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बेतियाएक घंटा पहलेलेखक: मनोज कुमार राव
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पिछली बार जिस टीम ने गणना की थी, इस बार उसी से गिनती कराने की योजना, जहां डॉल्फिन को खतरा वहां पर बनेगा प्लान।
तीन साल पहले बिहार की नदियों में डॉल्फिन की उपस्थिति की गणना की गई थी। उस समय 155 जगहों पर कुल 1464 डॉल्फिन की गिनती की गई थी। अब राज्य सरकार फिर से इस दिशा में कदम बढ़ाने की योजना बना रही है ताकि डॉल्फिन की संख्या में बढ़ोतरी या घटोतरी की सही जानकारी मिल सके। प्रत्यक्ष गणना प्रक्रिया यानी डायरेक्ट काउंट मेथड से इस बार डॉल्फिन की गिनती की जाएगी।
तीन साल पहले जिस टीम ने गणना की थी, इस बार भी उसी टीम से डॉल्फिन की गिनती कराने की योजना बनाई गई है। टीम में वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया, नई दिल्ली जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया पटना और भागलपुर विवि के सदस्य शामिल थे। गणना के दौरान इस बात पर फोकस दिया जाएगा कि जहां पर डॉल्फिन के ऊपर खतरा है उसकी पहचान कर निवारण के लिए प्लान तैयार किया जा सके।
रिवर फूड चेन में नंबर वन
नदी की फूड चेन में नंबर-1 डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए अगले साल के मार्च तक कार्यवाही शुरू होने की संभावना है। डॉल्फिन की साइटिंग का क्षेत्र वाल्मीकिनगर स्थित त्रिवेणी बराज से लेकर हाजीपुर तक तय किया गया है। फिलहाल सरकार की योजना है कि अगर किसी नदी में मछुआरों के जाल में डॉल्फिन फंसती है तो उसे छोड़ देना है। अगर डॉल्फिन द्वारा जाल को नष्ट किया जाता है तो सरकार उसके लिए मुआवजा देगी। गंडक के प्रवाह क्षेत्र से जुड़े मछुआरों को निर्देश दिया गया है कि वे डॉल्फिन का शिकार न करें।
गंगा डॉल्फिन को नेशनल हेरिटेज की संज्ञा दी गई है क्योंकि यह पूरे विश्व में सिर्फ भारत, नेपाल और बांग्लादेश में ही पाया जाता है। नेपाल और बांग्लादेश में डॉल्फिन की उपलब्धता इस कारण है क्योंकि गंगा के प्रवाह क्षेत्र से ये दोनों जड़े हैं। अब तीनों देशाें की डॉल्फिन का आइसोलेशन हो गया है जिसके आधार पर संख्या निर्धारित की जाती है।
- गंडक नदी के प्रवाह क्षेत्र में डॉल्फिन की संख्या की सेंसस के लिए आने वाली टीम की पूरी मदद की जाएगी। मछुआरों को डॉल्फिन नहीं पकड़ने का आदेश पूर्व में दिया जा चुका है। – हेमकांत राय, निदेशक सह संरक्षक, वीटीआर
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