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भागलपुरएक घंटा पहलेलेखक: अनिकेत कुमार
कलश स्थापना के साथ ही सोमवार से नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। देवघर देश का एक मात्र ऐसा स्थल है, जो 51 शक्तिपीठों मेंं से एक तो है ही यहां बाबा वैद्यनाथ धाम मनोकामना ज्योतिर्लिंग भी है । मान्यता है कि जिस जगह पर माता सती का हृदय गिरा था ठीक उसी जगह पर ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इसे हृदय शक्तिपीठ कहते हैं। इसलिए हर नवरात्रि में यहां माता की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है। मान्यता है कि यहां 5 मंदिरों का निर्माण खुद भगवान विश्वकर्मा ने किया था।
बाबा वैद्यनाथ धाम स्थित ज्योतिर्लिंग को मनोकामना लिंग भी कहते हैं।
नवरात्रि के पहले दिन सुबह 5 बजे से भीड़ उमड़ी
नवरात्रि के पहले दिन सुबह 5 बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ी। मंदिर परिसर के करीब दो किलोमीटर दूर तक श्रद्धालुओं की कतार देखी गई। पंडा बाबा झा बताते हैं कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री का आगमन हुआ है। यहां शिव और माता दोनों की शक्ति एक साथ विराजमान है। यहां आज सबसे पहले संकल्प हुआ। फिर माता के कलश की स्थापना की गई है। माता की पूजा अगले 9 दिनों तक एक ही पुजारी बाबा गुलाब झा करेंगे। वो इस मंदिर के सबसे पुराने पुजारी हैं। वो 9 दिनों तक निर्जला व्रत करेंगे।
माता की प्रतिमा के पास भक्तों की भीड़।
हर रोज करीब 40 हजार श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद
विकास पंडा कहते हैं कि पहले लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती थी। लेकिन पिछले दो साल से कोविड की वजह से लोग अब पहले की तरह नहीं आ रहे हैं। श्रावण में भी पहले के मुकाबले 25% लोग ही आ पाए थे। उन्होंने कहा कि हालांकि उम्मीद है कि आने वाले इन 9 दिनों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी। उन्होंने बताया कि औसतन हर दिन 30 से 40 हजार श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है।
रावण यहां से शिवलिंग नहीं ले जा सका
यहां ज्योतिर्लिंग की स्थापना को लेकर भी रावण से संबंधित एक मान्यता है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण आराधना कर रहे थे। इस दौरान रावण ने अपने सिर को काट कर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू कर दिया था। रावण ने एक-एक कर 9 सिर शिवलिंग पर चढ़ा दिए थे। जैसे ही वो अपना दसवां सिर काटने वाला था, भगवान शिव ने दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने का वरदान मांगा। इसके बाद भगवान की अनुमति से शिवलिंग को ले जाने लगा। लेकिन भगवान शिव ने रावण को कहा कि इस शिवलिंग को ले जाने के दौरान अगर उसने कहीं भी इसे जमीन पर रखा तो फिर वो शिवलिंग हमेशा के लिए वहीं पर स्थापित हो जाएगा। इसके बाद देवताओं ने रावण के इस उद्देश्य को विफल बना दिया। रावण को जब रास्ते में नित्यकर्म के लिए रुकना था तो उसकी नजर वहां मौजूद एक ग्वाले पर पड़ी। लेकिन ग्वाले के वेश में भगवान विष्णु थे। रावण ने ग्वाले को कुछ देन शिवलिंग पकड़े रहने के लिए कहा। लेकिन ग्वाले ने शिवलिंग को वहीं जमीन पर स्थापित कर दिया। इसके बाद रावण ने लाख कोशिश की, लेकिन शिवलिंग को वहां से नहीं ले जा पाया।
रात से बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं श्रद्धालु।
क्या हैं मान्यताएं-
वैद्यनाथ धाम के पुजारी पंडा बाबा झा बताते हैं कि मान्यता के अनुसार जिन स्थानों पर मां सती के अंग गिरे थे उनमें देवघर प्रमुख है, क्योंकि यहां माता का हृदय गिरा था। इसलिए इस स्थान को हृदय पीठ कहा जाता है। यहां कुल 22 प्रमुख मंदिर हैं। इन सभी मंदिरों को नवरात्रि में सप्तमी और अष्टमी के दिन आम के पत्तों से बनी माला से एक-दूसरे से जोड़ा जाता है।
बाबा वैद्यनाथ धाम में उमड़ी भक्तों की भीड़।
5 मंदिर ब्रह्मा और 17 राजा पूरणमल ने बनवाए
बाबा वैद्यनाथ धाम के पुजारी विकास पंडा कहते हैं कि भगवान ब्रह्मा ने यहां रातोंरात अपने मंत्रों शक्ति से 5 बड़े मंदिर बनवाए। पहला भगवान शंकर, दूसरा पार्वती माता, तीसरा लक्ष्मी नारायण, चौथा काली मंदिर, पांचवां संध्या मंदिर। इसके बाद त्रेता युग में राजा पूरणमल ने यहां 17 और मंदिर का निर्माण करवाया।
9 दिनों तक बंगाली रीति-रिवाज से होती है पूजा
देवघर में बंगाली रीति-रिवाज से पूजा करने वालों की संख्या ज्यादा है। पुजारी विकास पंडा ने बताया कि नवरात्रि में 9 दिनों तक बंगाल से आए लोगों की भीड़ भी खूब उमड़ती है। यहां नवरात्रि में 9 दिन तक बंगाली रीति-रिवाज से भी पूजा की जाती है। हर साल नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर भैंसे की बलि बाबा बैजनाथ मंदिर के सामने दी जाती है। मंदिर के ठीक सामने कार्यालय परिसर में माता की मूर्ति की स्थापना करते हैं। बंगाल के कारीगर यह मूर्ति बनाते हैं।
नवरात्रि में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने की उम्मीद बनी हुई है।
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