बिहार में कोरोना का एक असर यह भी: पटना में 30 हजार ऑपरेशन वेटिंग में, अप्रैल-मई में एक तिहाई भी नहीं हुई सर्जरी; सामान्य दिनों में रोज होते थे 900 ऑपरेशन

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पटना7 मिनट पहलेलेखक: मनीष मिश्रा

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बिहार में अप्रैल और मई में कोरोना मरीजों के साथ-साथ दूसरी बीमारियों से ग्रसित लोगों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। क्योंकि अन्य बीमारियों का इलाज व्यवस्थित तरीके से नहीं हो पाया। इमरजेंसी में डॉक्टरों ने जोखिम तो उठाया, लेकिन टालने वाले ऑपरेशन को हाथ नहीं लगाया। किडनी और गुर्दे की पथरी के साथ हड्‌डी व अन्य सामान्य रोगों के ऑपरेशन को टाल दिया गया है। यही कारण है कि इस समय सिर्फ पटना में 30 हजार से ज्यादा ऑपरेशन पेंडिंग हैं।

केस 1

गर्दनीबाग के राकेश के पेट में पथरी है। ऑपरेशन के लिए IGIMS में समय लिया था। लेकिन जब समय आया तो कोरोना का प्रकोप बढ़ गया था। इस कारण से निर्धारित समय पर ऑपरेशन नहीं हो पाया। प्राइवेट में भी प्रयास किया, लेकिन ऑपरेशन नहीं हो पाया। ऑफिस से छुट्‌टी भी ली थी लेकिन काम नहीं हुआ। राकेश का कहना है कि जब दर्द होता है तो टेलिकालिंग कर दवाएं पूछ लेते हैं। दर्द की दवा खाकर वह ऑपरेशन के लिए समय का इंतजार कर रहे हैं।

केस 2

पटना के केसरी नगर की रहने वाली सुमन सिंह को अपनी बहन का ऑपरेशन कराना था। बाएं हाथ में गांठ बन गई थी। लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में डॉक्टरों से इलाज कराया था। मई में ऑपरेशन की डेट दी गई थी लेकिन कोरोना के कारण ऑपरेशन नहीं हो पाया। वह अब प्राइवेट हॉस्पिटल में ऑपरेशन की तैयारी कर रही हैं।

केस 3

राजीव नगर के सामाजिक कार्यकर्ता विवेक विश्वास ने बताया कि मोहल्ले के कई लोग इलाज के लिए परेशान हुए। मोहल्ले की बूढ़ी महिला के घुटने में समस्या थी और पहले से ऑपरेशन की सलाह दी गई थी। दो माह में परेशानी बढ़ी, लेकिन कोई डॉक्टर ऑपरेशन के लिए तैयार नहीं हुआ।

प्रसव की सर्जरी के लिए भी भटकना पड़ा

हालत यह थी कि सरकारी हॉस्पिटल में भी प्रसव के ऑपरेशन के लिए प्रसूताओं को काफी भटकना पड़ा। हालांकि सरकारी हॉस्पिटल में ऐसी महिलाओं को थोड़ी राहत मिली है। प्रसव के दौरान महिलाओं की सोनोग्राफी भी मुश्किल से हो पाती है।

पटना के 5 हजार हॉस्पिटल में होता है ऑपरेशन

IMA बिहार के सेक्रेटरी सुनील कुमार का कहना है पटना में 5 हजार से अधिक छोटे बड़े हॉस्पिटल हैं। इसमें सरकारी भी शामिल हैं। पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, नालंदा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, पटना एम्स, इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के साथ सदर अस्पताल में ऑपरेशन 10 प्रतिशत भी नहीं हो पाए। सरकारी अस्पतालों को मिलाकर भी 300 से अधिक ऑपरेशन एक दिन में नहीं हो पाए। जबकि, सामान्य दिनों में एक दिन में 900 से अधिक ऑपरेशन होते थे।

ऑपरेशन के दौरान संक्रमण का खतरा

कोरोना की दूसरी लहर में सबसे अधिक खतरा एसिम्प्टोमैटिक मरीजों से था। इस बार ऐसे मरीज अधिक आए हैं जो एंटीजन और RT-PCR में पकड़ में नहीं आए हैं। HRCT में ही ऐसे मरीजों की पहचान हो पाई है। पहली लहर में ऐसे मामले नहीं थी। लक्षण नहीं होने के बाद भी संक्रमित होने पर RT-PCR में जांच हो जाती थी। इस बार जांच में समस्या आई तो डॉक्टरों ने ऐसे ऑपरेशन को टाल दिया जो टलने लायक था। कई प्राइवेट अस्पतालों ने तो ऑपरेशन पूरी तरह से बंद कर दिया था।

कोविड का डेडिकेटेड हॉस्पिटल बनने से ऑपरेशन ठप

पटना में कई बड़े हॉस्पिटल को कोरोना का डेडिकेटेड हॉस्पिटल बना दिया गया है। इसमें नालंदा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल और इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान शामिल हैं। इन दोनों हॉस्पिटल को कोरोना का डेडिकेटेड हॉस्पिटल बनाया गया, जिसके बाद यहां सामान्य मरीजों का इलाज बंद हो गया। दोनों बड़े हॉस्पिटल में ऑपरेशन सभी विभागों में होता है लेकिन कोरोना का इलाज होने के कारण ऑपरेशन बंद कर दिया गया है।

ऑक्सीजन के कारण भी आई बड़ी बाधा

ऑक्सीजन के कारण भी बाधा आई है। IMA के सेक्रेटरी डॉक्टर सुनील कुमार का कहना है कि कोरोना काल में ऑक्सीजन को लेकर समस्या हो गई। इस कारण से भी ऑपरेशन टल गए। छोटे हॉस्पिटल में तो ऑक्सीजन ही नहीं मिल पाया इस कारण से समस्या आ गई। IMA का कहना है कि इस बीच लगातार ऑक्सीजन की डिमांड की जाती रही लेकिन प्रशासन व्यवस्था नहीं कर पाया इससे प्राइवेट अस्पतालों में असर पड़ा है।

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