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पटना38 मिनट पहलेलेखक: चारुस्मिता
डॉ पल्लवी सिंह और सामाजिक कार्यकर्ता अमृता सिन्हा की जोड़ी।
22 मार्च को बिहार दिवस है। बिहार के निर्माताओं को उनके योगदान के लिए नमन करते हुए भास्कर ऐसी 10 शख्सियतों से रू-ब-रू करा रहा है, जो नई पहचान बने हैं। मिसाल बन रहे हैं। आज के हिसाब से नई पीढ़ी को जिनसे प्रेरणा मिल रही है। चौथे दिन, आज जानें कि दो बिहारी महिलाओं को क्यों लोग अब ‘पैड वुमेन’ कह रहे हैं-
हमारे समाज में पीरियड्स से जुड़े जितने मिथक हैं, उतनी ही लापरवाहियां भी। मासिक धर्म के दौरान महिलाएं रसोई में नहीं जा सकतीं, मंदिर में नहीं जा सकतीं, पूजा नहीं कर सकती, यहां तक कि दूसरों के साथ बैठ भी नहीं सकती। लापरवाहियों की बात करें तो जागरुकता के अभाव में गांव में महिलाएं कपड़ा, राख और पत्तों का इस्तेमाल अपनी जान जोखिम में डाल देती हैं। आज तेजी से बढ़ता बच्चेदानी का कैंसर इसी का परिणाम है। बिहार की दो महिलाएं अमृता सिंह और पल्लवी सिन्हा ने पीरियड्स को शर्म नहीं, गर्व का सिंबल बनाया। किशोरियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं के बीच जागरुकता मुहिम चलाई। इसी का परिणाम है कि आज बिहार के 20 जिलों में उनके प्रयास से संचालित मोबाइल पैड बैंक ने युगांतकारी परिवर्तन लाया है।
बनता है पासबुक, हेल्थ कार्ड से काउंसिलिंग
पैड बैंक के लिए महिलाओं का अकाउंट खुलता है। इसके लिए पासबुक भी बनते हैं। हर महीने इसी पासबुक से महिलाओं को सैनिटरी पैड दी जाती है। इसके अलावा महिलाओं को शी केयर हेल्थ कार्ड से फ्री काउंसिलिंग भी दी जाती है। अमृता सिंह एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जबकि पल्लवी एक डॉक्टर। इसलिए दोनों की जोड़ी महिलाओं को शारीरिक से लेकर मानसिक समस्याओं का हल दे रही हैं। पल्लवी सिन्हा ने बताया कि महिलाओं को पीरियड्स के दौरान हाइजीन का ख्याल नहीं रखने से बच्चेदानी का कैंसर तक हो जाता है। हमलोग महिलाओं को पीरियड्स से जुड़ी हर समस्याओं को समझाते हैं।
एक हजार की जनसंख्या पर 1 पैड बैंक
नवादा, बेगूसराय, पूर्णिया, जमुई, छपरा, सीवान, मधुबनी सहित 20 जिलों में इन्होंने मोबाइल बैंक की स्थापना की है। ये पंचायत स्तर पर पैड बैंक बनाती हैं। प्रति हजार जनसंख्या पर 1 पैड बैंक की स्थापना करती हैं। इन्होंने इस बैंक की शुरुआत 2017 से पटना के सेमी अरबन इलाकों से की थी, जहां ये दोनों जाकर महिलाओं को पीरियड्स के बारे में जागरूक करती थीं। पल्लवी सिन्हा ने बताया कि गांव की दुकानों में दुकानदार इसलिए पैड नहीं रखते, क्योंकि वहां पूजा की सामग्री बिकती है। ऐसे में पैड मिलना तो दूर, इसके बारे में सोचना भी बेकार है। हमारा पैड बैंक इसी सबका तोड़ है।
5 रुपए में मिलते हैं 2 पैड
पैसे इसलिए, क्योंकि फ्री की चीजों का मोल नहीं होता। इनका कॉन्सेप्ट यही है। शुरुआत में 2 साल तक इन्होंने फ्री में पैड बांटे, लेकिन महिलाओं ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद इन्होंने सस्ते में पैड देना शुरू किया। बाजार में जहां पैड 35-40 रुपए में मिलने शुरू होते हैं, वहीं इनका पैड 5 रुपए में आ जाता है। 5 रुपए में दो पैड मिल जाते हैं। इसलिए महिलाएं इसे खूब पसंद कर रही हैं। साइज और संख्या के हिसाब से 5-75 रुपए तक के पैक उपलब्ध हैं। इनके साथ ये महिलाओं को कॉटन के री-यूजेबल 2 पैड मुफ्त में देती हैं।
लॉकडाउन में बनाया मोबाइल पैड बैंक
अमृता सिंह और पल्लवी सिन्हा ने लॉकडाउन के दौरान मोबाइल पैड बैंक बनाया। चूंकि उस समय घर से निकलना मुश्किल था, इसलिए इन्होंने घर-घर जाकर पैड पहुंचाना शुरू किया। इस दौरान पटना के विभिन्न इलाकों में गाजे-बाजे के साथ दो महिलाएं ऑटो से पहुंचती थीं और जरूरत के हिसाब से पैड देती थीं। अब यह मोबाइल बैंक महिलाओं के बीच काफी प्रचलित हो गया है। लोग ऑर्डर देकर इन्हें बुलाते हैं। इसकी खासियत है कि ऑटो में ड्राइवर भी महिला हैं और पैड देने वाली भी महिला ही। अमृता सिंह ने बताया कि इससे महिलाएं अपने साइज और जरूरत के अनुसार पैड चुनने में सहज महसूस करती हैं। इसलिए उन्हें यह काफी पसंद आ रहा है।
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