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पटना15 मिनट पहले
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श्वेतनिशा त्रिवेदी उर्फ बॉबी।
पूनम की रात्रि में निशा श्वेत होती है और बहुत खूबसूरत होती है। श्वेतनिशा बेहद सुंदर थी, शायद इसी लिए उसे ये नाम दिया गया था। ये वो लाइनें हैं जिससे पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने बॉबी उर्फ श्वेतनिशा के खूबसूरती को बताने की कोशिश की है। बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष बन चुके कुणाल ने अपनी किताब ‘दमन तक्षकों के’ नाम से प्रकाशित की है।
11 मई 1983 को पूरे बिहार में फैली थी सनसनी
किशोर कुणाल की जीवनी के तौर पर प्रकाशित इस किताब को उनके बेटे सायण कुणाल ने, कुणाल के संस्मरणों को लेकर लिखा है। इसमें बॉबी हत्याकांड के हर एक पहलू को पहली बार प्रमाणिकता के साथ रखा गया है। इसके मुताबिक बिहार की राजधानी पटना में 11 मई 1983 को देश के दो बड़े अखबारों में छपी खबर से चारों ओर कोहराम मच गया। खबर में बस इतना लिखा था कि ‘बॉबी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है और उसकी लाश को कहीं छुपा दिया गया है।’ इस खबर से पूरे बिहार में सनसनी फैल गई थी। एक ऐसी सनसनी जिसने कई नेताओं की कुर्सियों को हिला कर रख दिया था। यहां तक कि एक नेता ने कुछ सालों बाद यहां तक कह दिया था कि ‘यदि बॉबी सेक्स स्कैंडल को हम तब रफा-दफा नहीं करवाते, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता।’
कौन थी बॉबी उर्फ श्वेतनिशा
बॉबी जिसका असल नाम बेबी उर्फ श्वेतनिशा त्रिवेदी था, वो बिहार विधान परिषद की सभापति और कांग्रेस नेता राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी थी। सरोज दास ने बार-बार पूछने पर भी कभी नहीं बताया कि उसकी असल मां कौन थी, इसलिए कुछ उन्हें ही उसकी असल मां भी मानते थे। सभापति की बेटी होने के कारण बॉबी को विधानसभा सचिवालय में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिल गई थी। उसकी खूबसूरत को देखकर उसके प्रशंसकों ने उसका नाम राजकपूर की फिल्म बॉबी की नायिका का नाम दे दिया था। माननीय उस पर इस कदर लट्टू थे कि अपने भत्ते का पूरा बिल बना उसे सौंप दिया करते थे। उसकी खूबसूरती की वजह से कई राजनेताओं के साथ उसकी घनिष्ठ मित्रता हो गई थी।
किशोर कुणाल की जीवनी पर लिखी गई किताब।
कुणाल ने कब्रिस्तान से शव निकलवाकर कराया था पोस्टमॉर्टम
बिहार के एसएसपी किशोर कुणाल हुआ करते थे। शुरुआती पूछताछ में बॉबी की मां, राजेश्वरी सरोज दास से पता चला कि बॉबी की मौत 8 मई 1983 की सुबह को हुई जिसके बाद उसके शव को एक कब्रिस्तान में दफना कर दिया गया था। इसकी वजह उसका क्रिश्चियन धर्म से होना बताया गया। जब मौत की वजह के बारे में पूछा गया तब केस और उलझ गया। किशोर कुणाल के सामने बॉबी के पोस्टमार्टम की दो रिपोर्ट्स थीं। रिपोर्ट्स में मौत के दो अलग-अलग कारणों का जिक्र किया गया था। पहली रिपोर्ट में मौत की वजह ज्यादा खून बहना बताया गया था, तो दूसरी रिपोर्ट में बॉबी की मौत हार्ट अटैक के कारण बताई गई थी। रिपोर्ट पाने के बाद किशोर कुणाल ने बिना देरी किए कब्रिस्तान से बॉबी के शव को निकालने का फैसला लिया। शव को कब्रिस्तान से वापस निकाला गया और उसके बाद एक बार फिर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। इस बार मौत का कारण सुनकर सबके होश उड़ गए थे। डॉक्टरों की रिपोर्ट यह खुलासा कर रही थी बॉबी की मौत ‘मेलाथियान’ नाम के एक जहर खाने से हुई है।
सभापति की कुर्सी के नीचे रखा टेप रिकॉर्डर
मामले में किशोर कुणाल ने सरोज दास के सरकारी बंगले के आउट हाउस में रहनेवाले दो युवकों से पूछताछ की थी। पूछताछ में उन्होंने बताया कि 7 मई 1983 की रात को कांग्रेस के नेता राधा नंदन झा का बेटा रघुवर झा बॉबी से मिलने आया था। जिसके थोड़ी ही देर बाद बॉबी को पटना के IGIMS अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां सुबह 4:00 बजे के आसपास यानी 8 मई 1983 को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी। आनन-फानन में उसके पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनवाए गए और उसके बाद बॉबी को कब्रिस्तान में दफना दिया गया था। युवकों के बयान के बाद कुणाल राजेश्वरी सरोज दास से मिलने पहुंचे। उन्होंने कहा, मैडम आपकी बेटी को न्याय मिले इसके लिए इस बुढापे में तो सच बोलिए, सरोज दास भावुक हो गईं। उन्होंने सारी सच्चाई बता दीं, बताया कैसे रघुनाथ झा की दी दवाई के बाद श्वेतनिशा की तबीयत बिगड़ती गई, कैसे नकली डॉक्टर ने उसका इलाज किया और कैसे झूठी पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनी। ये सब कुणाल ने सरोज दास के कुर्सी के नीचे टेप रिकॉर्डर रख रिकॉर्ड कर लिया था। जिसकी जानकारी बाद में सरोज दास को भी उन्होंने दी। खुद राजेश्वरी सरोज दास ने 28 मई 1983 को अदालत में दिए गए अपने बयान में कहा कि बॉबी को कब और किसने जहर दिया था।
44 MLA और 2 मंत्री ने दी थी सरकार गिराने की धमकी
तब बिहार में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र हुआ करते थे। हत्याकांड तथा बॉबी से जुड़े अन्य तरह के अपराधों के तहत प्रत्यक्ष और परोक्ष ढंग से छोटे-बड़े कांग्रेस के कई नेता शामिल पाए गए थे। कुणाल के पास अब सारे सबूत थे, इसी बीच एक दिन उन्हें सीएम ने फोन किया। पूछा बॉबी केस में क्या हो रहा है। कुणाल के मुताबिक सीएम का इस मामले में पहला और आखिरी बार कॉल था। उन्होंने सीएम को बोला, सर अन्य मामलों में आपकी छवि चाहे जैसी हो इसमें आप बेदाग हैं, इसमें हाथ मत डालिए नहीं तो हाथ जल जाएगा। सीएम ने फिर फोन रख दिया। लेकिन, पुलिस अपनी आगे की कार्यवाही करने वाली थी कि तभी 44 MLA और दो मिनिस्टर सीएम के ऑफिस पहुंचे और कहा कि अगर केस बिहार पुलिस से CBI को ट्रांसफर नहीं किया गया तो हम आपकी सरकार गिरा देंगे। जिसके बाद मुख्यमंत्री भी दबाव में आ गए थे। 25 मई 1983 को इस केस को बिहार पुलिस से लेकर CBI को सौंप दिया गया था।
CBI ने बेसिर पैर की कहानी गढ़कर कोर्ट को दे दी थी रिपोर्ट
सत्ताधारी नेताओं को बचाने की हड़बड़ी में CBI ने बेसिर पैर की कहानी गढ़कर कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट के तौर पर लगा दी। हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया गया। CBI की टीम का एक भी सदस्य जांच के लिए पटना नहीं पहुंचा। आत्महत्या का कारण प्रेम प्रसंग बताया गया और कहा गया कि बॉबी एक लड़के से प्यार करती थी और उससे शादी करना चाहती थी, जब लड़के ने शादी से मना कर दिया तो बॉबी ने आत्महत्या का कदम उठाया। किशोर कुणाल कहते हैं तब PIL का जमाना था नहीं। कुछ लोगों ने कोर्ट में फिर मामले को खोलने के लेकर अपील भी की। लेकिन, कोर्ट ने ये कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि ऐसे मामलों में पीड़ित का परिवार या सरकार, यही दोनों अपील कर सकते हैं।
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