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पटना9 मिनट पहले
गंगाजल भरकर घर ले जाते लोग।
छठ पूजा की शुरुआत शुक्रवार के दिन नहाए खाय से शुरू हो चुकी है। आज इसका दूसरा दिन यानी इसे खरना या लोहंडा कहते हैं। यह शब्द शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक है। छठ व्रती को इस पूरे 4 दिन के पर्व में शुद्ध स्वच्छ और पवित्र रहना चाहिए खरना इसे सुनिश्चित करता है। शनिवार को सुबह से पटना, भागलपुर समेत कई इलाकों में गंगा की घाटों पर खरना के लिए गंगाजल लेने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
अहले सुबह से ही पर्व करने वाले महिला पुरुष गंगा के विभिन्न घाटों पर गंगा में डुबकी लगाकर गंगाजल पूजा के लिए एकत्रित करते नजर आएं। ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व के अवसर पर गंगाजल की शुद्धता और पवित्रता को ध्यान में रखकर पूजा के लिए गंगाजल का ही इस्तेमाल किया जाता है।
गंगा स्नान के बाद व्रती को आलता लगाया गया।
गंगा जल का इस पूजा में है खास महत्व
लोक आस्था के इस महापर्व पर गंगाजल का खास महत्व होता है। छठ पूजा का महाप्रसाद गंगाजल में ही बनाया जाता है। गंगाजल को सबसे ज्यादा शुद्ध माना जाता है। खरना के दिन मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी पर गंगाजल का प्रयोग करके गुड़ की खीर को बनाया जाता है।
गंगा नदी से जल भरते श्रद्धालु।
खरना का मतलब पूरे दिन का उपवास
पटना के महंत संतोष पांडे ने बताया कि छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी मनाया जाने वाला सूर्य षष्ठी या छठ पूजा के नाम से जाना जाता है। 28 अक्टूबर शनिवार को सूर्य देव छठ माई खरना पूजा का आज दूसरा दिन है। खरना का मतलब पूरे दिन का उपवास है। बताया जाता है कि इस दिन जल का एक बूंद भी पर्व करने वाली महिलाएं ग्रहण नहीं करती हैं। संध्या के वक्त गुड़ की खीर, घी लगी रोटी और फलों का सेवन करती हैं बाकी लोगों को इसे प्रसाद के तौर पर ग्रहण करने के लिए दिया जाता है।
कलश में गंगाकर भरकर लाते श्रद्धालु।
छठ पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। ऐसी कथा है कि प्रथम मनु स्वयंभू के पुत्र प्रियव्रत को कोई संतान नहीं था। महर्षि कश्यप ने राजा को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने का सुझाव दिया था। यज्ञ के बाद राजा को पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन वह मृत था। इसके बाद माता षष्ठी उपस्थित होकर पूरी व्यथा सुनने के बाद मृत पुत्र के शरीर पर हाथ फेरा और वह जीवित हो गया तभी से उन्होंने माता षष्ठी की आराधना छठ पूजा के रूप में करना शुरू कर दिया। वेदों में भगवान सूर्य को जगत की आत्मा कही गई है। जगत की आत्मा भगवान भास्कर की छठ पूजा का महत्व बिहार, झारखंड सहित देश के अधिकांश भागों में प्रचलित है।
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