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पटनाएक घंटा पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
राजेश कमल की किताब ‘अस्वीकार से बनी काया’ का लोकार्पण।
सावरकार ने मांफी मांगी, और बाकी जो कुछ किया, लेकिन गांधी को क्यों मारा गया? गांधी को मारने की चर्चा को गांधी के मरने से पहले ही होने लगी थी। गांधी को इस बारे में बताया भी गया, लेकिन उन्होंने सिक्यूरिटी नहीं ली। हत्यारा चाकू लेकर पहले भी गांधी को मारने के लिए आया था। बंटवारा तो सब की सहमति से हुआ। क्या गांधी चाहते तो रुक जाता देश का बंटवारा? यह सवाल चर्चित कवि आलोक धन्वा ने किया।
वे कालिदास रंगालय में समन्वय की ओर से आयोजित राजेश कमल के कविता संग्रह ‘अस्वीकार से बनी काया’ का लोकार्पण कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बंगाल को लोग चाहते हैं खत्म हो जाए लेकिन खत्म नहीं होगा बंगाल। कविता की कोई जाति नहीं होती। कविता संग्रह का लोकार्पण आलोक धन्वा के अलावा संजय कुंदन, मुकेश प्रत्यूष, निवेदिता और सुधीर सुमन ने संयुक्त रुप से किया।
कार्यक्रम में अपने विचार रखते आलोक धन्वा।
कुछ व्यर्थ चीजें हमें रखनी चाहिए- संजय कुंदन
कवि राजेश कमल ने घृणा, कौवे, दिवगंत मित्र का मोबाइल नंबर आदि कई कविताओं का पाठ किया। इस अवसर पर शायर संजय कुमार कुंदन ने कहा कि प्रेम में कोई डिफेंस नहीं होता। कवि के अंदर काफी बौखलाहट है और यह कविता में है। कवि राजेश कमल ने रिश्तों की निरंतरता की खोज की है। ‘दिवंगत मित्र का मोबाइल नंबर’ कविता में है कि कुछ व्यर्थ की चीजें भी हमें रखनी चाहिए।
कौन सी कविता किस कवि को जेल पहुंचा दे कहना मुश्किल- निवेदिता
मुकेश प्रत्यूष ने कहा कि राजेश कमल की कविताएं हम सभी की कविताएं हैं। इन कविताओं में महाभारत के भीष्म और द्रोण की तरह छटपटाहट है। कवि इशारों में भी गंभीरता से बात करते हुए दिखते हैं। निवेदिता ने कहा कि हर आदमी के अंदर कविता बैठी हुई है। इस समय में कौन सी कविता किस कवि को जेल पहुंचा दे यह कहना मुश्किल है। इसलिए मैं कहती हूं कि कविताएं यहां जिंदा हैं और यह सब को जोड़ती है। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से घृणा करे यह ठीक नहीं, इसके खिलाफ लड़ना होगा। पटना में लेखकों- कवियों का मिलना-जुलना होता रहे यह बहुत जरूरी है।
राजेश कमल की कविता संग्रह का कवर।
प्रेमपत्र बचाने वाले लोग कुछ और समेटने में लग गए हैं- सुधीर सुमन
सुधीर सुमन ने कहा कि प्रेमपत्र बचाने वाले लोग कुछ और समेटने में लग गए हैं। राजेश कमल ने अपने कविता संग्रह में भोले अंदाज में सवाल रखे हैं। कई बार वे वैचारिक खांचों को भी तोड़ते हैं। हुक्मरानों से सवाल करती हुई दिखती है कविता। गफलत में पड़े लोगों को लताड़ लगाती हुई कविता है। वल्लभ सिद्धार्थ ने कहा कि राजेश कमल की लगभग कविताएं पॉलिटिकल हैं। इसमें प्रतिपक्ष में सामूहिकता की जरूरत पर जोर है। शिल्प अनगढ़ भले हों लेकिन भावनाएं प्रबल हैं।
पटना की खूबी है यह- सुशील
मंच संचालन करते हुए सुशील कुमार ने राजेश कमल की कई कविताओं का पाठ किया। सुशील ने कहा कि पटना की खासियत है कि यहां कविता लिखने की एक के बाद एक नई पीढ़ी आती रही है। पटना में जो रह गया उसे कहीं और मन ही नहीं लग सकता। उन्होंने राजेश कमल की कविता ‘घृणा’ का पाठ किया-
सबसे पहले तो मनुष्य ही आए होंगे प्रेम भी उनके साथ ही आया होगा फिर मनुष्य ने ईश्वर का निर्माण किया होगा फिर धर्म आया होगा, जातियां आयी होंगी पंडित आये होंगे मुल्ला आये होंगे, मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारे आये होंगे धर्मग्रंथ आये होंगे मैं जानना चाहता हूं कि घृणा कब आयी मनुष्य के साथ? या इतने निर्माणों के बाद?
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