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पटना31 मिनट पहले
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डॉ. अजय कुमार। – फाइल फोटो
राजधानी के जाने-माने यूरोलॉजिस्ट और किडनी सर्जन डॉ. अजय कुमार इन दिनों चर्चा में हैं। चर्चा में इसलिए कि राजधानी के एक बड़े हॉस्पिटल ने उन्हें निकाल दिया है और उसके बाद वे मुखर हैं। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा भी है। उनके पोस्ट पर लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। बता दें डॉ. अजय कुमार 2007 से 2008 तक इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के नेशनल प्रेसीडेंट रह चुके हैं। इससे पूर्व वे आईएमए की बिहार शाखा में 2000 से 2002 तक प्रेसीडेंट रहे। वे आईएमए की राष्ट्रीय और राज्य कमेटी में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं।
डॉ. अजय कुमार ने फेसबुक पर लिखा है- पारस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल के सीईओ ने मुझे इन्फॉर्म किया कि उन्हें अब पारस एचएमआरएस हॉस्पिटल के यूरोलॉजी, नेफ्रोलॉजी एंड ट्रांसप्लांट यूनिट में डायरेक्टर के रूप में जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया पर अजय कुमार ने एक शेर भी लिखा है जिससे जाहिर है कि उनके साथ धोखा हुआ। भास्कर ने पारस हॉस्पिटल से उनका पक्ष जानना चाहा तो अस्पताल प्रबंधन ने कहा- हमें इस पर कुछ नहीं कहना है।
डॉ. अजय कुमार से भास्कर की बातचीत
सवाल- आप इन दिनों चर्चा में हैं, आपके साथ क्या हुआ?
जवाब- कॉरपोरेट वाले कभी नहीं कहते कि हटा देंगे। वे आपको अपने प्रोफेशन से हट कर कोई चीज ऑफर कर देते हैं। मैं पारस अस्पताल में गया ट्रांसप्लांट करने के लिए। उनके बुलाने पर ही गया। तामझाम के साथ मुझे वे लोग ले गए। 52 किडनी ट्रांसप्लांट हमने अपने नेतृत्व में वहां करवाया। शुरू में मुरलीबाई हॉस्पिटल से हमलोगों ने मदद ली थी और बाद में हमलोग इंडिपेंडेंट करने लगे। हॉस्पिटल में हमारे साथ काम करने वाले कुछ सहयोगियों ने हमारे साथ विभीषण का रोल निभाया। मुझे कहा गया इस पद पर मेरी कोई जरूरत नहीं है।
सवाल- क्या आपके साथ धोखा किया गया?
जवाब- मेरे साथ धोखा किया गया। उन्होंने मुझे ऑफर किया कि आपको डायरेक्टर एजुकेशन, रिसर्च एंड स्ट्रेटजी बनाना चाहते हैं। गुड़गांव में भी जरूरत पड़ेगी। सब्जबाग दिखाने लगे। मैंने कहा कि एल्बो आउट करने के लिए इस तरह के ऑफर आते हैं। ट्रांसप्लांट को हमने सक्सेसफुली कराया। मैंने यह भी कहा कि मेरी रुचि उसमें नहीं है जो पद ऑफर किए जा रहे हैं। मैंने कहा, मैं आईएमए का नेता रहा हूं। सिस्टम से बाहर का ये ऑफर है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में 15 साल रहा हूं। पूरे देश के मेडिकल और रिसर्च को गाइड किया है। छोटे से संस्थान में ये पद मुझे नहीं चाहिए। मैं ट्रांसप्लांट सर्जन की तरह कंटीन्यू करना चाहता हूं। लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया।
सवाल- यूरोलॉजी के संघ ने भी इसका विरोध किया है?
जवाब- बिहार यूरोलॉजी सोसाइटी ने इस पर संज्ञान लेते हुए यहां तक कहा कि यूरोलॉजी के डॉक्टर पारस हॉस्पिटल का बहिष्कार करें। जो यूरोलॉजिस्ट इस पूरा प्रकरण में शामिल रहे और संघ के अध्यक्ष का साथ नहीं दिया, उनका भी बायकाट किया जाए।
सवाल- अब आपका कदम आगे क्या होगा?
जवाब- हम तो फ्री हो गए। मेरे पास प्रोजेक्ट की कमी नहीं। मेरी जो इच्छा थी कि बिहार में यूरोलॉजी को स्थापित किया जाए तो अब सौ से ज्यादा यूरोलॉजिस्ट बिहार में हैं। इसका मुझे गर्व है। मैं सिर्फ ट्रांसप्लांट नहीं कर रहा था जिसका मुझे अफसोस था। लेकिन अब वह भी हमने कर दिया है। मेरे कुछ और प्रोजेक्ट्स हैं। डायग्नोस्टिक में एमआरआई और सीटी स्कैन 1500 और 800 रुपए में हम बिहार के लोगों के लिए करेंगे। दूसरा एक हेल्थ वेलनेस सेंटर बनाना चाहता हूं। इसके लिए मेरे पास 14 एकड़ जमीन है। उसको पूरा समय दूंगा। मेरा अपना पाम व्यू हॉस्पिटल है ही।
सवाल- किडनी ट्रांसप्लांट के आप बड़े डॉक्टर हैं। मुजफ्फरपुर में एक महिला की दोनों किडनी झोला छाप डॉक्टर द्वारा निकालने का मामला कुछ माह पहले आया था। अब भी वह महिला डायलिसिस पर है। इस केस मे कैसे महिला के साथ जस्टिस हो सकता है?
जवाब- ट्रांसप्लांट का एक नियम है। सरकार लाइसेंस देती है। इस मामले में जिसने भी उसकी किडनी निकाली है उस पर 302 का मुकदमा चलाकर जेल भेजना चाहिए।
सवाल- कानूनी कार्रवाई तो हो रही है, लेकिन महिला का क्या होगा? उसका जीवन कैसे बचेगा?
जवाब- एक ही उपाय है कि उसका रीनल ट्रांसप्लांट किया जाए। सरकार के ट्रांसप्लांट नियम के तहत यह होना चाहिए। उसका नीयर, डियर कोई हो या इमोशनली रिलेटेड हो, कोई किडनी देना चाहता है तो दे सकता है। समाधान नहीं हो रहा है तो सीधे हाईकोर्ट जाना चाहिए। इमोशनल रिलेशन वाले जहां पैसे का कोई लेन-देन न हो उसकी किडनी लेकर ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। सरकार तीन-चार लाख रुपए देती है। सरकार चाहे तो उस महिला को इलाज का पूरा पैसा भी दे सकती है।
सवाल- अभी भी किडनी ट्रांसप्लांट की स्थिति बिहार या देश में ऐसी है कि बड़े लोग सिंगापुर में जाकर किडनी ट्रांसप्लांट करवा रहे हैं?
जवाब- ये राजनेताओं की बीमारी है। सर्दी-खांसी का इलाज भी अमेरिका में जाकर करवाएंगे। इससे पब्लिक में मैसेज जाता है कि तुम्हारा खून-खून, हमारा खून पानी, तुम्हारा गम, गम मेरा कम कहानी। अपना गम तो नेता कहीं और जाकर दूर करते हैं और जनता को छोड़ देते हैं उसी पीएमसीएच और सरकारी अस्पताल के भरोसे। सबसे जरूरी यह है कि नेता जिस अस्पताल पर गर्व करते हैं जैसे कि पीएमसीएच, आईजीआईएमएस या एम्स, वहां जाकर इलाज कराएं। उनको लगता है कि यहां जरा कम सुविधा है।
प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने पीएमसीएच में आंख का ऑपरेशन कराया था। राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी आंख का ऑपरेशन पटना में डॉक्टर दुखन राम से कराया था। इस तरह की बातें अब कहां सुनने को मिलती हैं। पटना में जब आईजीआईएमएस बना तो बिन्देश्वरी देवी ने खूब तारीफ की और अगले ही दिन अपोलो में जाकर गॉल ब्लाडर निकलवाया। सोचिए इसके लिए भी कई लोग बाहर जा रहे हैं। लालू प्रसाद तो मल्टीपल बीमारियों से ग्रस्त थे, इसलिए गए होंगे सिंगापुर।
सवाल- आपने सोशल मीडिया पर जो ताजा पोस्ट किया है उसके अंत में एक शेर लिखा है?
जवाब- हां पारस वालों के लिए लिखा है-
‘वक्त गुलशन पे पड़ा तो, हमने अपना खून दिया।
चमन में बहार आयी तो कहते हैं तेरा काम नहीं।’
हमने कई जगह पारस का बचाव किया। जब लड़की ने रेप का आरोप लगाया था, उस समय भी। आईएएस विजय प्रकाश को एक नर्स ऐसी सूई देने जा रही थी कि सूई लगने से उनकी मौत हो जाती। तब विजय प्रकाश समझ गए थे। हमने बीच बचाव किया। जब-जब पारस पर आफत आई मैं खड़ा रहा। मैं पारस में सिर्फ कंसल्टेंट नहीं था बल्कि मैंने उनके लिए जो किया, वह दुनिया जानती है। फिर भी उन्होंने ऐसा सलूक किया।
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