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बेगूसराय6 मिनट पहले
भारत का 39 वां और बिहार का एकमात्र रामसर साइट दम तोड़ने की कगार पर पहुंच गया है। बेगूसराय स्थित कांवर झील का विकास विगत 32 वर्षों से बिहार सरकार, किसानों और मछुआरों के बीच पनपे हुए विवादों के लंबे फेहरिस्त में फंस गया है। साल 1989 में बिहार सरकार ने 6311 हेक्टेयर क्षेत्रफल को बर्ड सेंचुरी बनाने का घोषणा हुई, लेकिन धरातल पर हालात यह हैं कि लोगों को अबतक कांवर झील पक्षी बिहार के नोटिफाइड भूभाग की पैमाइश और सीमांकन का भी पता नहीं चल पाया है। भूगोलविदों के रिसर्च में कावर झील की अस्तित्व पर संकट बन गया है। हालांकि कावर झील के मामलों के हल के लिए इस दिशा में स्थानीय किसानों, मछुआरों, जनप्रतिनिधियों, समाजिक कार्यकर्ताओं, अधिकारियों और बिहार सरकार के द्वारा अथक प्रयास किया जा रहा है पर ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है।
दम तोड़ने की कगार पर पहुंच गया है कांवर झील
न्यायलयों में चल रहे हैं भू स्वामित्व के कई केस
कांवर झील पक्षी बिहार के नोटिफिकेशन के बाद क्षेत्रफल में आने वाले कई भूस्वामियों ने उच्च न्यायालय में स्वामित्व का वाद दायर किया । बताते चलें कि कावर के मामलों के यहां मुख्यतः तीन पक्षकार है जिसमें किसान, मछुआरे और बिहार सरकार शामिल है। कांवर झील 19 वीं सदी में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त कर चुका था, जब इसे रामसर साइट का दर्जा दिया गया पर कालांतर में इसका दर्जा छीन गया था, जो कि पिछले साल फिर से इसे रामसर साइट में में शामिल किया गया है । इस क्रम में कई बार फंड भी अलॉट हुआ, लेकिन कार्ययोजना के अभाव में घोषणाएं मूर्त रूप धारण नहीं कर सका।
किसान और सरकार के बीच फंस गया है पर्यटन का विकास
अंतरराष्ट्रीय धरोहर कांवर झील बिहार का एक मात्र रामसर साइट घोषित हुआ है। कई दशक पहले ही इसे पक्षी बिहार का दर्जा दिया गया। आशा के अनुरूप अब तक इसके विकास की दिशा में सार्थक पहल नहीं हुआ। मंझौल स्थित बौद्ध स्तूप, कांवर झील, पक्षी बिहार, जयमंगला गढ़ आदि के विकास की दिशा में कदम नहीं बढ़े हैं। मछुआरों के लिए मछली पालन की परियोजना अधर में लटकी हुई है।
रामसर साइट घोषित करने के बाद भी जल प्लावित भूभाग में 36% की कमी
सिकुड़ता जा रहा है झील
कांवर झील पर किसानों और मछुआरों के बीच खींचतान काफी समय से चल रहा है । बीते दशकों में साल दर साल जल प्लावित भूभाग सिकुड़ गया है। एक आंकड़े के मुताबिक मानसून के मौसम में कांवर झील पक्षी बिहार के नोटिफाइड एरिया के कुल भूमि का 4,500 हेक्टेयर पर जल जमाव हो रहा है। झील के वेटलैंड के सूची में रामसर साइट घोषित करने के बाद भी 36% की कमी आ गयी है। उद्धारकर्ता जलोढ़ पारिस्थितिक प्रतिष्ठान सोसायटी के अनुसार, हर साल लगभग 3.8 सेमी गाद काँवर झील में जमा होती है, जिससे झील की गहराई कम हो जाती है। प्रदूषण और अपशिष्ट सहित अन्य प्रमुख समस्या से झील को भी खतरा हो रहा है। ऐसी ही स्थिति बनी रही तो भविष्य में यह झील सूख जाएगी ।
मंगला मंदिर में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
विदेशी और देसी पक्षी आते हैं घूमने
इस बर्ड संचुरी में 59 तरह के विदेशी और 107 तरह के देसी पक्षी ठंडे के मौसम में दिख जाते हैं। इस झील की मछली की स्वाद बिहार भर के लोगों की जेहन में बसा हुआ है। पुरातत्वीय महत्व का बौद्धकालीन हरसाइन स्तूप और सिद्धपीठ माता जयमंगला का मंदिर भी इसी क्षेत्र में स्थित है। कहा जाता है कि यहां भगवान बुद्ध भी आए थे। कावर झील के बीचो बीच 52 शक्तिपीठों में एक शामिल माता जय मंगला का मंदिर स्थित है। यहां सालों भर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ माता की पूजा अर्चना करने के लिए उमड़ती है।
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