[ad_1]
- Hindi News
- Local
- Bihar
- Youth Dreaming Of Becoming Leaders Of The Future; Expectations Of Retired Officers And Social Workers Increased
पटना20 मिनट पहलेलेखक: प्रवीण कुमार सिंह
अन्ना आंदोलन से नायक बनकर निकले अरविंद केजरीवाल और उनके साथ राजनीति के नए चेहरे सत्ता में आए। यह फॉर्मूला इतना हिट हुआ कि जब प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में फिर अपना मुकाम देखने लगे तो उनके साथ युवाओं की फौज भी नेता बनने के सपने देखने लगी है। रिटायर्ड अफसर-कर्मचारी, वकील, समाज सेवियों में भी नेता बनने की उम्मीद जगी है। राजनीति से जुड़े लोग, जिन्हें कभी चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला या फिर RJD, JDU और बीजेपी जैसी पार्टियों में हाशिए पर हैं, उन्हें भी अवसर दिखने लगा है।
पीके बिहार में 3500 किलोमीटर की यात्रा करेंगे। दावा है कि हर पंचायत, कस्बा और शहर में जाकर लोगों से मिलेंगे। यात्रा सवा साल से लेकर डेढ़ साल तक चल सकती है। पढ़िए प्रशांत किशोर यानी PK की बिहार यात्रा के पीछे का मकसद, दिक्कत कहां आ रही है और किसको फायदा…
पहले बात केजरीवाल के उदय की। 19 अगस्त 2011 को रामलीला मैदन में अन्ना हजारे जन लोकपाल के लिए अनशन पर बैठे। उनके साथ अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, किरण बेदी समेत हजारों समर्थक थे। हर दिन मंच से गांधी जी का प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम चलता रहा। हजारों की संख्या में युवा और रिटायर्ड अफसर और समाजसेवी जुड़े। अनशन खत्म होने के करीब एक साल बाद में 26 नवंबर 2012 को केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई।
फिर दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा। नए चेहरे और वादों पर आम आदमी पार्टी चुनाव में उतरी। पहली बार में 70 में से 28 सीटें आईं। कांग्रेस की मदद से सरकार बनाई। अभी दिल्ली में सरकार है। 70 में से 64 विधायक हैं। पंजाब में भी इसी साल सरकार बनाई है।
कुछ इसी तर्ज पर प्रशांत किशोर भी चल रहे हैं। वह पहले पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति बनाते रहे हैं, लेकिन 2 अक्टूबर 2022 को खुद को दोबारा राजनीति में लाॉन्च कर दिया। उनकी नई रणनीति है। अलग राह और नए चेहरे की। इसके लिए जगह और अवसर भी खास था- गांधी जयंती। जगह- पश्चिम चंपारण के भितिहरवा, जहां से अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी ने नील क्रांति का आगाज किया था।
सफेद पैजामा-कुर्ता पहने प्रशांत किशोर भितिहरवा पहुंचते हैं। सबसे पहले गांधी के आश्रम में प्रवेश करते हैं। कुछ देर अकेले में गांधी जी की प्रतिमा के पास बैठते हैं। फिर मंच पर पहुंचते हैं। वहां नारे लगते हैं- प्रशांत किशोर जिंदाबाद। मंच पर गांधी जी की बात होती है। उनका प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम चला। फर्क इतना रहा कि मंच पर अन्ना जैसा गांधीवादी चेहरा नहीं दिखा। यहां कोई अनशन नहीं हो रहा है, लेकिन बहुत कुछ समानताएं अन्ना आंदोलन की तरह ही रही।
वह मंच से जब बिहार की राजनीति बदलने की बात करते हैं। बिहार में व्याप्त भ्रष्टाचार और सरकारी की कमियों को गिनाते हैं तो नीचे से नारे लगते हैं। यह नारा लगाने वाले युवा हैं। उनमें जोश दिख रहा है। एक उम्मीद दिख रही है। मंच पर रिटायर्ड अफसर-कर्मचारी, वकील और समाजेसवी मौजूद हैं।
उनके भाषण से समझिए उनका प्लान…
सफलता की गारंटी: PK ने मंच से कहा- 10 साल में कुल 11 चुनाव कराने का अवसर मिला है। एक यूपी का 2017 का चुनाव छोड़ दीजिए तो किसी चुनाव में हार का सामना नहीं करना पड़ा है।
जब यह पीके कहते हैं तो युवा जोश में तालियां बजाते हैं और नारे लगाते हैं। पीके यही तो मैसेज देना चाहते हैं जो मेरे साथ जुड़ा वह हार का सामना नहीं करेगा। हालांकि इस दौरान वे कहते हैं कि लोगों को ऐसा लगता है कि प्रशांत किशोर ने जिसका हाथ पकड़ा वह चुनाव जीत जाएगा, ऐसा नहीं है। चुनाव तो आप सभी अपनी ताकत से जीतते हैं। मेरा प्रयास कुम्हार जैसा है। घड़ा मिट्टी और चाक से बनता है। समाज में ऐसे लोग हैं, ऐसे लड़के हैं, जिन्हें जिताया जाए न…
मैं कोई नेता नहीं: पीके ने कहा- मैं कोई नेता नहीं हूं। वोट मांगने नहीं आए हैं। बरगला कर वोट मांगने नहीं आए हैं। एक नया समाज और प्रयास करना चाहते हैं। इसलिए समाज से आपके बीच से लोगों को ढूंढ कर निकाला जाए। ताकि आप अपने को वोट दें। कोई घर नहीं छोड़कर जाए।
वह मैसेज देने की कोशिश करते हैं कि प्रत्याशी आपके बीच का होगा, जिसे आप ही तय करेंगे। कुछ हद तक पीके की यात्रा भविष्य के चेहरों की तलाश के लिए भी है।
दूसरे के लिए काम नहीं, सिर्फ बिहार: जब से पीके बिहार में सक्रिय हुए हैं तब से JDU और बीजेपी में हलचल ज्यादा है। उन पर दोनों पार्टियां एक-दूसरे के लिए काम करने का आरोप लगा रही हैं। मंच से पीके ने इसे भी क्लियर किया। उन्होंने से मैसेज दिया कि वे पार्टियों के जिताने का काम छोड़ चुके हैं। वह अब बिहार के लिए, आपके लिए काम कर रहे हैं।
वादे नहीं…काम करना है: पीके ने दूसरे नेताओं से हटकर वादे नहीं काम करके दिखाने की कोशिश की। इसका उदाहरण देखिए- वे मंच से कहते हैं कि बापू की यात्रा के समय यहां बच्चियों के लिए एक स्कूल शुरू किया गया था। स्कूल कस्तूरबा गांधी जी के नाम पर है। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव ने इसे सरकारी करने का वादा किया था। आज तक यह काम नहीं हुआ। मैं कोई नेता नहीं हूं… जो वादा करूं। मैं आज से ही इस स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों और टीचरों का खर्च उठाऊंगा। वे स्कूल गए और 10 लाख रुपए दिए।
अब सवाल पार्टी बनाने पर
फिलहाल पीके ने इसे स्पष्ट नहीं किया है कि वे पार्टी बनाकर चुनाव लड़ेंगे। वे शुरू में मंच से बोले कि वे कोई पार्टी नहीं बनाएंगे। लेकिन कुछ देर बाद कहा कि आगे देखेंगे। हालांकि ये तय है कि वह पार्टी बनाएंगे, लेकिन कब बनाएंगे यह एक साल बाद ही पता चल पाएगा।
ऐसे समझिए केजरीवाल की तर्ज पर प्रशांत किशोर कैसे
- पहचान घर-घर तक बनाने की: केजरीवाल जब राजनीति में उतरे तो पोस्टर पर सिर्फ उनकी ही फोटो और झाड़ू निशान होता था। जन सुराज यात्रा में कुछ ऐसा ही है। हर पोस्टर और बैनर पर पीके ही छाए हैं। यात्रा से अंतिम छोर पर बसे लोगों से मिलना और अपनी बात रखना पीके का यही मकसद है कि घर-घर उन्हें जाने।
- प्रत्याशी चयन: याद करिए दिल्ली विधानसभा चुनाव। आम आदमी पार्टी ने आम लोगों के बीच से प्रत्याशी चुनने की बात कही थी। लोगों से आवेदन मांगे थे। यही बात तो पीके भी कह रहे हैं। उन्होंने मंच से कहा कि आपके बीच से लोग होंगे। वही चुनाव लड़ेंगे, जिन्हें आप चयन करेंगे।
- युवाओं पर फोकस: अरविंद केजरीवाल शुरू में युवाओं पर ही फोकस थे, रोजगार उनकी जरूरत पर बात करते थे। पीके भी ऐसा ही कुछ कर रहे हैं। मंच से उन्होंने से कहा कि मैं भी बिहार के आम लड़कों की तरह यहां से पढ़ा हूं। उनकी तरह रोजगार के लिए बाहर गया। चुनाव लड़ाने वाली बात में भी वो कहते हैं समाज में ऐसे लोग हैं, ऐसे लड़के हैं।
- रिटायर्ड अफसर-कर्मचारी और समाजसेवी: केजरीवाल के साथ शुरू से ही रिटायर्ड अफसर, कर्मचारी, समाजसेवी, वकील जुड़े रहे। आगे चलकर इसमें से कई नेता बने। पीके के पंच पर भी यही लोग छाए रहे। यह केजरीवाल का इफैक्ट है कि इनमें बिहार में सत्ता मिलने और अपनी भागीदारी आने वाले समय में दिख रही है।
वहां आए लोगों की उम्मीदों को भी जानिए
पीके की जन सुराज यात्रा से जुड़े लोगों की अपनी-अपनी उम्मीद हैं। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को जिस तरह से सफलता मिली है और नए लोगों को राजनीति में आने का मौका मिला है, वैसे ही उम्मीदें लोग पीके की यात्रा से पाले हुए हैं। इसका उदाहरण दीजिए- एक परिवार मोतिहारी से आया हुआ है। मां मोतिहारी के कोर्ट में काम करती हैं। जब उनसे पूछा गया कि आप क्यों आई हैं तो उनका जवाब था कि बेटा पीके के साथ जुड़ा है। इसलिए वे परिवार के साथ इस यात्रा का समर्थन कर रही हैं।
कार्यक्रम में आए 45 साल के सदाब से जब सवाल किया गया है कि वे प्रशांत किशोर के साथ राजनीति में अपना भविष्य कैसे देखते हैं तो जवाब मिला-हम लोग उनसे जुड़ना चाहते हैं। उनका विचार हमारे विचार से मिलता है। केजरीवाल जैसा नेता आने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हो सकता है कि उनसे बेहतर हों।
वहां से आए नेताओं की ड्रेस में आए दिनेश इसी सवाल पर मुस्कुराते हुए कहते हैं-शाश्वत सत्य है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। आपने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में देखा होगा, पहले जब आप आगे बढ़ते हैं विरोध होता है। मजाक बनता है। जन सुराज यात्रा में पीके लोकतांत्रिक प्लेटफॉर्म की बात करते हैं। यही वजह लोगों को आकर्षित कर रही है। नेता बनने के सवाल पर कहा कि मुझे नेता नहीं बनना है।
प्रशांत के साथ दो बड़ी दिक्कत क्या है…
बिहार की राजनीति में गांधी से ज्यादा इस समय जाति का बोलबाला है। यहां वोट जाति देखकर दिया जाता है, जो जाति का समीकरण साध लिया वह यहां की राजनीति में हिट है। प्रशांत किशोर न तो पिछड़ी या अति पिछड़ी या फिर एससी से आते हैं। या फिर उस जाति से आते हैं, जिसका बिहार में, बोलबाला है।
फिर क्या वे करेंगे: इसी लिए वे युवा की बात करते हैं। विकास और समाज की बात करते हैं। गांधी के सिद्धांत की बात करते हैं ताकि लोग जाति से उठकर उनके सपोर्ट में आए हैं।
जन-सुराज से राज्य का राजनीतिक तापमान जांच रहे PK
वरिष्ठ पत्रकार संदीप झा कहते है कि प्रशांत किशोर अपने मकसद में कितना कामयाब होते हैं यह तब समझा जा सकता हैं जब वे अपने मकसद को खुल कर बताएं। उन्होंने अपने स्तर पर अभी तक यह नहीं कहा है कि चुनाव लड़ना है और लड़ कर सत्ता हासिल करना है। मुझे लगता हैं प्रशांत किशोर ये जो सारा तामझाम कर रहे हैं, इन सब का एक मात्र मकसद यही होगा कि वह दरअसल पूरे राज्य को घूम कर पूरे राज्य का मुद्दे को समझ कर अपने लिए कैडर बेस का निर्माण करना चाह रहे हैं।
इस पूरे दौर में एक तरह से राज्य में जनता के बीच अपने के लिए थर्मामीटर लगाने की कोशिश है। उसमें जो टेंपरेचर आएगा उसको रीड करके उसके बाद ही वो कोई निर्णय लेंगे कि फुल टाइम पॉलिटिशियन होना है या फिर एक प्रेशर ग्रुप की भूमिका निभानी हैं। चूंकि उनका एजेंडा खुद का अभी साफ नहीं है इसलिए यह तय नहीं हैं की उनका मकसद क्या हैं। इसमें यही निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं कि वो अभी थर्मामीटर लगा रहे हैं। उसी के आधार पर वो अपना आगे का रास्ता तय करेंगे। साथ ही एक कैडर भी तैयार करने की कोशिश है।
साथ ही एक राजनीतिक पार्टी भी तैयार करना चाह रहे हैं। ऐसे में आपके पास एक कैडर बेस होना चाहिए क्योंकि अगर बिहार की ही बात की जाए तो वहां उनके सामने चुनौतियां होंगी। अगर वे सामने आते हैं तो उन्हें RJD से मुकाबला करना हैं। जेडीयू और बीजेपी से मुकलबला करना हैं। कायदे से भाजपा पूरे तरीके से कैडर बेस पार्टी है। और ये जो दो क्षेत्रीय दल हैं, इनके भी अपने कैडर मजबूत हैं। इन्हें भी अपना कैडर तैयार करना होगा। ऐसे में उनका मकसद ऐसा ही कैडर तैयार करना है।
प्रशांत किशोर अति आत्मविश्वास से लवरेज अशांत किशोर हो गए हैं
जाने-माने चुनाव जानकार अजीत शुक्ला का कहना है कि प्रशांत किशोर को आधुनिक संसाधनों से लैस एक सफल एवं समृद्व चुनाव प्रबंधक के रूप में जाना जाता है। जिसे डाटा, परसेप्शन मैनेजमेंट और मीडिया मैनेजमेंट की अच्छी समझ है। लेकिन बिहार की राजनीति में पिछले तीन दशकों से कांग्रेस और भाजपा के अलावा मुख्य रूप से तीन ध्रुवों (लालू यादव/नीतीश कुमार /राम विलास पासवान) के इर्द -गिर्द घूमता रहा है। इन तीनों के पास अपने आधार वोट बैंक है, जिसे वो बनाए हुए हैं। उनके पिछले 3-4 वर्षों के कार्य-कलाप से पीके अति महत्वाकांक्षी एवं अति आत्मविश्वास से लवरेज अशांत किशोर जैसे प्रतीत होते हैं।
लेकिन बिहार वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जहां भाजपा, जेडीयू और राजद का जनाधार मजबूत है। जिसमें पूर्व से कई छोटी-छोटी पार्टियां अपना आधार तलाश रही हैं। जिसमें किसी नई पार्टी को संगठन, जनाधार और जमीन तैयार करने के लिए एक लंबे समय तक संघर्ष और सतत प्रयास करना पड़ता है। लेकिन उनकी जल्दबाजी वाले अंदाज से ये बेहद मुश्किल लगता है। टेक्नीशियन प्रशांत किशोर के मुताबिक मात्र 6 महीने में चुनाव लड़ा और जीता जाता है…थोड़ा असहज प्रतीत होता है। अब तक ये किसी जनाधार एवं विरासत वाले नेता के साथ कार्य करते आए हैं। अब खुद का जनाधार तैयार करने के लिए लगन के साथ मेहनत और लंबे रिश्ते की जरूरत होती है।
पहले जो नेताओं के लिए अब अपने लिए कर रहे हैं
अजीत शुक्ला कहते हैं कि 3500 किलोमीटर की यात्रा का मकसद साफ है कि अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। खुद को राजनीतिक रूप से स्थापित करना चाहते हैं। 2 अक्टूबर को शुरू की गई उनकी जन सुराज पदयात्रा जरूर एक बड़ा इवेंट मैनेजमेंट है। कुछ लोगो को ट्रैक्शन(संकर्षण) अहसास भी कराया होगा। अभी तक यह यात्रा पदयात्रा नहीं बल्कि बिहार यात्रा जैसी प्रतीत होती है। पीके जो जोर-आजमाइश और जोड़-तोड़ पिछले 9 वर्षों में राज नेताओं के लिए करते आ रहे हैं, अब खुद पर कर रहे हैं। राहुल गांधी की ‘खाट पर चर्चा’ किसान यात्रा अब तक का सबसे असफल राजनीतिक प्रयोग माना जाता है जिसके संचालन की प्रमुख भूमिका प्रशांत किशोर की थी। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अभी तक जमीन तलाश रही है। राजनीतिक गतिविधियों से प्रशांत किशोर दोनों खेमों के स्थापित राजनीतिक पक्षकारों के लिए पहेली है। ज्यादातर उन्हें भाजपा के मददगार मानते हैं तो कुछ लोग भाजपा विरोधी भी मानते हैं।
बिहार में रोजगार सृजन के लिए सामाजिक संस्थाएं चलाना एक लोकप्रिय प्रचलन है, जिससे ज्यादातर उसे खुद का व्यापार समझते हैं। उनका सामाजिक सरोकार से कम, पैसा बनाने का साधन ज्यादा मानते हैं। कुछ सामाजिक संस्थाए, रिटायर्ड अफसर एवं युवाओं इनसे जुड़े जरूर है लेकिन सभी विभिन्न दलों से भी जुड़े है। अभी प्रशांत किशोर सेलिब्रिटी से मेलमिलाप के रूप में उनके कार्यक्रमों में शरीक हो रहे हैं, लेकिन अंतिम समय तक उनकी प्रतिबद्धता नई पार्टी के लिए रहेगी?
नीतीश कुमार से उनकी मुलाकात ने ट्रस्ट डिफिसिट पैदा किया है
चुनाव जानकार शुक्ला बताते हैं कि बिहार भारत के उन राज्यों की श्रेणी आता है, जहां आमजन की राजनीतिक जागरूकता एवं सक्रियता ज्यादा है। बिहार स्वतंत्रता आंदोलन समेत कई सत्ता विरोधी आंदोलनों का केंद्र बिंदु रहा है। अभी तक जन आंदोलन, पार्टी एवं जाति विशेष से बिहार में ज्यादातर राजनीतिक प्रयोग होते आ रहे हैं। प्रशांत किशोर जदयू के साथ राजनीति की पहली पारी बतौर जदयू राष्ट्रीय उपाध्यक्ष में असफल साबित हो चुके हैं। हालिया प्रकरण में नीतीश कुमार से उनकी मुलाकात से आमजन में विश्वसनीयता कम हुई है। ट्रस्ट डिफिसिट उत्पन्न हुआ है। हालांकि मीडिया मैनेजमेंट में माहिर प्रशांत ने डैमेज कंट्रोल का पूरजोड़ प्रयास किया है। निसंदेह वे एक बेहद सधे हुए राजनीतिक रणनीतिकार हैं, लेकिन क्या डॉक्टर खुद अपना बेहतर इलाज करता है?
कई विफलताओं, विषम परिस्थितियों एवं विसंगतियों के बावजूद भी उनके सामने जो चैलेंजर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, उनकी इमेज आज भी ईमानदार और काम करने वाले नेता की है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में अगर राजद, जदयू और कांग्रेस के साथ गठबंधन एवं परिपक्व समन्वय रहता है तो प्रशांत किशोर ही नहीं भाजपा के लिए भी मजबूत चुनौती साबित होगी। अगर प्रशांत किशोर का महज तीन वर्षो में स्थापित नेता या हिट होना में बिहार के राजनीतिक जमीन पर किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।
[ad_2]
Source link