Home Bihar 29 साल बाद पुलिस की कैद से निकले हनुमान: चोरों से बरामद करने के बाद मालखाने में रखी थी मूर्ति; 42 लाख रुपए जमानत दी

29 साल बाद पुलिस की कैद से निकले हनुमान: चोरों से बरामद करने के बाद मालखाने में रखी थी मूर्ति; 42 लाख रुपए जमानत दी

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29 साल बाद पुलिस की कैद से निकले हनुमान: चोरों से बरामद करने के बाद मालखाने में रखी थी मूर्ति; 42 लाख रुपए जमानत दी

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आरा (भोजपुर)एक घंटा पहले

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भोजपुर में 29 साल बाद हनुमान जी पुलिस की कैद से बाहर निकले। पहले मूर्ति की पूजा की गई। इसके बाद पालकी में बिठाकर राम के साथ हनुमान जी को शहर में घुमाया गया। इस दौरान पुलिस वाले भी हनुमान जी की आरती करते दिखे।

दरअसल 29 साल पहले रंगनाथ मंदिर में चोरी गई थी। पुलिस ने अष्टधातु से बनी मूर्ति को चोरों से बरामद भी कर लिया। मूर्ति की कीमत 42 लाख बताई गई। कोर्ट ने 42 लाख रुपए की जमानत पर मूर्ति को देने के आदेश दिए।

29 साल से मूर्ति का कोई जमानतदार नहीं मिल पा रहा था। सोमवार को महावीर मंदिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने हनुमान जी की जमानत के लिए करीब 42 लाख रुपए दिए। इसके बाद मूर्ति कृष्णागढ़ थाने के मालखाने से आजाद हुई।

मंगलवार को ही कृष्णागढ़ थाने के मालखाने में पड़ी अष्टधातु की मूर्तियों को धूमधाम से ऐतिहासिक मंदिर में लाया गया। इसके बाद पूजा-अर्चना कर मूर्ति को स्थापित किया गया।

गुरुवार को रामनवमी के अवसर पर भव्य पूजा का आयोजन किया गया है। इसके बाद मूर्ति की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।

रामनवमी से पहले मंदिर में लौटे हनुमान।

रामनवमी से पहले मंदिर में लौटे हनुमान।

इससे पहले सोमवार को मूर्ति को छुड़ाने के लिए आरा कोर्ट में एडीजे-3 के पास जमानत राशि जमा की गई थी। कोर्ट ऑर्डर लेकर लोग मंगलवार को कृष्णागढ़ थाने पहुंचे।

पुलिस ने दोनों मूर्तियों को पुजारी के हवाले कर दिया। ऐतिहासिक रंगनाथ मंदिर बड़हरा प्रखंड के कृष्णागढ़ थाने क्षेत्र के गुंडी गांव में है।

मूर्ति को स्थापित करते श्रद्धालु।

मूर्ति को स्थापित करते श्रद्धालु।

1994 में तीसरी बार चोरी हुई मूर्ति

मंदिर के कर्ताधर्ता डॉ बबन सिंह ने बताया कि यहां तीन बार चोरी हो चुकी है। पहली चोरी 1969 में हुई थी। उस दौरान चोरों ने गोदाम्बा, रंगनाथ भगवान, राम और जानकी की मूर्ति चोरी की। दूसरी चोरी करीब दस साल के बाद 1980 में हुई।

कृष्णागढ़ थाने का मालखाना, जिसके अंदर रखी थी ऐतिहासिक मूर्ति।

कृष्णागढ़ थाने का मालखाना, जिसके अंदर रखी थी ऐतिहासिक मूर्ति।

इस बार गरुड़ जी, शतकोप स्वामी और बर्बर मुनि स्वामी की प्रतिमा चोरी हुई। तीसरी बार साल 1994 में चोरी हुई, जिसमें चोरों ने अष्टधातु के हनुमान जी और रामानुज स्वामी की मूर्ति चुरा ली। 2 साल बाद 1996 में इन्हें नगर थाना क्षेत्र के सिंगही गांव के एक बगीचे से बरामद किया गया था।

मूर्ति की पूजा में लगे पुलिसकर्मी।

मूर्ति की पूजा में लगे पुलिसकर्मी।

29 सालों तक पुलिस की कैद में रहे हनुमान

मूर्ति की बरामदगी को 29 साल बीत चुके हैं। बरामदगी के बाद मूर्ति का मूल्यांकन लगभग 42 लाख रुपए किया गया था। तब कोर्ट की ओर से मूर्ति की जमानत के लिए उतने रुपए का ही जमानतदार मांगा जा रहा था। लेकिन कोई भी इतने रुपए का जमानतदार बनने को तैयार नहीं हुआ।

काफी प्रयास के बाद पुलिस द्वारा मूर्ति की सुरक्षा की गारंटी देने के बाद इसे रिलीज कराने की बात आई, लेकिन इस पर प्रशासन तैयार नहीं हुआ। इस कारण मूर्ति कृष्णागढ़ थाने के मालखाने में कैद रही।

महावीर मंदिर न्यास की पेशकश पर तय हुई रिहाई

महावीर मंदिर न्यास के सचिव आचार्य कुणाल किशोर ने करीब 10 माह पहले मूर्ति के लिए जमानत की पेशकश की। मूर्ति वापस आने पर भोजपुर पुलिस की ओर से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होने पर जमानत का प्रस्ताव रखा था।

साल 1840 में स्थापित मंदिर को बनाने की प्रेरणा चेन्नई के नंगुनेरी मठ से ली गई थी।

साल 1840 में स्थापित मंदिर को बनाने की प्रेरणा चेन्नई के नंगुनेरी मठ से ली गई थी।

अब जानिए क्यों ऐतिहासिक है रंगनाथ मंदिर

रंगनाथ ​​​​​​ मंदिर का निर्माण साल 1840 में हुआ था। इसे बाबू विष्णुदेव नारायण सिंह ने बनवाया था। विष्णुदेव नारायण सिंह फिलहाल मंदिर के केयरटेकर बबन सिंह के परदादा थे।

बबन ने बताया कि मंदिर बनाने के लिए यहां शिल्पकार नहीं मिल रहे थे। इसलिए बाबू विष्णुदेव नारायण सिंह को मद्रास (अब चेन्नई) जाकर कारीगरों को लाना पड़ा था। इसी दौरान वहां के नंगुनेरी मठ से प्रेरणा मिली और उन्होंने सोचा कि मंदिर को इसी पद्धति पर बनाया जाए।

साल 2009 तक मूर्ति को बाहर निकालकर इसकी पूजा होती थी। बाद में सुरक्षा कारणों से यह बंद हो गया। उसी दौरान की फाइल फोटो।

साल 2009 तक मूर्ति को बाहर निकालकर इसकी पूजा होती थी। बाद में सुरक्षा कारणों से यह बंद हो गया। उसी दौरान की फाइल फोटो।

इस मंदिर में एक भी ईंट नहीं है। इसका निर्माण केवल पत्थरों से कराया गया है। पूरे मंदिर में केवल बड़े-बड़े पत्थर हैं। चुनारगढ़ से सभी पत्थरों को बैलगाड़ी की मदद से लाया गया था। उसके बाद मंदिर बना। फिर सभी मूर्तियों को मद्रास से लाया गया।

मंदिर निर्माण के बाद तीन गर्भगृह बनाए गए। पहले में रंगनाथ भगवान, गोदा अंबा और गरुड़ की प्रतिमा है। दूसरे में राम, लक्ष्मण और जानकी की प्रतिमा है और तीसरे में तिरुपति बालाजी, वेंकटेश भगवान की प्रतिमा है।

बबन सिंह बताते हैं कि मंदिर में अष्टधातु और ग्रेनाइट पत्थर की बनी बड़ी-बड़ी मूर्तियां थी। अष्टधातु की सभी मूर्तियां एक-एक कर चोरी हो गईं। लेकिन ग्रेनाइट पत्थरों की बनी मूर्तियां काफी भारी और बड़ी हैं।

इस वजह से चोरी नहीं हुई और वो अभी भी मंदिर में हैं। उनका कहना है कि मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता नहीं होने को लेकर हनुमान जी की बरामद मूर्ति दोबारा स्थापित नहीं हो सकी थी। यह बहुत दुखद है।

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