारा किया। महिला सर पर रखे अपने आंचल को खींच मुंह तक ले आती है, फिर पूरी हो जाती है चेहरे पर मास्क लगाने की औपचारिकता। उस महिला को देख सुषमा ने भी अपने सर पर रखे आंचल को खींचकर ओढ़ लिया। लेकिन पुरुषों के लिए मामला थोड़ा पेंचीदा था, क्योंकि उन्हें गमछे या रूमाल का सहारा लेना पड़ रहा था।
यही हाल कमोबेश दानापुर के सभी बूथों पर दिखा। एक लीटर सैनिटाइजर ने पूरे दिन हाथों को सैनिटाइज किया, तो प्लास्टिक के पतले ग्लब्स ने कोरोना को दूर किया और गमछे-साड़ी के पल्लू ने मास्क बनकर कोरोना को मार भगाया। यह चुनाव आयोग की वो तैयारी थी, जो उसने दुनिया की सबसे बड़ी महामारी के काल में हो रहे देश के सबसे पहले चुनाव के लिए की थी।
मधुबनी के पंडौल का बूथ नंबर 284 – शाम के 5 बजे बूथ लगभग खाली हो गया था। इक्का-दुक्का वोटर पहुंच रहे थे। चेहरों पर हमें कोई मास्क नहीं दिखा। इसी बीच नजर बूथ पर बैठे मतदानकर्मियों के चेहरों पर गई। जिनका मास्क नाक और मुंह की बजाए गले तक पहुंच गया था। हमें देख वो थोड़े संभले और मास्क को खींच चेहरे पर कर लिया। इसी बीच हमने सवाल किया – ये मास्क चुनाव आयोग की तरफ से दिये गए हैं? चुनाव कर्मी ने ‘ना’ में सर हिलाते हुए कहा – हमारा अपना है। देखिये ना, इनका मास्क तो कान के पास से टूट भी गया है। इसी बीच नीले सूट में बिना मास्क के एक महिला वहां पहुंचती हैं। हमने पूछा – मास्क नही लगाया आपने? जबाब दिया – भीड़ तो यहां है नहीं, फिर क्यों लगाती।
पंडौल के इस बूथ में बिना मास्क लगाए बैठा था कर्मी।
समस्तीपुर का विभूतिपुर विधानसभा, बूथ संख्या 233 – स्टेट हाईवे के ठीक किनारे एक कमरे में इस बूथ को बनाया गया था। वोटरों की कतार सड़क के ठीक किनारे थी। बीच-बीच में गाड़ियों से उड़ रही धूल वोटरों के चेहरों को सफेद कर रही थी। कुछ चेहरे पर गमछा लपेटे थे, लेकिन इसकी वजह कोरोना गाइडलाइन नहीं, बल्कि सड़क से उड़ रही धूल थी। धूल के बीच सोशल डिस्टेंसिंग के लिए बने वोटर सर्कल को देखना मुश्किल तो था, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं दिखा। कतार में 60-70 लोग लगे थे, लेकिन किसी को ना मास्क की चिंता थी, ना कोरोना की। तस्वीर खींचने पर कई वोटर अपने चेहरों को रूमाल से ढकने लगते हैं, मतलब कि वो कोरोना और सोशल डिस्टेंसिंग से अनजान नहीं थे। कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाती इन तस्वीरों को लेकर हम भले परेशान हो रहे हों, लेकिन चुनाव कर्मी और बगल में खड़े सुरक्षाकर्मी बेफिक्र थे।
दरभंगा ग्रामीण, बूथ संख्या 1ए – यहां का तो नजारा ही कुछ और था। कतार में लगे ज्यादातर बिना किसी मास्क के थे। जो वोट देकर निकल रहे थे, उनके चेहरे पर भी मास्क नहीं था। जब तस्वीरें ली जाने लगी तो पोलिंग एजेंट को मास्क का ख्याल आया। जब चुनाव कर्मियों से सवाल किया तो उन्होंने अपनी बेबसी बताई। कहा – हैंड सैनिटाइजर और ग्लब्स तो मिले हैं, लेकिन चुनाव आयोग की तरफ से मास्क भेजे ही नहीं गए। अब क्या करें, जो है उसी में काम चला रहे हैं।
बख्तियारपुर विधानसभा का बूथ संख्या 10 – एक बजबजाती नाली को पार कर इस बूथ पर पहुंचने का रास्ता था। चुनाव कर्मियों ने अपनी तरफ से लकड़ी के दो पटरों को रख वोटरों के लिए रास्ता बनाने की भरसक कोशिश की थी। यहां एक कमरे में दो बूथ बना दिये गए। शुक्र रहा कि ज्यादा लोग एक साथ नहीं पहुंचे, नहीं तो खड़े होने की दिक्कत हो जाती। ऐसी व्यवस्था में कोरोना गाइडलाइन के पालन पर सवाल उठाना भी मुश्किल है, लेकिन फिक्र हुई तो पूछना पड़ा। जबाब मिला – वोटर मास्क लगाकर आ रहे हैं। जो नहीं आ रहे, उन्हें हम लगाकर आने के लिए कह रहे हैं।
बख्तियारपुर के एक बूथ पर जाने के लिए इसी नाली को पार करना पड़ रहा था।
नालंदा विधानसभा का बूथ नंबर 336 – ये आदर्श बूथ था, लिहाजा सारी तैयारियां हुई थी। खुली-खुली और बड़ी जगह को बैलून से सजाया गया था। नजर निर्वाचन आयोग के उस जागरूकता फ्लैक्स पर गई जो बूथ के अंदर घुसते ही दिखा। वोटरों को बूथ पर मिलने वाली मुफ्त सुविधाओं की चर्चा थी। इसमें सबसे ऊपर मास्क था, फिर बात हैंड सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग की थी। पीने का पानी और वोटरों के लिए शेड की भी यहां व्यवस्था थी। बूथ पर सबसे पहले हाथ में हैंड सैनिटाइजर की बोतल लिये स्वास्थ्य कर्मी ममता दीदी बैठी थीं, जो आते ही वोटरों को अपने पास बुला रही थीं। सैनिटाइजर लगाने के बाद एक हाथ में पहनने के लिए ग्लब्स दिये जा रहे थे। इसके बाद ही वोटर पोलिंग एजेंट तक पहुंच रहे थे, जहां उन्हें पर्चियां दी जा रही थी। लेकिन चेहरे पर मास्क है या नहीं, उससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
(अमित जायसवाल के इनपुट के साथ)
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