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शिक्षा व्यवस्था की खामियों और प्रशासनिक लापरवाही का खुलासा

शिक्षा व्यवस्था की खामियों और प्रशासनिक लापरवाही का खुलासा |

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में एक आदिवासी छात्रावास की छात्राओं से शिक्षिका सुजाता मरके द्वारा पैरों की मालिश करवाने का वीडियो सामने आने के बाद शिक्षा व्यवस्था की गंभीर खामियां उजागर हुई हैं। यह घटना न केवल छात्राओं के साथ अमानवीय व्यवहार और शोषण का उदाहरण है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार को भी दर्शाती है।

पहले भी हो चुका था निलंबन, फिर भी दोबारा नियुक्ति

इस मामले की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि शिक्षिका सुजाता मरके पहले भी निलंबित हो चुकी थी, फिर भी उसे नियमों का उल्लंघन करते हुए ट्राइबल विभाग में प्रतिनियुक्ति दी गई। यह दर्शाता है कि संबंधित विभाग ने न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाओं की अनदेखी की, बल्कि छात्राओं की सुरक्षा और अधिकारों को भी नजरअंदाज किया। यदि पहले ही इस शिक्षिका के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाती और उसकी दोबारा नियुक्ति पर सख्त निगरानी रखी जाती, तो शायद यह घटना टाली जा सकती थी।

छात्राओं के अधिकारों का हनन और शोषण

यह घटना आदिवासी छात्राओं के शोषण और उनके अधिकारों के हनन का स्पष्ट उदाहरण है।

  1. शारीरिक और मानसिक शोषण – शिक्षिका का छात्राओं से पैरों की मालिश करवाना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह शारीरिक और मानसिक शोषण का भी मामला है।
  2. सुरक्षा और गरिमा का उल्लंघन – छात्रावास ऐसी जगह होनी चाहिए जहां छात्राएं सुरक्षित महसूस करें और उन्हें एक सम्मानजनक माहौल में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि उनके आत्मसम्मान की परवाह नहीं की जा रही है।
  3. शिक्षा की पवित्रता पर प्रश्नचिह्न – शिक्षकों का कार्य छात्रों को शिक्षित करना और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन देना होता है। लेकिन जब वही शिक्षक अपने पद का दुरुपयोग कर शोषण करने लगे, तो शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं।

प्रशासन और सरकार की जिम्मेदारी

सरकार और प्रशासन की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि –

  • इस मामले में तुरंत सख्त कार्रवाई की जाए और दोषी शिक्षिका के खिलाफ कड़े दंडात्मक कदम उठाए जाएं।
  • यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में किसी भी छात्रावास में ऐसी घटनाएं न हों।
  • इस तरह के मामलों को रोकने के लिए छात्रावासों में सख्त निगरानी प्रणाली विकसित की जाए।
  • शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति के दौरान उनके पुराने रिकॉर्ड की गहन जांच की जाए ताकि पहले से निलंबित या दागी लोगों को दोबारा नियुक्त न किया जाए।
  • आदिवासी छात्राओं की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र निगरानी तंत्र बनाया जाए।

यह घटना केवल एक शिक्षिका की गलती नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता को दर्शाती है। इससे स्पष्ट होता है कि छात्राओं की सुरक्षा और सम्मान को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के कारण ऐसी अनैतिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है। इस मामले में केवल दोषी शिक्षिका पर कार्रवाई करना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि पूरे सिस्टम की जवाबदेही तय करनी होगी ताकि भविष्य में किसी भी छात्रा को इस तरह की स्थितियों का सामना न करना पड़े

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