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मुंगेरएक घंटा पहले
क्या आपने कभी बच्चों को हाथ में नरमुंड लेकर नृत्य करते देखा है? कुछ ऐसा ही नृत्य मुंगेर के आनंदमार्गी बच्चे करते हैं। उनके एक हाथ में नरमुंड होता है तो दूसरे हाथ में खंजर। इसे लेकर वे शिव तांडव करते हैं। ऐसा नजारा आनंद मार्ग धर्म महासम्मेलन में बाबा नाम केवलम अष्टक्षरी मंत्र पर देखने को मिला। कलाबाजी करते हुए उछलते बच्चों को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। नृत्य के दौरान लगभग बच्चे 22 तरह की कलाएं करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे किसी तरह की बीमारियां पास नहीं भटकती।
भय मुक्ति और रक्षा का प्रतीक तांडव
जब इस संबंध में आनंद मार्ग के आचार्य मुक्तेश्वरानन्द अवधूत से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि हमारे गुरु आनंदमूर्ति सरकार ने 6 सितंबर 1978 को इस नृत्य की शुरुआत की थी। इंसान को मृत्यु से हमेशा भय लगा रहता है। नरमुंड मृत्यु का प्रतीक है। इसे ही अगर हाथ में लेकर नृत्य करेंगे तो भय समाप्त हो जाएगा। इसी कारण से इस नृत्य के दौरान नरमुंड एक हाथ में दिया जाता है। नरमुंड के अलावे सांप या कोई भय का प्रतीकात्मक भी हाथ में ले सकते हैं। दूसरे हाथ में खंजर, छुरी या चाकू लेकर बच्चे शिव तांडव में हिस्सा लेते हैं। उन्होंने बताया कि खंजर का अर्थ है कि रक्षा। आत्मरक्षा करना है। यह वैज्ञानिक तरीके से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
नरमुंड मृत्यु का प्रतीक है।
मन में साहस जगाता है
दरअसल, आनंद मार्ग के प्रवर्तक “बाबा” श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने 6 सितंबर 1978 को कौशिकी इस नृत्य के जन्मदाता हैं। यह नृत्य शारीरिक और मानसिक रोगों की औषधि है। आचार्य ने बताया कि महिला जनित रोगों के लिए यह नृत्य रामबाण है। इस नृत्य के अभ्यास से 22 रोग दूर होते हैं। सिर से पैर तक अंग-प्रत्यंग और ग्रंथियों का व्यायाम होता है। मनुष्य दीर्घायु होता है। यह नृत्य महिलाओं के सु प्रसव में सहायक है। मेरुदंड यानी स्पाइनल कॉर्ड के लचीलेपन की रक्षा करता है। मेरुदंड, कंधे ,कमर, हाथ और अन्य संधि स्थलों का वात रोग दूर होता है। महिलाओं के अनियमित ऋतुस्राव जनित त्रुटियां दूर करता है। ब्लाडर और मूत्र नली में के रोगों को दूर करता है। देह के अंग-प्रत्यंगों पर अधिकतर नियंत्रण आता है।
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