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नई दिल्ली: बिहार चुनावों के दौरान सियासी समर जारी है. सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. ‘जंगलराज’, ‘सोशल इंजीनियरिंग’ और ‘सुशासन’ के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि इस बार हवा का रुख क्या है? Zee News के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार की चुनावी जंग, फ्री में कोरोना वैक्सीन देने, पुलवामा हमले पर पाकिस्तान के कबूलनामे जैसे विषयों पर अपनी बात रखी.
सवाल-1: नड्डा जी आपका बहुत बहुत स्वागत है ZEE NEWS पर. बिहार में आजकल आप बहुत व्यस्त हैं लेकिन वहां से जो रिपोर्ट आ रही है उसमें लोग कह रहे हैं कि मामला बहुत टाइट है और तेजस्वी यादव आप लोगों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं?
जवाब: ऐसा कोई विषय नहीं है. बिहार में लोगों का बड़ा स्पष्ट समर्थन प्रधानमंत्री मोदी के कामों को लेकर है और उसको जमीन पर नीतीश कुमार जी ने बखूबी उतारा है. इसलिए एक बदलती हुई तस्वीर बिहार के सामने आई है और बिहार के वोटर्स इस बात को जानते हैं कि बिहार को पीछे किसने धकेला और फिर बिहार को वापस ट्रैक पर कौन लाया है? ये जरूर होता है कि जो पढ़ा लिखा वोटर्स होता है (खासकर जो संवेदनशील होता है) वो वोकल नहीं होता. तो इसलिए कई लोगों को इस तरह की धारणा हो जाती है. लेकिन सच्चाई ये है कि एनडीए (NDA) के प्रति लोगों में रुझान है, मोदी जी के प्रति लोगों में रुझान है और मोदी जी के साथ-साथ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जिन्होंने सुशासन देने का काम किया है और ये बहुत ही वाइड गैप है. जंगलराज में और सुशासन में. लोगों को मालूम है कि कौन सी परिस्थिति में हम रह रहे थे और कौन सी परिस्थिति में आज बिहार पहुंचा है. डेवलपमेंट, सोशल इंडिकेटर, सोशल सेक्टर के इंडिकेटर, हेल्थ, शिक्षा, कनेक्टिविटी ये सब बहुत बड़े मुद्दे हैं और बिहार के लोग बहुत जागरूक हैं. लोगों की अकांक्षा पूरी करने वाला बिहार है और बिहार के लोगों की अकांक्षा पूरी ना हो तो उसको वो कदापि बर्दाश्त करने वाले नहीं हैं. मुझे बड़ा स्पष्ट तरीके से दिख रहा है कि एनडीए के प्रति लोगों में रुझान है और कोई भी कड़ी टक्कर नहीं है. जहां तक रही बात आरजेडी (RJD) की तो उनका ना कैरेक्टर बदला है, ना चाल बदली है, ना ही उनकी कार्यशैली बदली है. इसलिए उन पर विश्वास करना मैं असंभव भी मानता हूं. ये ठीक है उनका एक चुना हुआ वोट है, उनके खास लोग हैं जो वोकल और अग्रेसिव हैं. इसलिए चुनाव के दौरान दिखता है. लेकिन सच्चाई ये है कि उनके नीचे की जमीन खिसक चुकी है और जमीन एनडीए के साथ है.
सवाल-2: मैंने ये सवाल इसलिए पूछा आपसे, जब आप जंगलराज की बात करते हैं तो जंगलराज का ‘पोस्टर ब्यॉय’ आपने बनाया लालू जी को, और लालू जी के बेटे की रैली में ही जबरदस्त भीड़ है तो उससे ऐसा लगता है कि वो अच्छी टक्कर दे रहे हैं आपको?
जवाब: वो ठीक है. उनकी रैली भी आपने देखी होगी. अब शुरू की रैली और अब की रैली में भी अंतर आ गया है. उनका जो वोटर है वो ही सपोर्टर है और उनको उन्होंने संगठित तरीके से लाकर ऐसी तस्वीर दिखाने की कोशिश की. लेकिन इसका नुकसान क्या हुआ कि लोगों को समझ में आ गया कि यही लोग सरकार में आएंगे. इसलिए वोटर बड़ा जागरूक हुआ, जागृति है भी उनमें. उनको समझ में आया इसलिए लोग एनडीए के पक्ष में झुके हैं.
सवाल-3: RJD जब इससे पहले सत्ता में रही तब वो सोशल इंजीनियरिंग की बातें करते थे. अभी आपने एक शब्द इस्तेमाल किया सोशल इंडिकेटर, डेवलपमेंट. तो क्या आपको लगता है बिहार में जहां हमेशा जातिवाद के नाम पर वोट होता था, इस बार वहां कुछ आपको बदलाव दिख रहा है?
जवाब: वो सोशल इंजिनियरिंग नहीं करते थे. सोशल इंजीनियरिंग हम लोगों ने की है. सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास. सबको लेकर चलने का काम हमने किया है. उन्होंने समाज को बांटा है और बांट करके और किसी को वोकल करके उनकी ही सरकार चलती है, इस तरीके का वातावरण बनाया और इस कॉम्बिनेशन को खड़ा किया है. उन्होंने समाज को बांटा और हमने समाज को जोड़ा. जब आप एनडीए बोलते हैं तो एनडीए में समाज के सारे वर्ग हैं. अति पिछड़ा से लेकर दलित, अगड़े सबका समावेश है. उन लोगों ने सबको बांटा. वो कहते हैं ये मेरा है, वो मेरा नहीं है. सोशल डिवीजन किया. नीतीश कुमार और पीएम मोदी ने सबको साथ लेकर चलने का काम किया है और सोशल इंडिकेटर पर काम किया है. सोशल इंडिकेटर की समझदारी नीतीश कुमार की भी है और पीएम मोदी की तो बहुत ही है. लेकिन तेल पिलावन और लाठी भांजन लोगों को सोशल इंडिकेटर से दूर दूर का भी नाता नहीं है.
सवाल-4: लेकिन बिहार के लोगों को आदत है पीएम मोदी और नीतीश कुमार को एक फ्रेम में देखने की? शायद ये आदत उन्हें नहीं पड़ी है. जब लोग उन दोनों को एक पोस्टर में देखते होंगे तो हो सकता है कि उन्हें अजीब लगता हो और ये इसलिए क्योंकि आप कह रहे हैं कि नीतीश आपके ऐसेट हैं लेकिन विरोधी कह रहे हैं कि वो ही आपके लिए सबसे बड़े बोझ हैं?
जवाब: देखिए मैं आपको फिर बताऊंगा बिहार के लोग बड़े जागरूक हैं. उन्होंने देखा कि पिछला चुनाव जब नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा. लड़ तो लिया, जीत तो गए, चीफ मिनिस्टर तो बने लेकिन, आरजेडी का कैरेक्टर कुशासन का है, जंगलराज का है और इनका कैरेक्टर सुशासन का है तो दोनों की ये केमिस्ट्री मिलनी नहीं थी. लेकिन जैसे ही वो पीएम मोदी के साथ आए तो केमिस्ट्री मिल गई और बिहार की जनता जागरूक है. कहां केमिस्ट्री मिलती है, कहां अस्वाभाविक गठबंधन है. आपको याद होगा जब ये लोग महागठबंधन में गए थे तो मैंने कहा था ये बेमेल गठबंधन है और ये ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है. मुझे मालूम था कि ये केमिस्ट्री मिलती ही नहीं है और अब ये केमिस्ट्री मिल रही है. यही बिहार की जनता भी मानती है. इसलिए बिहार की जनता मुहर लगाने के लिए आतुर है.
सवाल-5: इस चुनाव में एक नए हनुमान की एंट्री हुई है वो हैं चिराग पासवान. उनसे कितना नुकसान होगा या फायदा होगा क्योंकि उन्होंने कंफ्यूजन की स्थिति पैदा करके रखी है और हो सकता है कि ये कंफ्यूजन बीजेपी के अपने कार्यकर्ताओं में भी हो?
जवाब: देखिए, चिराग पासवान को लेकर कन्फ्यूजन आधे दिन से ज्यादा नहीं रहा. उस समय तक रहा जब तक बीजेपी ने बयान नहीं दिया. जिस समय बीजेपी ने ये बयान दे दिया कि एनडीए में बीजेपी, जनता दल यूनाइटेड, हम पार्टी, वीआईपी पार्टी है और किसी से कोई संबंध नहीं है. जब हमने एलजेपी के बैनर पर खड़े लोगों के खिलाफ एक्शन लिया तो सब कुछ स्पष्ट हो गया कि हमारा चिराग से कोई संबंध नहीं है. बीजेपी में इस तरह का कंफ्यूजन नहीं होता क्योंकि बीजेपी कैडर आधारित पार्टी है जहां जनता सीधे जुड़ी है. इसलिए कैडर को एक निर्देश समझ में आता है और जनता को अपने लीडर की बात तुरंत समझ में आ जाती है.
सवाल-6: अगर आप ये ऐलान कर देते कि हम केंद्र से भी एलजेपी को हटा रहे हैं. सब जगह से, राज्य से भी और केंद्र से भी तो ये कंफ्यूजन बिल्कुल ही खत्म हो जाता?
जवाब: देखिए, बीजेपी की एक आदत रही है और एनडीए की तरफ से किसी को ना नहीं कहा गया है. लोग अपने आप से जाते हैं और आने वाले लोगों का हमेशा स्वागत भी रहता है. हमने किसी को ना नहीं कहा है लेकिन हां, किसकी पार्टनरशिप कितनी रहती है ये हम तय करते हैं अपने एलायंस पार्टनर के साथ मिलकर. इसलिए चिराग से कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी. बिहार में हमने स्पष्ट कह दिया कि हमारा ये अलायंस है. एलजेपी को भी हमने ऑफर किया लेकिन हर पार्टी की अपनी रणनीति होती है. किसी की अपनी महत्वाकांक्षा होती है. वो अपनी महत्वाकांक्षा की वजह से गए तो हमने इसे स्वीकार कर लिया लेकिन हमारा वोट उनके साथ जाएगा ये संभव नहीं है.
सवाल-7: आपको ऐसा लगता है कि चिराग पासवान थोड़ा ज्यादा महत्वाकांक्षी हो रहे हैं? बड़ी जल्दी फास्ट ट्रैक पर जाने की कोशिश कर रहे हैं?
जवाब: देखिए, ये तो समय बताएगा. हमने उनको समझाने की बहुत कोशिश की और रामविलास जी का अनुभव कुछ और था, चिराग का कुछ और है और जाहिर है कि अनुभव का असर फैसले पर दिखता है. ये तो उनकी पार्टी की बाते हैं, वो जानें, वो अपनी पार्टी को कैसे चलाते हैं?
सवाल-8: बहुत सारी पार्टियां पुत्रमोह में चलती हैं. आप तो जानते हैं?
जवाब: इस मामले में तो मैं कहता हूं कि बीजेपी अकेली पार्टी है जहां पार्टी परिवार है. बाकी जगह परिवार ही पार्टी है. तो ये अंतर जगजाहिर है.
सवाल-9: इतने साल हो गए नड्डा जी तो भी ऐसा लगता है कि बीजेपी बिहार में अभी भी जूनियर पार्टनर के तौर पर चुनाव लड़ रही है और मुख्यमंत्री आप दूसरी पार्टी से इंपोर्ट कर रहे हैं? यही बात तो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे भी कह रहे थे कि गठबंधन धर्म निभाइए और मुख्यमंत्री आप उद्धव ठाकरे को बना दीजिए? महाराष्ट्र में आप तैयार नहीं हुए और बिहार में तैयार हो गए?
जवाब: हर राज्य की परिस्थिति अलग-अलग होती है. हम बिहार में जूनियर पार्टनर नहीं है, बराबर के पार्टनर हैं. आपको ये बात सीट के बंटवारे में दिखी होगी. जहां तक लीडरशिप का सवाल है तब उस चेहरे को देखते हैं जिसकी अपनी पहचान है और बिहार में सुशासन की पहचान हैं नीतीश कुमार. उनको हमने तब मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया था जब हमारे पास संख्या कम थी और हम उस गठबंधन धर्म को तब से निभाते जा रहे हैं. उसी धर्म को निभाते हुए हमने बराबरी के पार्टनर होने के बावजूद ऐलान किया कि बिहार में नीतीश ही हमारे नेता होंगे. हमारा संख्या बल भी अच्छा है और प्रदर्शन भी अच्छा होगा और संख्या बल ज्यादा होने के बावजूद भी हम नीतीश को ही अपना नेता मानेंगे. जहां तक महाराष्ट्र का सवाल है, वहां धोखा शिवसेना ने किया. क्योंकि वहां हमने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया था. हमने हर मंच पर जहां उद्धव ठाकरे भी होते थे वहां फडणवीस को ही मुख्यमंत्री बताया था. प्रधानमंत्री ने भी कहा- मैं नरेंद्र और महाराष्ट्र में देवेंद्र. ये घोषित बात थी और इससे हम पीछे नहीं हट सकते थे. ये तो उनके मन में लालच आया या उन्होंने धोखा दिया. ऐसा नहीं कि हमने घोषणा नहीं की थी या उद्धव ठाकरे को मालूम नहीं था कि देवेंद्र ही चेहरा हैं. सीटों का बंटवारा हुआ था और सबको स्वीकार था और देवेंद्र ही मुख्यमंत्री होंगे ये साफ था. हर राज्य में हम अलग रणनीति के साथ चलते हैं और हम जानते हैं हमारी ताकत क्या है और कमजोरी क्या है? हमको क्या मानना चाहिए और क्या नहीं मानना चाहिए. उसी के आधार पर हम फैसला लेते हैं. बिहार में हम जानते हैं चेहरा नीतीश कुमार हैं, हम बराबरी के पार्टनर हैं. ताकत हमारी है, ताकत उनकी की भी है. दोनों मिलकर सरकार बनाएंगे. चीफ मिनिस्टर नीतीश कुमार होंगे.
सवाल-10: नीतीश कुमार के ऊपर आप कितना भरोसा आप कर सकते हैं? नीतीश कुमार के साथ भी आपकी पार्टी के संबंध बीच में खराब हुए और वो भी कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में, तो आप उनपर कितना भरोसा कर सकते हैं कि ये संबंध आगे चलेगा और वो ऐसा काम नहीं करेंगे जो उद्धव ठाकरे ने किया?
जवाब: विश्वास पर ही दुनिया चलती है और हमें पूरा भरोसा है क्योंकि उन्होंने भी उस पाले में जाकर देख लिया है और मैं तो कहता हूं केमिस्ट्री मेल तो खाती नहीं है. सुशासन का कुशासन से संबंध नहीं है और आरजेडी का कोई कैरेक्टर नहीं बदला है. आरजेडी के अहंकार में कोई कमी नहीं आई है और प्रशासन के बारे जानकारियां बहुत ही सीमित है. मुख्यमंत्री रहते नीतीश ने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी को देख लिया है. तेज प्रताप को स्वास्थ्य मंत्री के रुप में देख लिया है. हेल्थ विभाग का क्या हाल किया था वो भी देख लिया है. मैं हेल्थ मिनिस्टर था मुझे मालूम है और तब मुझे कहीं आगे जाकर बिहार की हेल्थ की चिंता करनी पड़ी. तेज प्रताप घोड़े से नहीं उतरे और तेजस्वी ने कोई काम नहीं किया. एक उदाहरण देता हूं, पिछले साल तेजस्वी एक भी दिन विधानसभा में नहीं गए. विपक्ष के नेता बजट सत्र में आए ही नहीं, इस बात से पता चलता है कितना अहंकार है उनमें. इसलिए मुझे तो वो पूरा विश्वास है कि नीतीश जी उस तरह का एक्सपेरिमेंट दोबारा नहीं करेंगे. बिहार पिछले 3 साल में ट्रैक पर आया है. 11 मेडिकल कॉलेज मिले हैं, एक नया एम्स मिला है. 14 हजार करोड़ हाईवे पर खर्च हुए हैं. बिहार की बदलती तस्वीर है. फ्लाईओवर पर हो गया है सारा बिहार. जो कभी कल्पना नहीं कर सकते थे. छोटे बड़े शहरों में ओवरब्रिज बन गए हैं. गुमटियों पर लोगों को पहले घंटों इंतजार करना पड़ता था. बिहार के लोग बहुत सहनशील हैं और उनकी आकांक्षाओं को नीतीश कुमार ने पूरा किया और मोदी जी ने इस काम में साथ दिया. इन तीन सालों में बिहार में जो विकास हुआ है उसको ध्यान में रखते हुए इस तरह की परिस्थिति नहीं आएगी.
सवाल-11: आप जब चुनाव प्रचार में जा रहे हैं. आप जाएं या मोदी जी जाएं, हर जगह आप चीन या फिर कोरोना का मुद्दा उठा रहे हैं. क्या हम मान लें कि जब चुनाव के नतीजे आएंगे तो कोरोना वायरस और चीन के मुद्दे पर जनता ने अपना फैसला सुनाया होगा?
जवाब: बीजेपी नेशनल पार्टी है और नेशनल पार्टी की अकांक्षा बिहार की जनता में भी है. ऐसे में मैं अगर राम जन्मभूमि का विषय उठाऊं तो क्या बिहार से लोग कारसेवक के तौर पर अयोध्या नहीं गए थे? अनुच्छेद 370 की बात करूं तो क्या एकता यात्रा में बिहार के लोग बड़ी संख्या में लाल चौक नहीं गए थे क्या? तो राष्ट्रीय मुद्दे भी उन्हें उतना ही प्रभावित करते हैं और बिहार भी राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर आगे रहता है. तो इसलिए ये मुद्दे उनको भाते हैं. आपने चीन की बात की, गलवान घाटी में बिहार रेजिमेंट के लोग ही थे जो शहीद हुए इसलिए इन मुद्दों को जनता के सामने लाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है. लेकिन उसके साथ-साथ हम सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दों की बात नहीं करते, हम उनको जमीन पर सड़क भी दिखाते हैं, उनको स्कूल भी दिखाते हैं. बच्चियों को पोशाक और साइकिल देकर महिलाओं को बराबरी का दर्जा और सम्मान देने की बात भी करते हैं. लेकिन उसके साथ साथ उनके सामने राष्ट्रीय मुद्दे भी लाते हैं क्योंकि बिहार के लोग बहुत जागरुक हैं. मेरे बचपन के 20 साल बिहार में गुजरे.
सवाल-12: आपके बारे में तो लोग कहते हैं कि पहाड़ी कम, बिहारी ज्यादा हैं आप?
जवाब: मैं दोनों हूं. लेकिन हां, बिहार से लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने नेशनल कॉल दी, कहां से दी? बिहार से दी और बिहार के लोगों ने उस आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन बना दिया. पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार के सूत्रधार जय प्रकाश नारायण ही थे. उसी तरीके से राजेंद्र बाबू को कौन भूल सकता है? उम्दा वकील, बहुत अच्छे परिवार से और पढ़ाई में भी प्रवीण थे, लेकिन जब अकाल आया तो बिहार में उन्होंने काम किया. फिर आजादी की लड़ाई में शामिल हुए, देश के पहले राष्ट्रपति बने. भारत रत्न राजेंद्र प्रसाद. बिहार की जनता का आजाद भारत में और आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान रहा है और उसके पहले भी योगदान है.
सवाल-13: एक आपका ऐलान जिसकी काफी आलोचना भी हुई. वो ये था कि कोरोना वैक्सीन आप बिहार के लोगों को मुफ्त में देंगे! अब लोग ये पूछ रहे हैं कि जिन राज्यों में चुनाव नहीं है वहां मुफ्त में वैक्सीन नहीं मिलेगी? जहां बीजेपी की सरकार नहीं है वहां मुफ्त में नहीं मिलेगी? यानी आपने कोरोना वैक्सीन का भी राजनीतिकरण कर दिया, चुनावी मुद्दा बना दिया?
जवाब: राजनीतिकरण नहीं किया है. इससे पहले 7 तरीके से टीके लगते थे. हम मिशन इंद्रधनुष के तहत 12 तरह के टीके लेकर आए, हमने नेशनल कार्यक्रम को आगे बढ़ाया. आज 10 लाख बच्चों की जान डायरिया से बचती है. हां, मौके आते हैं. बिहार चुनाव के मैनिफेस्टो में हम बिहार की जनता को क्या दे रहे हैं ये हमारी नैतिक जिम्मेदारी है. हमने इसे मैनिफेस्टो में जोड़ दिया. यहीं नहीं, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, पुडुचेरी ने भी जोड़ दिया. हमने इस मौके पर बिहार की जनता को बताया कि अगले 5 साल में क्या देंगे? इसपर हंगामा इसलिए हुआ क्योंकि वो इसे पहले समझ ही नहीं पाए. क्योंकि वो समाज से जुड़े हुए ही नहीं है. उन्हें समाज से कोई लेना देना ही नहीं. मैं तेजस्वी के इस नारे को चैलेंज करता हूं कि मैं 10 लाख सरकारी नौकरी दूंगा. हमने कहा कि 19 लाख नौकरियों के अवसर प्रदान करेंगे. कोई नौकरी नहीं देता है. नौकरी के लिए वित्तीय प्रावधान करना पड़ता है. तीन-साढ़े तीन लाख नौकरियां रिक्त हैं बिहार में. वो हम जानते हैं, हमने भी कहा है कि भर देंगे लेकिन उनके पास विजन नहीं है इसलिए वो लोग हवा हवाई बातें करते हैं. और हम गहराई में बात करते हैं. क्यों, क्योंकि उन्हें राज नहीं करना है. वो लोग पॉलिटिकल टूरिस्ट हैं. याद रखिएगा एक नेता पिछली बार दिखे नहीं और बाकी भी चुनाव के नतीजों के 5 साल तक नहीं दिखेंगे. वो पॉलिटिकल टूरिस्ट हैं, हम सीरियस वर्कर हैं. हमें काम करना है. हमें मालूम है कि बिहार की जनता 10 नवंबर को मुहर लगाकर हमको सरकार में बिठाएगी. हमको मालूम है नीतीश बाबू के साथ मिलकर हमें आगे क्या-क्या करना है. इसलिए वैक्सीन की तैयारी सही तरीके से करना और उसकी पारदर्शिता बनाए रखना भी हमारी जिम्मेदारी है.
सवाल-14: वैसे ये आइडिया किसका था वैक्सीन वाला?
जवाब: ये सभी लोग मिलकर फैसला करते हैं. हेल्थ मिनिस्ट्री भी फैसला करती है. हमारी मैनिफेस्टो कमेटी भी है. कोर कमेटी आखिरी फैसला लेती है और उससे पहले राष्ट्रीय स्तर पर इसकी मंजूरी लेनी पड़ती है.
सवाल-15: आप इस समय टीम की कप्तानी कर रहे हैं. ये तो एक मैच है! इसके बाद एक और मैच है, बंगाल का. बिहार के नतीजों का बंगाल पर कितना असर पड़ेगा? आपको क्या लगता है
जवाब: देखिए, एक राज्य के नतीतों का असर दूसरे स्टेट पर पड़ता है. इसमें कोई दोराय नहीं है. लेकिन हर स्टेट का अपना-अपना कांबीनेशन होता है और हर स्टेट की अपनी अपनी परिस्थिति होती हैं. जैसे बिहार आज गुड गवर्नेंस पर वोट डाल रहा है. डेवलपमेंट पर वोट डाल रहा है. नीतीश बाबू के जमीन पर उतारे गए इंफ्रास्ट्रक्चर पर वोट डाल रहा है. मोदी जी का आशीर्वाद बिहार को मिला है, इस पर वोट डाल रहा है. रेलवेज में डेवलपमेंट हो रही है. हाईवेज बन रहे हैं. ओवर ब्रिज बन रहे हैं. इंस्टिटयूशंस में इंवेस्टमेंट आ रहा है. ये वहां के मेन इश्यू है. लेकिन जब हम वेस्ट बंगाल की बात करेंगे तो वहां लोगों ने तय कर लिया है कि ममता बनर्जी की धरती खिसक चुकी है. मिस गवर्नेंस एंड ममता एंड टीएमसी. ये पर्यायवाची हो गए हैं. इससे वहां की जनता त्रस्त हो चुकी है और राज्य प्रायोजित पुलिस उत्पीड़न जगजाहिर हो गया है. लोगों को पता चल गया है. पुलिस से विश्वास उठ चुका है. कानून- व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है. टीएमसी के लोग कट मनी से लेकर खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं तो वो इश्यू वेस्ट बंगाल में हावी है. लेकिन वह इश्यू बिहार में नहीं है. इसलिए अलग अगल इश्यू पर जनता का फैसला होता है. लेकिन इसका नतीजा उन्हे उत्साह देगा कि अब भई, बंगाल में भी हटाना है और हटाने का कारण उनका मिस गवर्नेंस होगा.
सवाल-16: ये कोराना काल का पहला चुनाव है तो आपको रणनीति बनानी पड़ी होगी. इस समय चुनाव प्रचार भी आप कर रहे हैं तो आपको कितने बदलाव करने पड़े होंगे अपनी चुनावी रणनीति में, कोरोना की वजह से?
जवाब: बहुत बदलाव करने पड़े. सच बात ये है कि दुनिया में ये पहला चुनाव है, जो कोरोना संक्रमण के समय कोविड प्रोटोकॉल के साथ लड़ा जा रहा है. अब इसमें हम लोगों के लिए भी एक्सपीरियंस था. पहला एक्सपीरियंस ये था कि हम प्रोटोकॉल को निभाएं तो हम सबने निभाने का प्रयास किया है. जनता से भी निभाने का हमने प्रयास किया है. सबसे पहली सभा मेरी हुई थी इलेक्शन के डिक्लेअर होने के पहले. उस समय हमने 200 सीटें सोशल डिस्टेंसिंग पर लगाई थीं. वर्चुअल और रियल रैली शुरू करने वालों में हम सबसे पहले थे. सबसे पहली पब्लिक रैली शुरू करने वाले भी हम ही थे. हमने इसके रिस्पांस में चीजों को धीरे-धीरे करते हुए सीखा है. बहुत एक्सपीरियंस हुआ. इसमें कोई दोराय नहीं है कि हमारी कोशिश रही है कि हम खुद तो प्रोटोकॉल फॉलो करें ही करें. साथ ही जनता से भी फॉलो कराएं. ये बड़ा कठिन हो जाता है क्योंकि प्रजातंत्र में, चुनाव में अपनी एक स्प्रिट होती है. एक जोश होता है, एक माहौल होता है. तो हम कितना भी रोकें, जनता को तो नहीं रोक सकते हैं और जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता है और जैसे-जैसे वोटिंग का दिन नजदीक आता है तो सभी आगे बढ़ते जाते हैं. अब देखना होगा God Bless.
सवाल-17: आपके इस दौरान कई विकेट गिरे. आपके स्टार प्रचारक भी कोविड पॉजिटिव हो गए, एक के बाद एक आपने पर्सनली कैसे इस चुनौती को झेला और कैसे आपने अब तक अपना ध्यान रखा कि आप खुद कोविड पॉजिटिव न हो जाएं?
जवाब: सुधीर जी, मैं हमेशा एक बात बोलता हूं so far so good. जब तक चला रहा है. भगवान का बहुत आशीर्वाद है. सब कुछ ठीक है. एक बात जरूर है कि हेल्थ मिनिस्टर रहने के नाते मुझे इन सब चीजों के बारे में बहुत पढ़ने का मौका मिला और बहुत जानने का मौका मिला. इन्फेक्शन कैसे कैसे आ सकता है, हमें इसे भी समझने का मौका मिला. तो वो उस प्रोटोकॉल के पालन में मैंने कोई कंप्रोमाइज नहीं किया. मैं कोई कंप्रोमाइज नहीं करता हूं. मेरा मास्क, हैंड सैनिटाइजेशन, साबुन से हाथ धोना, गरारे करना, स्टीमिंग करना, ये सब चीजें मैं इसलिए फॉलो करता हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि लोगों के ड्रॉपलेट्स से भी कोरोना फैल सकता है. इसलिए उनका दोष नहीं है बेचारे का. ये हवा में बहता हुआ ड्रॉपलेट के जरिए आ जाएगा. मैं जानता हूं कि यदि इस ओर से हवा बह रही तो और मान लीजिए मेरे बगल वाला संक्रमित है तो मैं अगर मास्क लगाए रखूंगा, दूरी बनाकर रखूंगा, उससे बात के दौरान भी मास्क लगाकर रखूंगा तो काफी हद तक बचा जा सकता है हालांकि so far so good ये कोई राम बाण उपाय नहीं है. अब तक बचा हूं तो भगवान के आशीर्वाद से. लेकिन हां, एक संतोष मेरे मन में हमेशा होता है कि मैंने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी. उसके बाद हो जाए तो हो जाए, उसका क्या किया जा सकता है.
सवाल-18: आप इससे पहले हेल्थ मिनिस्टर रह चुके हैं और अब आप बीजेपी के अध्यक्ष हैं. कौन सा रोल आप ज्यादा इन्जॉय कर रहे हैं?
जवाब: मेरी बचपन से एक प्रवृति रही है कि जो जिम्मेदारी मुझे दी गई और मैं कभी भी अपनी बुद्धि के बारे में और अपनी शक्ति के बारे में न अंडर एस्टिमेट करता हूं और न ओवर एस्टिमेट करता हूं. जो मेरी ताकत है, वो मैं भगवान को हाजिर नाजिर मानकर पूरा करता हूं. तो जो भी जिम्मेवारी मुझे मिली है या मिलती है, उसे मैंने पूरा किया है. लेकिन हां, Party has been my first love. मैंने कैबिनेट की पोस्ट छोड़ी, जब मैं हिमाचल में मंत्री था और मैं बीजेपी का जनरल सेक्रेटरी बना. तो मैं 20 साल एमएलए, मंत्री, दो बार विपक्ष का नेता बना. सब छोड़ा पार्टी में. ऐसा नहीं कि मैने कोई त्याग किया. ये मेरा फस्ट लव था. पार्टी को लगा, उस समय यूपीए की सरकार थी. पार्टी के लिए काम करने का मौका था, मैं आया. 2012 में मैं फिर से राज्य सभा में आ गया. 2014 में मैं फिर सरकार में मंत्री बन गया. लेकिन मंत्री रहते हुए भी जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़, केरल, तेलंगाना, यूपी, बिहार का चुनाव प्रभारी रहा. तो सरकार में रहने के बावजूद भी पार्टी के प्रति लगाव और पार्टी के प्रति जिम्मेवारी को मैने निभाया है. ये नहीं हुआ कि मैंने हेल्थ मिनिस्ट्री को इग्नोर किया, नहीं बिल्कुल नहीं किया. बहुत बड़े काम को मुझे मोदी जी के आशीर्वाद से करने का मौका मिला. लेकिन पार्टी से ही हम आए हैं. पार्टी है तो हम हैं. पार्टी को मजबूती प्रदान करना हमारा काम है. यही बात अमित शाह की है. यही बात प्रधानमंत्री मोदी की है. ये लोग गवर्नेंस में हैं. सभी गुड गवर्नेंस के साथ-साथ चलते हैं. यही बात राजनाथ जी की है. आपने राजनाथ जी को देखा होगा कि जब-जब जहां-जहां उन्हे कहा गया वो हमारे चुनाव प्रचार के लिए आगे आए हैं. उसी तरीके से नितिन गडकरी हैं तो ये हमारे रचे बसे सिस्टम में है, हमारे डीएनए में है.
सवाल-19: बीजेपी को कहा जाता है कि वह चुनावी मशीन है. क्योंकि आईपीएल मैचों की तरह बैक-टु-बैक चुनाव होते हैं और हर चुनाव में प्रेशर आपके ऊपर होता है. एक तरह प्रधानमंत्री मोदी हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे टफ टास्क मास्टर हैं. वहीं आपकी तुलना अमित शाह से भी की जाएगी क्योंकि वे आपसे पहले पार्टी अध्यक्ष थे. हर चुनाव से पहले कितना दबाव रहता है? जैसे फिल्म रिलीज होने से पहले एक फिल्म एक्टर पर दबाव रहता है, मैच से पहले खिलाड़ी पर रहता है. ऐसे में चुनाव से पहले आप पर कितना दबाव रहता है?
जवाब: सुधीर जी, मैं 20 साल का था, जब मैं छात्र राजनीति में आ गया और वहां से होते हुए यहां तक पहुंच गया और फिर कई सारी जिम्मेदारियों को निभाया. एक कविता मेरे दोस्त ने मुझे सुनाई थी कि चिट्ठियां आती हैं. कुछ पढ़ता हूं, कुछ नहीं पढ़ पाता हूं क्योंकि मैं व्यस्त हूं. कुछ लोगों से मैं मिलता हूं, कुछ से नहीं मिल पाता हूं क्योंकि मैं व्यस्त हूं. बहुत से विषय मेरे पास निर्णय के लिए आता हूं. कुछ पर निर्णय कर पाता हूं, कुछ पर नहीं कर पाता हूं क्योंकि मैं व्यस्त हूं. कुछ अखबारें पढ़ पाता हूं, कुछ नहीं पढ़ पाता हूं क्योंकि मैं व्यस्त हूं. लेकिन बाद में मेरे को ध्यान में आया कि मैं व्यस्त नहीं हूं. मैं अस्त व्यस्त हूं मैं अस्त व्यस्त हूं. इसका मतलब यह हुआ कि यदि organised हैं तो आप कितना भी प्रेशर हो, सबको आराम से संभाल सकते हैं. सबको प्राथमिकता दे सकते हैं. इसलिए
समय और संगठनात्मक का प्रबंधन को-ऑर्डिनेशन में टाइम मैनेज करना, दूसरी बात मैं अकेला काम नहीं कर रहा हूं. मेरे साथ लाखों लोग काम कर रहे हैं. कुछ काम मुझे करने हैं, कुछ मुझे करवाने हैं. ये जब आपको बोध होता है तो आप कभी प्रेशर में नहीं आते हैं. आप कंसनट्रेट करते हैं उस काम पर, जो आपके जिम्मे आया है. उस क्वालिटी पर कि वह क्वालिटी से डिलीवर हो और हमारे साथ हमारा सहयोगी भी उसी क्वालिटी के साथ नीचे काम करे. तो ये प्रेशर उन लोगों पर होता है, जिन्हें संगठन पर विश्वास नहीं होता. हमारे प्रधानमंत्री जी को आपने देखा होगा. उनके बराबर व्यस्त कौन है. उनके बराबर कंधो पर किसके जिम्मेदारी है. लेकिन आपने देखा होगा कि आपसे जब वो बात करते हैं तो आपसे ज्यादा कंसनट्रेशन उनका होता है. वो इत्मीनान से बात करते हैं और वो घड़ी को नहीं देखते और कभी किसी को महसूस नहीं कराते कि मैं व्यस्त हूं. क्योंकि वे ऑगेनाइजड हैं. हमने भी उनसे ये सब चीजें सीखी हैं. अमित शाह के पास कौन सा काम नहीं है. राजनाथ के पास कौन सा काम नहीं है. क्या ये सब प्रेशर में नहीं हैं, हैं. लेकिन ये सब ऑगेनाइजड हैं. हमने भी उनसे ये सब चीजें सीखी हैं, इसलिए कोई प्रेशर नहीं होता है हम पर और मैं कभी-कभी मैं नहीं कहता हूं, हम कहता हूं. हम हैं, हम सब लोग हैं, हमारे साथ बहुत लोग काम कर रहे हैं. अब बिहार सब लोग देख रहे हैं. मेरा काम है कि रोज सुबह 20 लोगों को फोन करके उनका हाल चाल पूछना, उन्हें कुछ काम देना, उनसे कुछ काम लेना. वे 20 लोग नीचे 20 लोगों को सक्रिय करते हैं तो ये जो पारिवारिक पार्टियां होती हैं, ये प्रेशर में रहती हैं.
सवाल-20: आप जानते हैं कि राजनीति में जब जीत होती है तो कह दिया जाता है कि यह टीम वर्क है और जब हार होती है तो किसी एक व्यक्ति पर दोष डाल दिया जाता है?
जवाब: हमारी पार्टी में ऐसा नहीं होता. हमारी पार्टी में हम जीत को भी ऑगेनाइजड मानते हैं. सब लोगों का सहयोग होता है. बेशक, लीडरशिप का रोल बहुत महत्वपूर्ण होता है. अब मोदी की अपील पर करोड़ों लोग वोट डाल रहे होते हैं. लेकिन हां, संगठन के लोग भी अच्छा काम कर रहे होते हैं. उनको भी जीत का श्रेय जाता है. प्रधानमंत्री मोदी अपने प्रत्येक व्यक्तव्य में कहते हैं कि यह लाखों कार्यकर्ताओं का तप है. जिससे हम यह सफलता हासिल कर रहे हैं. लीडरशिप का अपना रोल है, मोदी का, अमित शाह का, राजनाथ का अपना रोल है और संगठन का भी अपना रोल है और मेरा काम सभी चीजों में समन्वय करने का होता है.
सवाल-21: आपके बारे में कहा जाता है, मतलब बीजेपी के बारे में कि बीजेपी अपने हरेक चुनाव में पाकिस्तान को जरूर ले आती है और इस बार भी पाकिस्तान ने अप्रत्यक्ष रूप से आपकी मदद कर दी. उनके एक मंत्री ने अपनी संसद में पुलवामा पर एक बयान दे दिया और बीजेपी ने तुरंत उस बयान को उठा लिया. अब पुलवामा भी एक बड़ा मुद्दा आपका बन गया है. क्या आपको लगता है कि बयान बिल्कुल सही मौके पर आया है और इससे अब आपको विरोधियों के खिलाफ बढ़त मिल जाएगी?
जवाब: बीजेपी कभी पाकिस्तान नहीं जाती है. पाकिस्तान को हमेशा कांग्रेस पार्टी लेकर आती है और मैं आपको प्रूव करके देता हूं. सबसे पहले पी चिदंबरम ने कहा कि धारा 370 हम हटाएंगे. चुनाव शुरू हुआ नहीं, इन्होंने अपनी ढपली बजाई नहीं. वोट बैंक की राजनीति ये करते हैं और इसमें देश को बांटने की साजिशें भी होती हैं. जब धारा 370 संसद से पास होकर विदा हो गया, 35A चला गया तो आप इसे क्यों लेकर आएंगे. और आप नेशनलिस्ट पार्टी हैं, उसको छोड़ दीजिए. शशि थरूर ने लाहौर में भारत की निंदा की और पाकिस्तान की ढपली बजाई. ये कैसे हुआ. इसको भी छोड़ दीजिए आप. मणिशंकर अय्यर भारत के बारे में जो टिप्पणी करते हैं, वे भी आपके सामने हैं. इसलिए पाकिस्तान को लाने का काम ये लोग करते हैं और इनकी ही सोच इस तरह की है कि वोट बैंक की राजनीति करें. हां, हमें रिस्पांड करना पड़ता है. हम रिस्पांड करते हैं. ये जो पाकिस्तान के मंत्री फवाद चौधरी ने स्टेटमेंट दी, ये निश्चित रूप से चीजों को और हाईलाइट करता है. ये बताता है कि यही राहुल गांधी सवाल कर रहे थे और सबूत मांग रहे थे. तो सबूत भी मिल गया और इनके सवाल का जवाब भी दे दिया तो अब माफी क्यों नहीं मांगते हो. ये तो हमारा हक बनता है न पूछने का. प्रधानमंत्री मोदी, एक इंटरनेशन फिगर उनके बारे में कितनी हल्की बातें की है. जो उनके दिवंगत नेता रहे होंगे, उनकी आत्मा को भी दिक्कत होती होगी, जो उन्होंने इनते हल्के आरोप लगाए हैं.
सवाल-22: आप आजकल राहुल गांधी के खिलाफ पर्सनली काफी ट्वीट करते हैं. ऐसा लगता है कि पार्टी ने राहुल गांधी को संभालने की जिम्मेदारी आपको दे रखी है?
जवाब: मैं पार्टी का काम करता रहता हूं तो हर तरह की जिम्मेदारी मेरे पास रहती है. लेकिन मैं उनको बार बार बताता रहता हूं कि समझदार लोगों को आगे लाओ. आप लाते नहीं है तो मुझे बताना पड़ता है कि इनकी समझदारी कितनी सीमित है.
सवाल-23: मेरा सेकंड लास्ट क्वेश्चन नड्डा जी ये है कि हो सकता है कि वो थोड़ा आउट ऑफ सिलेबस भी हो. पिछले 6-8 महीने से मीडिया को काफी ऑब्जर्व कर रहे हैं. तो मीडिया में अब स्थिति ऐसी है कि यदि आप कोई सरकारी ऐलान भी करते हैं तो उसके लिए भी मीडिया में जगह नहीं बची है. क्योंकि मीडिया में कुछ और ही चल रहा है? कभी सुशांत सिंह राजपूत चल रहा है, कभी कुछ और चीज चल रही है. पिछले 6-8 महीने में ये डिस्कशन का बहुत बड़ा विषय रहा है. आपने इस बारे में कई बार ट्वीट भी किया है और मीडिया को लेकर थानों में जितने केस चल रहे हैं, अदालतों में जितने केस चल रहे हैं. हम एक नए युग में प्रवेश कर गए हैं. जहां मीडिया में ये समझ में नहीं आ रहा कि हम क्या दिखाएं और क्या न दिखाएं और गलत करने वाले भी हैं और सही करने वाले भी? इस पर आपकी क्या सोच है?
जवाब: मैं लोकतंत्र और मीडिया का सम्मान करता हूं. मीडिया की सोच कैसी हो, ये मीडिया तय करे. ये हमारा काम नहीं है. लेकिन हमारी तरफ से पॉजिटिव एजेंडा जाए, ये हमारी जिम्मेदारी है. ये हम करते हैं. कल को हमको कोई न कहे कि आपने देश को क्या कंटेंट दिया तो कंटेंट की जिम्मेदारी हमारी है. लेकिन हम सरकार चला रहे हैं तो मीडिया को प्रोटेक्शन देना भी हमारी जिम्मेदारी है और उसको सम्मान देना भी हमारी जिम्मेदारी है. प्रजातंत्र का मजा कहां रहेगा कि यदि मीडिया को बोलने की छूट न हो. मीडिया तय करे कि उसे कितना जिम्मेदार व्यवहार रखना है या नहीं रखना है, ये वह तय करें. यदि वह नहीं रखेगा तो जनता रखवा देगी. लेकिन परिपक्व लोकतंत्र और परिपक्व राजनीतिक पार्टी के रूप में हमारी जिम्मेदारी है की हम मीडिया का सम्मान करें. जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उन्होंने कभी भी मीडिया की इज्जत नहीं की. ये मीडिया के साथ ही हरेक चीज में कंप्रोमाइज करते चले गए. आप बताइये, कभी भी गांधी परिवार ने उनके ऊपर लगे आरोपों का जवाब दिया. अब मैं मीडिया से ये सवाल नहीं पूछता हूं कि वे गांधी परिवार से यह सवाल क्यों नहीं पूछते. ये उनकी समझदारी है कि पूछे या न पूछे. ये प्रजातंत्र की पार्टी का सवाल है. आप चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से राजीव गांधी फाउंडेशन में डोनेशन ले लेते हो और चाइना के गलवान मुद्दे पर टिप्पणी करते हो, कौन तुम पर विश्वास करेगा. कौन तुमको पूछेगा. आप ही नाना थे ना, जिन्होंने कहा कि चीन ने जिस जमीन को कब्जाया है. वहां पर घास का एक तिनका तक नहीं उगता. क्या जवाब दोगे तुम, पढ़ते नहीं हो. अब पढ़ने का मौका नहीं मिला होगा तो मैं क्या करूं उसमें. लेकिन मेरी जिम्मेवारी तो है कि मैं जनता को बताऊं तो मैं तो जनता को बताता रहूंगा.
सवाल-24: यदि आप सवाल पूछेंगे तो आपको धमकियां दी जाएंगी, आपके ऊपर केस कर दिए जाएंगे?
जवाब: ये बिल्कुल गलत तरीका है. ये कांग्रेस पार्टी का स्टाइल रहा है. वे लोकतंत्र की बात करें. जिन्होंने इमरजेंसी लगाई. जिसने 22 महीने तक सेंसरशिप लगाई. जिन्होंने जेल के पीछे लोगों को डाल दिया. ये ट्रेंड ठीक नहीं है. एक बात मैं जरूर कहूंगा. पिछले कुछ समय में कांग्रेस पार्टी विशेषकर के इनका स्टैंडर्ड बहुत नीचे गया है और इन्हें पता ही नहीं है कि इनका स्तर इतना नीचे गिर चुका है. ये मोदी का विरोध करते-करते देश का विरोध करने लगे हैं. ये मोदी का विरोध करते-करते पाकिस्तान की भाषा बोलने लगे हैं. ये मोदी का विरोध करते-करते सेना पर सवाल खड़े करने लगे हैं. ये मोदी का विरोध करते-करते अपने प्रशासन पर सवाल खड़े करने लगे हैं. मैं यही कहूं कि आपकी अप्रोच, प्रोग्राम सही नहीं है, जिसकी वजह से आपको कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है. अब आपको तय करना है कि कब आपको सदबुद्धि आएगी, कब आपके ज्ञान का चक्षु खुलेगा. जब आपको पता चलेगा कि आप अपना ही नुकसान करते चले आ रहे हैं और मैं भारत की जनता को नमन करता हूं. और मैं हमेशा अपने बारे में भी कहता हूं कि Don’t judge yourself people judge you.
सवाल-25: आपने देखा होगा कि फ्रांस में क्या हुआ? भारत सरकार फ्रांस का पूरा समर्थन करती है. देश के पीएम मैक्रों का समर्थन करते हैं और हमारे ही देश में अगले दिन प्रोटेस्ट शुरू हो जाते हैं अगले ही दिन अलग-अलग राज्यों में और एक ये चीज बताने की कोशिश करते हैं कि भारत में एक बड़ा वर्ग ऐसा है कि जो कि सहमत नहीं है. ये जो इस तरह का धुव्रीकरण है इस समय भी, इस समय ऐसा लगता है कि जो चरमपंथ है, उसकी आलोचना को लोग इस्लाम की आलोचना मान रहे हैं. उसको मर्ज करने की कोशिश कर रहे हैं. इस पर आप क्या कहेंगे?
जवाब: मैं ये कहूंगा कि पीएम मोदी ने जो स्टैंड लिया है, वे देशहित में है या राष्ट्रहित है. ये धर्म के नेताओं को तय करना है. देखिए, हम आतंकवाद को किसी धर्म नहीं जोड़ रहे हैं. धर्म एक ऐसी गतिविधि है, जिसे पूरी तरह खारिज किया जाना चाहिए. लेकिन हां, कुछ लोग इस तरीके से भ्रम फैलाने की कोशिश करते हैं. मेरा ये मानना है कि उनको भी सदबुद्धि आए, वे इस बात को समझे और देश में इतनी ताकत है कि वह इसे खारिज कर देगा.
सवाल-26: नड्डा जी, आखिरी सवाल ये है कि 2015 vs 2020, इस बार बिहार को लेकर आपका आकलन क्या है? पहले से ज्यादा सीटें आएंगी या पहले से कम. किस तरह की तस्वीर आप देख रहे हैं?
जवाब: हमारी दो तिहाई मेजोरिटी आएगी. सारे सर्वे भी बता रहे हैं. मेरा मानना है कि 5-7 पर्सेंट उससे ऊपर और जाएगी क्योंकि ये सर्वे 20 दिन पहले के हैं. उसके बाद पहले चरण में हम आगे हैं और दूसरे चरण में और आगे होंगे. एक माहौल बनता जा रहा है और वह माहौल बीजेपी-एनडीए के फेवर में बन रहा है. इसलिए हम दो तिहाई बहुमत लेकर आएंगे. बाकी सब डबल डिजिट में रह जाएंगे. कुछ पार्टियां तो सिंगल डिजिट में ही रह जाएंगी. विपक्ष डबल डिजिट में रह जाएगा और हम सरकार बनाएंगे.
सवाल-27: कोई क्रांतिकारी फैसला आप देखते हैं कि किसी नए नेता का उदय और किसी नेता को हमेशा के लिए डंप करना?
जवाब: मुझे सपष्ट रूप से दिख रहा है कि बिहार के लोग स्पष्ट बहुमत के साथ नीतीश कुमार जी की सरकार बनाने के लिए आतुर हैं.
सवाल-28: नड्डा जी आपका शुक्रिया. आपने जो एस्टिमेट दिया है. उसे हम 10 तारीख को फिर आपसे चेक करेंगे.
जवाब: बिल्कुल मुझे पूरा विश्वास है कि मैं सही उतरूंगा अपने एस्टिमेट में. आपके चैनल को मैं झूठा साबित नहीं होने दूंगा.
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