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पटना32 मिनट पहले
डीजीपी को हड़काने वाले अभिषेक और आईपीएस आदित्य कुमार प्रकरण में डीजीपी एसके सिंघल ने पहली बार अपना मुंह खोला है। अब तक डीजीपी एसके सिंघल चुप रहे थे। कुछ कह नहीं रहे थे। अभिषेक अग्रवाल ने पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल बनकर कर इनको खूब हड़काया था। अब संजीव कुमार सिंघल कह रहे हैं कि यह मामला पूरी तरह से सेंसेटिव है पेचीदा है। जांच एजेंसी या काम कर रही है। इस पर कुछ ज्यादा नहीं बोला जा सकता है। वही, सुशील मोदी ने इस मामले सीबीआई जांच कराने की मांग की है।
डीजीपी एसके सिंघल ने बताया कि इस पर क्या राजनीति हो रही है इस पर कुछ नहीं कहना है। लेकिन जो हमारी जांच एजेंसियां हैं वह इस पर जांच कर रही है। हमें सीबीआई की जरूरत नहीं है। हमारी जांच एजेंसियां कई तरह की है। अलग-अलग जांच एजेंसियां अलग अलग तरीके से काम करती है। तो वह सभी जांच एजेंसियां काम कर रही हैं। इसके लिए मुझे सीबीआई की जरूरत नहीं है। एसके सिंगल आज BMP5 में परेड के निरीक्षण के लिए पहुंचे थे। तब उन्होंने यह बताया कि आईपीएस आदित्य और अभिषेक अग्रवाल का मामला काफी पेचीदा और सेंसेटिव है इस पर सजग होकर काम हो रहा है।
इधर, विपक्षी दल DGP की भूमिका पर सवाल उठा रहे है। BJP नेता सुशील मोदी ने कहा कि कि गया में शराब बरामद होने से लेकर वहांँ के तत्कालीन एसपी के ट्रांसफर और FIR से दोषमुक्त करने तक पूरे मामले में फर्जी कॉल के आधार पर फैसले करने वाले डीजीपी एसके सिंघल की भूमिका संदेह के घेरे में है। इस मामले की जांच सीबीआई या किसी अन्य सक्षम एजेंसी से करायी जानी चाहिए। मोदी ने कहा कि जब एसपी स्तर के अधिकारी को बचाने और लाभ पहुंचाने का संदेह डीजीपी पर है, तो उनके नीचे काम करने वाली आर्थिक अपराध इकाई ( ईओयू) निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती।
जानिए क्या है IPS का शराब कांड
IPS आदित्य कुमार गया में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात रहे। शराब तस्करों से सेटिंग का आरोप लगा था। साल 2021 में 8 मार्च को शराब की खेप बरामद की गई थी। इसके बाद 26 मार्च को कार से शराब की खेप बरामद हुई थी। दोनों ही मामलों में शराबबंदी कानून को तोड़ने के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के बजाए सनहा दर्ज किया गया। यह खेल फतेहपुर थाना के तत्कालीन थानेदार ने किया। शराबबंदी कानून में तस्करों की सेटिंग का मामला जब सुर्खियों में आया तो तत्कालीन एएसपपी मनीष कुमार ने जांच की और रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ। जांच रिपोर्ट में थानेदार संजय कुमार की बड़ी मनमानी सामने आई। एएसपी मनीष कुमार ने तत्कालीन एसएसपी आदित्य कुमार को जांच रिपोर्ट सौंप दी।
पूर्व एसएसपी की बड़ी सेटिंग से खेल
एसएसपी ने बड़ी सेटिंग की और आरोपित थानेदार संजय कुमार को कागजी कार्रवाई के बाद निलंबित कर दिया, लेकिन यह निलंबन सिर्फ दिखावे वाला ही था। एसएसपी ने एक माह भी इंतजार नहीं किया, महज 15 दिन में ही आरोपित संजय कुमार को बाराचट्टी का थानेदार बना दिया। नियुक्ति के एक माह बाद आईजी ने आरोपित थानेदार संजय कुमार का ट्रांसफर औरंगाबाद कर दिया, बाद में जब मामला पुलिस मुख्यालय तक पहुंचा तो, अफसरों में खूब चर्चा होने लगी। इसके बाद आरोपित थानेदार संजय कुमार को निलंबित कर दिया गया।
इस गंभीर मामले में आदित्य कुमार की मुश्किलें कम नहीं हुईं। आरोपी थानेदार संजय कुमार के साथ उनके खिलाफ गया के फतेहपुर थाना में केस दर्ज कराया गया था। उत्पाद अधिनियम के खिलाफ दर्ज मामले में पूर्व एसएसपी और पूर्व थानेदार की जमानत याचिका भी स्पेशल एक्साइज कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इस मामले को लेकर पुलिस महकमे की काफी किरकिरी हुई थी।
खुद डीजीपी ने दिए थे जांच के आदेश
गया में शराबबंदी कानून के उलंघन में थानेदार और एसएसपी की मनमानी से हुई बिहार पुलिस की किरकिरी के बाद डीजीपी ने मामले में संज्ञान लिया। इसके बाद डीजीपी ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिए। जांच के दौरान आरोप पूरी तरह से सही पाया गया, जिसके बाद पुलिस अधीक्षक हेडक्वार्टर अंजनी कुमार सिंह ने गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार और फतेहपुर के पूर्व थानेदार रहे संजय कुमार के खिलाफ फतेहपुर में ही मामला दर्ज कराया था। डीजीपी ने खुद जिस मामले की जांच के आदेश दिए और जांच में आरोपों की पुष्टि से संबंधित रिपोर्ट उनके पास आने के बाद भी आईपीएस आदित्य कुमार को बचाने में डीजीपी ने पूरा जोर लगा दिया।
साइबर अपराधियों के जाल में फंसकर डीजीपी से आईपीएस को बेदाग करा दिया। डीजीपी के लिए यह बड़ा सवाल है, क्योंकि ऐसे आरोपी आईपीएस की जांच रिपोर्ट की पुष्टि होने के बाद भी राहत की बारिश करना कहीं न कहीं से डीजीपी को भी दागदार बना रहा है। सितंबर महीने में आरोप मुक्त किए गए आईपीएस आदित्य कुमार के लिए अब पोस्टिंग की फील्डिंग चल रही थी, लेकिन मामला सीएम हाउस पहुंचा जहां से पूरा नेटवर्क खंगाल लिया गया। सेटिंग ऐसी हुई कि केस के आईओ मद्य निषेध विभाग के डीएसपी सुबोध कुमार ने पूर्व एसएसपी को शराब के मामले में निर्दोष बता दिया।
IPS ने दोस्त को चीफ-जस्टिस बना DGP को कराए फोन:50 बार कॉल किए, DGP ने IPS से जुड़े केस खत्म भी कर दिए
बिहार कैडर के IPS आदित्य कुमार ने अपने ऊपर शराबबंदी से जुड़े केस को खत्म कराने के लिए अपने दोस्त को हाईकोर्ट का फर्जी चीफ जस्टिस बना दिया। इस फर्जी चीफ जस्टिस ने DGP एसके सिंघल को फोन कर केस खत्म करने के लिए कहा। वह भी एक नहीं, 40 से 50 बार। केस खत्म होने के बाद खुफिया इनपुट से मामले का खुलासा हुआ। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिए
फर्जी चीफ जस्टिस के ऑर्डर फॉलो करने की इनसाइड स्टोरी:DGP ने SSP को शराबकांड से बरी ही नहीं किया, पोस्टिंग की अनुशंसा भी की
बिहार पुलिस के मुखिया साइबर फ्रॉड में फंसते गए। चीफ जस्टिस के नाम पर अपराधी जो कहता गया, वह वही करते गए। विभाग के सबसे बड़े अफसर के साथ हुई इस घटना ने सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे बड़ा सवाल डीजीपी के दावे में है, कि जब उन्हें शक हो गया तो फिर IPS को शराब कांड से क्यों बरी कर दिया? भास्कर की पड़ताल में यह सामने आया है कि डीजीपी ने IPS अफसर आदित्य कुमार को शराब कांड में बरी ही नहीं किया, बल्कि मनचाही पोस्टिंग की अनुशंसा भी की थी। …
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