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पटना40 मिनट पहलेलेखक: कमल किशोर विनीत
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- राइस मिलों की सफलता देख रोहतास में सोन नहर प्रणाली पर लगीं 9 हाइडल परियोजनाएं
पश्चिमी सोन नहर पर नासरीगंज और पूर्वी पर दाउदनगर में दो अनूठी राइस मिलें हैं। 108 साल पुरानी। इनमें न ईंधन की जरूरत पड़ती है, न ही किसी प्रकार का प्रदूषण फैलता है। नहर के पानी से बिजली बनती है। उसी से मिल चलती है। पानी का सालाना लगान सिर्फ 23 रुपए है। यह अंग्रेजी शासनकाल में तय हुआ था, जो आज भी जारी है।
पानी की बर्बादी भी नहीं होती, क्योंकि मिलें नहर पर स्थित हैं। साल में आठ माह ही चलती हैं। ऐसा इसलिए कि 4 महीने नहर में पानी नहीं रहता। इनकी बनावट इस प्रकार की है कि एक ओर से नहर का पानी इनके टरबाइन तक आता है और आगे नहर में निकल जाता है। वर्तमान में दोनों मिलों की स्थिति खराब है। दाउदनगर मिल की देखरेख करने वाले प्रयाग ने बताया कि पहले मिल चलती थी। अब मालिक और सरकार दोनों का ध्यान नहीं है। नासरीगंज वाली मिल का तो अवशेष ही बचा है।
पनबिजली परियोजनाओं से होता है 8 माह बिजली का उत्पादन
नासरीगंज-दाउदनगर की राइस मिलों की सफल कार्यप्रणाली के आधार पर ही रोहतास में 9 पनबिजली प्रोजेक्ट्स लगे। पहरमा, अमेठी, रामपुर अर्धनिर्मित हैं। बिजली कंपनी के अभियंता संजीत सिंह के अनुसार आठ माह बिजली का उत्पादन होता है। परियोजनाएं वहां हैं, जहां नहर के पानी को रोका जाता है। इसे लॉक कहा जाता है। दोनों मिलें भी ऐसी ही जगहों पर हैं। नहर विभाग की जमीन इन्हें लीज पर दी गई है।
सरकार ने लगान बढ़ाया तो हाईकोर्ट ने दी राहत
1915 में गया के डीएम ने पानी का सालाना लगान 23 रुपए तय किया था। बिहार सरकार ने लगान को पुनर्निर्धारित करना चाहा। मिल संचालक ने इस निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने अपने फैसले में पुरानी लगान चुकाने का ही आदेश सुनाया।
यह व्यवसाय नहीं, विरासत
मिल के संस्थापक रामसेवक प्रसाद के पौत्र डॉ. प्रकाश चंद्रा कहते हैं कि अब यह व्यावसायिक नहीं, हमारी धरोहर है। सो, मिल की रिमॉडलिंग नहीं करवा रहे।
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