Home Bihar बिहार के मुंडेश्वरी माता मंदिर में अनोखी बलि: मंत्र पढ़ते ही मां के चरणों में बेहोश हो जाता है बकरा, पूजा के बाद जगाकर छोड़ देते हैं पुजारी

बिहार के मुंडेश्वरी माता मंदिर में अनोखी बलि: मंत्र पढ़ते ही मां के चरणों में बेहोश हो जाता है बकरा, पूजा के बाद जगाकर छोड़ देते हैं पुजारी

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बिहार के मुंडेश्वरी माता मंदिर में अनोखी बलि: मंत्र पढ़ते ही मां के चरणों में बेहोश हो जाता है बकरा, पूजा के बाद जगाकर छोड़ देते हैं पुजारी

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कैमूर, बिहार23 मिनट पहलेलेखक: अमित जायसवाल

हम बिहार के मुंडेश्वरी माता मंदिर में हैं, यहां खासी भीड़ है। जिनकी मन्नतें पूरी हुई हैं वो लोग अपने साथ बलि के लिए बकरे भी लाए हैं। नवरात्रि में यहां मन्नतें उतारने के लिए बलि दी जाती हैं। श्रद्धालु माता के जयकारे के साथ गर्भगृह में पहुंचे। एक ने अपने साथ लाए बकरे को बलि के लिए पंडित को दिया।

अब बलि होनी है। पंडित ने बकरे को उठाया लेकिन वो छटपटा रहा है। पंडित जी ने जोर लगाकर उसे उठाया और बलि के लिए माता के सामने रखा। कुछ मंत्र बुदबुदाए, जोर से माता का जयकारा लगाया, सारे श्रद्धालुओं ने भी जयकारा लगाया। बकरे को माता के चरणों में लिटाया गया। पंडितजी लगातार मंत्र पढ़ रहे हैं। कुछ सेकेंड्स ही गुजरे और बकरा बेहोश हो गया।

कुछ मिनट ऐसे ही पड़ा रहा जैसे एकदम गहरी नींद में हो। फिर पंडित जी ने माता का जयकारा लगाया। मूर्ति को छूकर एक हार लिया, मंत्र पढ़ा और बकरे पर जोर से फेंका। बेहोश पड़ा बकरा जाग गया। पंडितजी ने उसे उठाया और उस श्रद्धालु को लौटा दिया, जो उसे लेकर आया था। हो गई बलि। ना बकरे की गर्दन काटी गई, ना कोई खून की धार चली।

ये अनोखी बलि है बिहार के भभुआ के मुंडेश्वरी माता मंदिर की। ये पटना से 200 किमी दूर सासाराम के बाद आता है। ये मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि ये स्ट्रक्चर के लिहाज से देश में माता का सबसे पुराना मंदिर है। इसे 5वीं शताब्दी के आसपास का माना जाता है। 6ठी शताब्दी के दौरान इसे पहली बार एक चरवाहे ने देखा था। ये मंदिर अपने इतिहास के साथ ही यहां होने वाली रक्तहीन बलि के लिए भी जाना जाता है। यहां बकरे की जान नहीं ली जाती। बस मंत्रों से कुछ देर के लिए बेहोश कर दिया जाता है। इसे ही बलि माना जाता है।

मुंडेश्वरी माता मंदिर का स्ट्रक्चर मौजूदा मंदिरों में सबसे पुराना माना जाता है। 5वीं शताब्दी के करीब इसे बनाया गया था। अभी जो मंदिर है वो काफी टूटा-फूटा है। मुगल काल में इस मंदिर पर कई बार हमले हुए थे। तब से ये इसी हालत में है।

मुंडेश्वरी माता मंदिर का स्ट्रक्चर मौजूदा मंदिरों में सबसे पुराना माना जाता है। 5वीं शताब्दी के करीब इसे बनाया गया था। अभी जो मंदिर है वो काफी टूटा-फूटा है। मुगल काल में इस मंदिर पर कई बार हमले हुए थे। तब से ये इसी हालत में है।

600 फीट की ऊंचाई पर है मां मुंडेश्वरी का मंदिर

बिहार की राजधानी पटना से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर मां मुंडेश्वरी का मंदिर है। जो कैमूर जिले के भभुआ मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर भगवानपुर ब्लॉक स्थित रामपुर पंचायत में पंवरा पहाड़ी पर है। ये पहाड़ी 600 फीट की ऊंची है। नीचे से मंदिर जाने के दो रास्ते हैं। पहला सीढ़ियों से, दूसरा घुमावदार सड़क, जो 524 फीट की उंचाई तक जाती है। इन दोनों ही रास्तों के बाद फिर सीढ़ियों पर चढ़ मंदिर तक जाया जाता है।

हर दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक मंदिर खुला रहता है। दो साल के कोरोना काल के बाद इस नवरात्रि पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ रही है। बिहार के साथ ही यूपी से भी भक्त मां के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।

नवरात्रि में बड़ी संख्या में यहां श्रद्धालु बलि के लिए बकरे लेकर आते हैं। घंटों इंतजार करते हैं। तब बलि हो पाती है।

नवरात्रि में बड़ी संख्या में यहां श्रद्धालु बलि के लिए बकरे लेकर आते हैं। घंटों इंतजार करते हैं। तब बलि हो पाती है।

चरणों में लिटाते ही मूर्छित हो जाता है बकरा

मंदिर आने वाले श्रद्धालु मन्नत रखते हैं। जब उनकी मुराद पूरी हो जाती है तो बकरे की बलि देने आते हैं। मंदिर के पुजारी पिंटू तिवारी के अनुसार, सबसे पहले हवन कुंड पर मन्नत पूरी होने वाले श्रद्धालु का संकल्प कराया जाता है। वहां पर परिवार के लोगों के साथ ही बकरा भी होता है।

इसके बाद वो बकरे को मंदिर के गर्भगृह में ले जाते हैं। गर्भगृह में मां मुंडेश्वरी की प्रतिमा के चरणों के नीचे ही बकरे को लिटा देते हैं। मंत्र पढ़े जाते हैं, इसके बाद बकरा बेहोश हो जाता है। मां की पूजा के बाद वो बकरा खुद खड़ा हो जाता है। यही उसकी बलि होती है। कई भक्त ऐसे होते हैं जो बलि देने के बाद बकरे को छोड़ देते हैं। जबकि, कुछ घर ले जाकर उसकी बलि देते हैं फिर प्रसाद के रूप में उसे खाते हैं। यह बलि प्रथा कब से शुरू हुई, इसकी कोई जानकारी यहां किसी को नहीं है।

सदियों से चली आ रही है रक्तहीन बलि की प्रथा

पुजारी पिंटू तिवारी बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास ऐसा है कि इसके बारे में कोई सही सही जानकारी नहीं दे पाएगा। अभी सिर्फ पहाड़ी पर मंदिर का गर्भगृह है। जबकि पहले कभी यहां चारों तरफ मंदिर बने थे। बड़ा स्ट्रक्चर था। इसे मुगल शासकों ने तोड़ा था। इसके अवशेष आज भी यहीं पड़े हैं।

मंदिर को लेकर लोगों में आस्था का आलम ये है कि कई लोग अपनी मन्नतें पूरी होने पर दंडवत करते हुए आते हैं। कई लोग पूरी पहाड़ी पर ऐसे ही चढ़ाई करते हैं।

मंदिर को लेकर लोगों में आस्था का आलम ये है कि कई लोग अपनी मन्नतें पूरी होने पर दंडवत करते हुए आते हैं। कई लोग पूरी पहाड़ी पर ऐसे ही चढ़ाई करते हैं।

देवी ने पहाड़ी पर किया था असुर का वध

मान्यता के अनुसार, यहां चंड और मुंड नाम के दो असुर रहा करते थे। ये लोगों को प्रताड़ित करते थे, जिनकी पुकार सुन मां धरती पर आया और दोनों असुरों का वध किया। माता ने सबसे पहले चंड का वध किया। यह देख मुंड मां से युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया। पर देवी मां ने इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध किया। इसी के बाद से यह जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

नागा शैली में बनी है मंदिर

मां मुंडेश्वरी मंदिर न्यास समिति के कोषाध्यक्ष गोपाल कृष्ण बताते हैं कि 635 ईसा पूर्व जब इलाके के चरवाहे पहाड़ियों पर आते थे, उसी दरम्यान यह मंदिर देखा गया। मंदिर को जिस डिजाइन में बनाया गया, वो नागा शैली में है। ये शैली सदियों पुरानी है। उस वक्त किसका शासनकाल था, इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं।

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