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बिहार17 मिनट पहले
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सूर्य की यह मूर्ति हजार साल पुरानी है। आंध्र की यह मूर्ति अभी अमेरिकी म्यूजियम में है।
भ गवान सूर्य आदिदेव हैं और छठ उनकी अनादिकाल से हो रही पूजा का एक रूप है। उगते व अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने का महापर्व सूर्य के इन्हीं आदर्शों को समर्पित है। सूर्य शिक्षक व संन्यासी के रूप में: सूर्य सबसे बड़े संन्यासी हैं, क्योंकि वे सबको जीवन और प्रकाश देते हैं। गायत्री मंत्र के ‘धियो यो न: प्रचोदयात्’ में सूर्य के गुरुत्व ब्रह्मचारी और आचार्य के संबंध में है। उपनयन में विद्यार्थी की अज्जलि जल से भरकर आचार्य यह मंत्र पढ़ते थे… तत् सवितुर्वृणीमहे वयं देवस्य भोजनम्। श्रेष्ठं सर्वधातमं तुरं भगस्य धीमहि।। यानी ‘हम सविता देव के भोजन को प्राप्त कर रहे हैं। यह श्रेष्ठ है, सबका पोषक और रोगनाशक है।’ इसके बाद आचार्य कहते थे… देवस्य त्वा सवितु: प्रसवे अश्विनो वार्हुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्यां गृभ्णाम्यसो।। यानी ‘सविता देव के अनुशासन में मैं तुम्हारा हाथ पकड़ता हूं।’ जैसे सूर्य प्रकाश से अंधकार मिटाते हैं, वैसे ही आचार्य शिष्य का अज्ञानता के अंधकार को दूर करते रहेंगे। सूर्य कर्मयोगी के रूप में: सूर्य से आजीवन कर्मयोग की शिक्षा प्राप्त होती है। सूर्य शब्द की व्युत्पत्ति है- सुवति प्रेरयति कर्मणि लोकम् अर्थात सूर्य ही कर्मयोगी की तरह इस संसार को चलायमान रखते हैं। चिकित्सक के रूप में: सूर्य का प्रभाव शरीर और मन पर बहुत गहरा पड़ता है। शास्त्रों के मुताबिक सूर्य-रश्मि के सेवन से सभी रोग ठीक हो सकते हैं। सवितु: समुदय काले प्रसृती: सलिलस्य पिबेदष्टी। रोगजरापरिमुक्तोजीवेद् वत्सरशतं साग्रम।। यानी सूर्योदय के समय 8 घूंट जल पीने वाला व्यक्ति रोग और बुढ़ापे संबंधी दिक्कतों से मुक्त होकर 100 वर्ष से अधिक जीवन जीता है। सूर्य के प्रकाश से रोग नष्ट हो जाते हैं।
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