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- Mokama (Bihar) Election 2020: Bahubali Anant Singh | Voters Political Debate On Nitish Party JDU Candidate Rajeev Lochan Singh
पटनाएक घंटा पहलेलेखक: अमित जायसवाल
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चारों ओर वोटिंग के शोर के बीच जब मोकामा में वोट पड़ रहे थे तो टाल क्षेत्र में वोटिंग के साथ-साथ एक बहस भी चल रही थी। बहस इस बात के लिए नहीं थी कि मोकामा में कौन जीत रहा है, बल्कि इस बात के लिए थी कि बगल की सीट बाढ़ और नालंदा में क्या चल रहा है। बाकी बिहार में क्या चल रहा है।
यह मोर इंग्लिश रोड के किनारे चाय की दुकान का नजारा है, जो आज बंद है लेकिन वोट डालने से ज्यादा वोट पर नजर रखने वाले यहां जमे हुए हैं। बाबू परमेश्वर सिंह पूरे फॉर्म में हैं। बीच में ज्यादा हो-हल्ला और जुटान देख सुरक्षा बल के जवान दो बार इस भीड़ को तितर-बितर होने की चेतावनी दे चुके हैं। लेकिन भीड़ है कि बार-बार जुट जा रही है। आखिर ये मोकामा जो है। बाकी सीटों से अलग।
परमेश्वर बाबू की चिंता मोकामा का नतीजा नहीं है। यहां के बारे में तो वे और उनकी ‘टीम’ आश्वस्त ही है कि लालटेन जलेगी। लोग कहते हैं कि कोई और भी निशान होता तो वही जीतता। यहां मामला कैंडिडेट के ‘चेहरे’ का है। यह उन चंद सीटों में से है जिसके नतीजे की घोषणा आप कभी भी कर सकते हैं।
रामजी भाई बोल रहे हैं- ‘देख भाई, इस बार किसी को ठेकेदार नहीं न बनने देना है। ये मोकामा और बाढ़ ही है, जिसने किसी को परेशान कर रखा है। उनकी परेशानी इस बार कम होने की तो छोड़िये, बढ़ने जा रही है। वो चाहते हैं न कि उनके ‘इलाके’ की सारी विधानसभा सीटों पर उनके ‘डमी’ प्रत्याशी जीतें, त समझ लिया जाए कि इधर तो ये नहीं ही होने वाला है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी वो इन्हीं दो इलाकों में छटपटा के रह गए थे।’ नाम किसी का न लेते हुए उन्होंने बाढ़-मोकामा-बड़हिया वाले खास अंदाज में अपनी बातें बड़ी आसानी से कह दी हैं।
स्वाभाविक रूप से उनका इशारा जदयू सांसद और नीतीश कुमार के खास सिपहसलार ललन सिंह पर है, जिनके साथ इस इलाके में नाराजगी साफ दिखाई देती है। लोग यह भी कहते हैं कि यह नाराजगी नीतीश से भी ज्यादा ललन सिंह पर है। यह नाराजगी पिछले दिनों उस वक्त भी दिखाई दी थी, जब ललन सिंह जदयू प्रत्याशी राजीव लोचन के लिए वोट मांगने आए थे और मंच पर ही उनसे कई असहज करने वाले सवाल स्थानीय लोगों ने कर दिए थे। आज की बहस उस दिन की बातों को ही आगे बढ़ा रही है। यह पूछने पर कि ‘इतनी नाराजगी क्यों?’ कहते हैं- ‘उन्हीं से बेहतर पूछिए कि हमारे खुश होने के लिए उन्होंने किया क्या है?’
खैर, बातचीत का सिरा अचानक मुंगेर पहुंच गया है और लोग वहां हुई फायरिंग और पुलिस की आलोचना कर रहे हैं। इस अकेली बातचीत के अब तक इतने सिरे हो चुके हैं कि कब इसमें मोदी जी आ जा रहे हैं, कब तेजस्वी और चिराग… कब बात अगली सरकार तक पहुंच जा रही है, थाह लेना मुश्किल है। अब तो इनकी बातों में पुलिस वालों को भी मजा आने लगा है। वोटिंग के उतार-चढ़ाव में रुचियों का ऐसा परिवर्तन स्वाभाविक है। अभी दिन के 3 बजने वाले हैं और फिलहाल बात पहले चरण के नतीजों-रुझान और इसके दूसरे और तीसरे चरण पर पड़ने वाले असर तक पहुंच चुकी है। नतीजे ऐसे-ऐसे कि बड़े-बड़े सेफोलॉजिस्ट भी पनाह मांग लें। फिलहाल हम मतदान के कवरेज के लिए आगे बढ़ चुके हैं। सुखद है कि इस कोरोना काल में भी फिलहाल तो मतदान की रफ्तार बढ़ने जैसी खबरें सुनाई दे रही हैं।
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