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- The First Test Of The Grand Alliance In The New Government; The Challenge Of Saving The Stronghold Before The BJP
पटना16 मिनट पहलेलेखक: शंभू नाथ
चुनाव आयोग ने सोमवार को बिहार समेत 6 राज्यों की 7 सीटों पर उपचुनाव की घोषणा कर दी है। बिहार की दो सीट मोकामा और गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव के लिए 3 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और 6 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे। इससे पहले 7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर के बीच नामांकन की प्रक्रिया होगी।
गोपालगंज के विधायक और राज्य के पूर्व सहकारिता मंत्री सुभाष सिंह के निधन के बाद से गोपालगंज की विधानसभा सीट खाली है। जबकि मोकामा से बाहुबली विधायक अनंत सिंह को AK-47 केस में 10 साल की सजा सुनाई जाने के कारण उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इसके बाद से ये भी सीट खाली थी।
नए समीकरण में गोपालगंज में होगी महागठबंधन की पहली परीक्षा
गोपालगंज उपचुनाव में महागठबंधन की ओर से एक नहीं, कई दावेदार होंगे। नए समीकरण में इसे महागठबंधन की पहली परीक्षा भी मानी जा रही है। दरअसल, मोकामा सीट पर तो सत्तापक्ष की ओर से RJD की उम्मीदवारी लगभग तय है। अनंत सिंह RJD के टिकट पर इस सीट से जीतते आ रहे हैं। अब उनकी सदस्यता समाप्त होने के बाद उपचुनाव होना है। ऐसे में इस सीट पर RJD ही उम्मीदवार उतारेगा, ऐसा तय माना जा रहा है। गोपालगंज में किसे प्रत्याशी बनाया जाएगा, ये सबसे दिलचस्प होगा।
20 साल से गोपालगंज सीट पर बीजेपी का है दबदबा
गोपालगंज विधानसभा सीट पर पिछले 4 चुनाव से बीजेपी का दबदबा है। 2005 से यहां सुभाष चुनाव जीतते आ रहे थे। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सुभाष सिंह ने बसपा के उम्मीदवार साधु यादव को 36 हजार के वोटों के अंतर से हराया था। महागठबंधन के उम्मीदवार रहे कांग्रेस के आसिफ गफूर को तब मात्र 36 हजार वोट मिले थे।
सुभाष सिंह को हराने का RJD का हर दांव फेल था
भले ही 2020 में तेजस्वी ने गठबंधन के नाते गोपालगंज सदर सीट कांग्रेस को दे दी, लेकिन प्रदर्शन और सीट के पुराने रिकॉर्ड के कारण राजद का दावा भी यहां कमजोर नहीं है। 2005 के नवंबर में हुए चुनाव में सुभाष सिंह ने पहली बार जीत दर्ज की। इससे पहले के तीन चुनावों में सीट RJD के पास ही रही थी। इस सीट से 1995 में राम अवतार विधायक बने तो 2000 में साधु यादव ने जीत दर्ज की। फरवरी 2005 में हुए चुनाव में RJD के रेयाजुल हक राजू ने जीत दर्ज की थी।
गोपालगंज सीट पर जातीय समीकरण
गोपालगंज सीट में सवर्ण वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। सवर्ण वोटर्स की बात करें तो यहां राजपूत के 18 हजार वोट, ब्राह्मण के 13, 300, भूमिहार के 15,325 और कायस्थ के 8400 वोटर्स हैं। इस हिसाब से 55 हजार से ज्यादा वोट सवर्णों के हैं। इसके अलावा 50 हजार से ज्यादा पिछड़ी जातियों के वोट हैं। जबकि यहां यादव वोटर्स की संख्या 46 हजार और मुस्लिम वोटर लगभग 58 हजार हैं।
मोकामा में दशकों से रहा है बाहुबलियाें का दबदबा
मोकामा विधानसभा का इतिहास हमेशा से ही बाहुबली छवि के नेता के साथ रहा है, राजनीतिक दल भले ही अलग-अलग रहे हैं। यहां से पिछले 4 चुनाव से अनंत सिंह का वर्चस्व रहा है। वे एकतरफा चुनाव जीतते रहे हैं। इससे पहले उनके बड़े भाई दिलीप सिंह का यहां सिक्का चलता था। वे यहां से चुनाव भी जीत चुके हैं।
अनंत सिंह ने जिस पार्टी से चुनाव लड़ा, उनकी जीत तय
अनंत सिंह लगातार 2005 से यहां से चुनाव जीत रहे हैं। 2005 और 2010 का विधानसभा वे यहां से जदयू के टिकट से जीते थे। 2015 में जब लालू और नीतीश की जोड़ी साथ आई तो उन्होंने निर्दलीय पर्चा भर दिया। 2020 में वे आरजेडी के टिकट से चुनाव लड़े थे।
मोकामा में सवर्ण वोटर्स जिस पाले में, जीत उसी की
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में कुल 2.68 लाख वोटर हैं। इस सीट पर अहम भूमिका भूमिहार, कुर्मी, यादव, पासवान की है। राजपूत और रविदास जैसी जातियां भी यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस सीट पर साल 2000 में सबसे अधिक मतदान 76.70 प्रतिशत हुआ था। इस दौरान 83.4 पुरुषों और 69.01 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था। इस विधानसभा क्षेत्र के बारे में कहा जाता है कि सवर्ण वोट जिस पाले में उस पार्टी की जीत होनी तय है।
मोकामा विधानसभा सीट से बीजेपी कभी नहीं जीती
2005 के चुनाव से ही मोकामा मतलब अनंत सिंह हो गया है। इससे पहले कुल 16 चुनाव में 7 बार कांग्रेस, तीन बार JDU, तीन बार निर्दलीय उम्मीदवार, दो बार जनता दल, एक बार रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया यहां से जीत चुकी है। आज तक BJP यहां से नहीं जीती है, वहीं 1985 में आखिरी बार कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की थी। हालांकि अब बदले हुए समीकरण में बीजेपी यहां भी अपनी पूरी ताकत लगाएगी।
अनंत सिंह की विधायकी गई…:17 साल की सल्तनत का अंत, आर्म्स एक्ट में दोषी; विधानसभा ने अधिसूचना जारी की
राजद विधायक और मोकामा से लगातार 5 बार से जीत रहे चर्चित अनंत सिंह अब विधायक नहीं रहे। अनंत सिंह के घर से एके 47 और हैंड ग्रेनेड मिलने के मामले में एमपी/एमएलए कोर्ट द्वारा 10 साल की सजा सुनाए जाने के कारण विधानसभा ने गुरुवार को उनकी विधायकी समाप्त किए जाने की अधिसूचना जारी कर दी।
अधिसूचना में कहा गया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा-8 और संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (ई) के प्रावधानों के तहत अनंत सिंह को कनविक्शन की तिथि 21 जून के प्रभाव से बिहार विधान सभा की सदस्यता से निरर्हित किया जाता है। आर्म्स एक्ट के मामले में कोर्ट ने 14 जून को ही उन्हें दोषी करार दिया था। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिए
पूर्व मंत्री सुभाष सिंह का दिल्ली में निधन:गोपालगंज सदर सीट से लगातार 4 बार विधायक रहे, किडनी ट्रांसप्लांट के बाद हुआ था इंफेक्शन
सूबे के पूर्व सहकारिता मंत्री व सदर विधान सभा सीट से लगातार चार बार विधायक रहे सुभाष सिंह का इलाज के दौरान दिल्ली में निधन हो गया। पूर्व मंत्री के निधन की ख़बर सुनते ही भाजपा नेताओं में शोक लहर दौड़ गई। वही परिजनों में कोहराम मचा हुआ है। मंगलवार की सुबह 3 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
सुभाष सिंह सदर प्रखंड के ख़्वाजेपुर गांव निवासी थे। उनका राजनीतिक सफर 1990 के दशक से शुरू हुआ था। तब वो गोपालगंज के लिए यूनियन के अध्यक्ष हुआ करते थे। इसके बाद सहकारिता के क्षेत्र में उन्होंने काम किया। सुभाष सिंह की लोकप्रियता को देखते हुए बीजेपी ने गोपालगंज सदर विधानसभा से विधायक का टिकट दिया। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर चुनाव जीते और लगातार चार बार विजयी होकर बिहार विधान सभा के सदस्य बने। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिए
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