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पटना16 मिनट पहलेलेखक: बृजम पांडेय
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नए सिरे से पार्टी का गठन कर रहे लोजपा प्रमुख चिराग पासवान।
- विधानसभा चुनाव में हार के बाद लोजपा अब नए सिरे से पार्टी का गठन करने वाली है
- ऐसा दूसरी बार होगा जब लोजपा का प्रदेश अध्यक्ष पद पासवान परिवार से बाहर जाएगा
लोजपा अब अपने आप को संवारने में लगी है। नए सिरे से पार्टी का गठन करने वाली है। ऐसा दूसरी बार होगा कि लोजपा का प्रदेश अध्यक्ष का पद पासवान परिवार से बाहर जाएगा। 28 नवंबर 2000 को पार्टी की स्थापना हुई थी। उस समय से लेकर 2019 तक राम विलास पासवान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, उसके बाद उनके पुत्र चिराग पासवान अध्यक्ष बन गए। शुरू में नरेंद्र सिंह को लोजपा का बिहार प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन बाद के दिनों में जब नरेंद्र सिंह जदयू में शामिल हुए, तो प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी रामविलास पासवान ने अपने भाई पशुपति पारस को दे दी। बाद में चिराग पासवान ने अपने चचेरे भाई प्रिंस राज को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया।
राजेंद्र सिंह बनाए जा सकते हैं प्रदेश अध्यक्ष
विधानसभा चुनाव 2020 में जब लोजपा की करारी हार हो गई तो चिराग पासवान ने बिहार प्रदेश कमेटी को भंग कर दिया। अब चिराग पासवान नए सिरे से प्रदेश कमिटी का गठन करने वाले हैं। पूरी कमेटी में जो नेता संगठन के काम में निपुण होंगे, उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। नई कमिटी में सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए भाजपा से लोजपा में आए राजेंद्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। राजेंद्र सिंह भाजपा में झारखंड के संगठन महामंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा बिहार भाजपा में प्रदेश महासचिव और उपाध्यक्ष रह चुके हैं। लोजपा से दिनारा विधानसभा चुनाव लड़े राजेंद्र सिंह भले चुनाव हार गए हों, लेकिन इनका प्रदर्शन बेहतर रहा था। चिराग पासवान ने इशारों-इशारों में इस बात की हरी झंडी दे दी है कि राजेंद्र सिंह को पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी।
पासवान की पार्टी में भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत को बड़ी जिम्मेवारी
नई कमेटी में चिराग पासवान भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, पिछड़ा और अति पिछड़ों को बड़ी ज़िम्मेदारी देने की तैयारी में हैं। सौरव पाण्डेय , हुलाश पाण्डेय, राजू तिवारी, उषा विद्यार्थी, अशरफ अंसारी, राजेश भट्ट जैसे नेताओं को मुख्य जिम्मेदारी दी जाएगी। वहीं पार्टी में मुस्लिम, पिछड़ा और अतिपिछड़ों का एक ऐसा ग्रुप बनाया जाएगा, जिससे आने वाले पांच सालों तक पार्टी के पक्ष में लोगों की राय बदले। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि इसकी स्क्रिनिंग चल रही है और जनवरी में इसकी घोषणा हो जाएगी।
रामविलास पासवान ने पार्टी को मुख्यधारा से जोड़ा
दलित राजनीतिज्ञ के तौर पर रामविलास पासवान की पहचान पूरे देश में थी। रामविलास पासवान ने धीरे-धीरे पार्टी को मुख्यधारा से जोड़ा और पहली बार 2004 में लोकसभा चुनाव में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 4 सीटें जीती थीं। तब लोजपा, कांग्रेस और राजद के साथ UPA गठबंधन का हिस्सा थी। 2005 के विधानसभा चुनाव में किंग मेकर बने रामविलास पासवान की हालत 2010 में काफी खराब हो गई थी। 2009 में तो हाजीपुर लोकसभा सीट तक हार गए थे। हालांकि वर्ष 2010 में लालू यादव का साथ मिलने से रामविलास पासवान राज्यसभा पहुंचे, लेकिन राज्य में वह अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाए। 2014 में अपने बेटे चिराग के कहने पर रामविलास पासवान ने पाला बदला और NDA गठबंधन में नरेन्द्र मोदी के साथ आए और 6 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की , वहीं 2019 में छह लोकसभा के साथ एक राज्यसभा सीट भी हासिल की, जिसपर रामविलास पासवान खुद सदन गए थे। हालांकि 2015 में NDA के तहत 42 सीटों पर लोजपा मैदान में उतरी, जिनमें महज दो पर जीत हुई थी, जबकि इस बार वह अकेले दम पर 135 सीटों पर लड़ी और सिर्फ एक जीत सकी।
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