[ad_1]
Former RBI Governor Duvvuri Subbarao: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर पी सुब्बाराव ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. उन्होंने यूपीए सरकार के समय में आरबीआई पर बनने वाले दवाब को लेकर खुलासा किया है. उन्होंने यूपीए सरकार के वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम पर आरबीआई पर दवाब बनाने का खुलासा किया है. पी सुब्बाराव ने अपी किताब मं ऐसे कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने अपनी किताब में ‘जस्ट ए मर्सिनरी?: नोट्स फ्रॉम माई लाइफ एंड करियर’ में यह भी लिखा है कि प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम के वित्त मंत्री रहते समय वित्त मंत्रालय आरबीआई पर ब्याज दरें नरम करने और सरकार के पक्ष में माहौल बनाने वाले आँकड़ें जारी करने का दवाब बनाते थे. वो अपने मनमुताबिक आरबीआई की नीतियों को बदलने का दबाव भी डालते थे. सुब्बाराव ने अपनी किताब में लिखा है कि सरकार और आरबीआई दोनों में रहने के बाद मैं तनिक अधिकार से कह सकता हूं कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के महत्व पर सरकार के भीतर थोड़ी समझ और संवेदनशीलता ही है.
सितंबर, 2008 में लेहमैन ब्रदर्स संकट शुरू होने के पहले आरबीआई के गवर्नर का पदभार संभालने से पहले सुब्बाराव वित्त सचिव थे. लेहमैन ब्रदर्स के दिवालिया हो जाने से दुनियाभर में गहरा वित्तीय संकट पैदा हो गया था. सरकार आरबीआई पर दवाब बनाना चाहती थी. सरकार का दबाव नीतिगत ब्याज दर पर रिजर्व बैंक के रुख तक ही सीमित नहीं था. रिजरक्व बैंक पर इस बात के लिए भी दबाव बनाया गया कि वह मूल्यांकन के विपरीत विकास और मुद्रास्फीति के बेहतर अनुमान दिखाए. उन्होंने लिखा कि जब प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे. वित्त सचिव अरविंद मायाराम और मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने अपने अनुमानों के साथ हमारे अनुमानों का विरोध किया, जो मुझे लगा कि बहुत ज्यादा था।
सरकार के लिए ‘चीयरलीडर’ बनाने की कोशिश
इसके अलावा रिजर्व बैंक को सरकार के साथ जिम्मेदारी साझा करने के लिए उच्च वृद्धि दर और कम मुद्रास्फीति दर का अनुमान पेश करने का सुझाव दिया गया. उन्होंने एक वाकये का जिक्र करते हुए कहा कि मायाराम ने एक बैठक में यहां तक कह दिया था कि जहां दुनिया में हर जगह सरकारें और केंद्रीय बैंक सहयोग कर रहे हैं, वहीं भारत में रिजर्व बैंक बहुत अड़ियल रुख अपना रहा है. सुब्बाराव ने कहा कि वह इस मांग से हमेशा असहज और नाखुश थे कि आरबीआई को सरकार के लिए ‘चीयरलीडर’ बनना चाहिए. आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि वह इस बात को लेकर सख्त थे कि आरबीआई अपने बेहतरीन पेशेवर फैसले में सिर्फ जनता के बीच सकरात्मक भावनाए बनाने न भटके.
ब्याज दर को नरम रखने का दवाब
उन्होंने लिखा, कि मुझे इस बात से भी निराशा हुई कि वित्त मंत्रालय इन दोनों मांगों के बीच स्पष्ट असंगति पर ध्यान दिए बगैर ब्याज दर पर नरम रुख के लिए बहस करते थे. वृद्धि और मुद्रास्फीति के अनुमानों के साथ छेड़छाड़ से रिजर्व बैंक की विश्वसनीयता कम हो जाती है. उन्होंने आरबीआई के नीतिगत रुख को लेकर चिदंबरम और मुखर्जी दोनों से अनबन होने की बात मानी है. उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने हमेशा नरम दरों के लिए आरबीआई पर दबाव डालते थे, लेकिन उनकी शैली अलग थी. उन्होंने लिखा कि चिंदंबरम ने आमतौर पर वकील की तरह अपने मामले की पैरवी करते थे, जबकि प्रणव मुखर्जी एक बेहतरीन राजनेता के तौर पर अपने विचार रखते थे.
बात न मानने पर आरबीआई से असहमति
उन्होंने लिखा कि अक्टूबर, 2012 में चिदंबरम दोबारा वित्त मंत्री बने थे. वो नरम मौद्रिक व्यवस्था चाहते थे और उन्होंने आरबीआई पर ब्याज दर कम करने के लिए भारी दबाव डाला, लेकिन मैं अपने वस्तुनिष्ठ विचारों के चलते उनकी बात नहीं रख पाया. इल बात से नाखुश चिदंबरम ने सार्वजनिक रूप से रिजर्व बैंक के रुख पर अपनी कड़ी असहमति जता दी थी.
[ad_2]
Source link