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पटनाएक घंटा पहले
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चिराग पासवान।
केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार और उसमें लोक जनशक्ति पार्टी के बागी व निष्कासित सांसद पशुपति कुमार पारस को शामिल किए जाने की चर्चाओं के बीच एक और बड़ी खबर आ गई है। चाचा पशुपति कुमार पारस और उनके भतीजे चिराग पासवान के बीच चल रही लड़ाई में एक और नया ट्विस्ट आ गया है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के उस फैसले को चुनौती दी जाएगी, जिसके जरिए पशुपति कुमार पारस को लोक जनशक्ति पार्टी के संसदीय दल का नेता चुन लिया गया। पार्टी में बगावत करने के बाद पशुपति समेत सभी बागी 5 सांसद 14 जून को लोकसभा अध्यक्ष से चुपके से मिल आए थे। बागी सांसदों ने पशुपति कुमार पारस को अपने ससंदीय दल का नेता चुना और इसके समर्थन में एक लेटर ओम बिड़ला को सौंप दिया। उस दौरान चिराग दिल्ली में ही थे। चंद दिनों के अंतराल पर वो खुद लोकसभा अध्यक्ष से जाकर मिले। चाचा को बतौर ससंदीय दल के नेता की मान्यता देने पर अपनी आपत्ति जताई थी। यहां तक कहा था कि संसदीय दल का नेता कौन होगा? ये 5 सांसद तय नहीं करेंगे। लेकिन, इसके बाद भी चिराग की बात नहीं सुनी गई।
कोर्ट में मूव करने की पूरी तैयारी
आर्शीवाद यात्रा को लेकर सोमवार को ही चिराग दिल्ली से पटना आए। मंगलवार को जैसे ही उन्हें पता चला कि मीडिया में उनके चाचा को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की चर्चा है, उस पर खबरें चल रही हैं। इसके बाद ही प्रेस कांफ्रेंस कर उन्होंने कड़ी आपत्ति जताई। सीधे तौर पर कहा कि लोजपा कोटे से उन्हें मंत्री बनाया गया तो इसका विरोध करूंगा। यह बात दोपहर की थी। मगर, देर शाम तक नई बातें सामने आ गईं। सूत्र बताते हैं कि कोर्ट में मूव करने की पूरी तैयारी हो गई है। हर हाल में चाचा को लोजपा के संसदीय दल का नेता चुने जाने के फैसले पर वो कानूनी रूप से चुनौती देने जा रहे हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अपने पत्ते खोलेंगे चिराग
लोजपा के अंदर पिछले कुछ महीनों से जो कुछ भी चल रहा है, इसके लिए सिर्फ नीतीश कुमार और उनकी पार्टी JDU ही जिम्मेवार नहीं है। पूरे प्रकरण में भारतीय जनता पार्टी की भी अहम भूमिका है। इस बात का एहसास चिराग पासवान को भी हो चुका है। उन्हें अच्छे से पता है कि भाजपा के बड़े नेता के इंस्ट्रक्शन के बगैर लोकसभा अध्यक्ष ने उनके चाचा को संसदीय दल के नेता की मान्यता नहीं दी। इस मामले में बड़े स्तर पर खेल हुआ है। फिलहाल चिराग भाजपा और उसके नेताओं के मूवमेंट पर अपनी नजर गड़ाए हैं। नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के खिलाफ तो वो हमेशा बोलते रहे हैं। मगर, भाजपा या उसके किसी नेता के खिलाफ उन्होंने अभी तक अपना मुहं नहीं खोला है। लेकिन, जैसे ही केंद्र में मंत्रिमंडल का विस्तार होगा, उसके बाद चिराग अपने पत्ते खोलेंगे।
पहले नीतीश से निपट लें, फिर तेजस्वी के साथ देखेंगे
भले ही बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा की करारी हार हुई हो, पर इसके बाद भी चिराग की नीतीश विरोधी लड़ाई कमजोर नहीं पड़ी है। इस लड़ाई को वो बिहार की अस्मिता से जोड़ कर चल रहे हैं। वो साफ लफ्जों में कह रहे हैं कि पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से निपट लें। फिर इसके बाद राजद नेता तेजस्वी यादव को देखेंगे। यहां पर इस बात को स्पष्ट कर दें कि तेजस्वी यादव को देखने का मतलब लड़ाई का नहीं, बल्कि दोस्ती का है। नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने के लिए इन दोनों के बीच बिहार के अंदर नए समीकरण और गठबंधन आने वाले दिनों में दिख सकते हैं। क्योंकि, चिराग पासवान एक बात कहते हैं…मैं पागल वैरागी नहीं कि अकेला ही लड़ता रहूं।
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