Pink Tax Real Cost of Gender Based Pricing: क्या कभी आपने महिलाओं और पुरुषों के उत्पादों पर ध्यान दिया है? ब्यूटी प्रोडक्ट्स हो या कपडे़, एक ही प्रोडक्ट के लिए महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा दाम चुकाना होता है. ऐसा इसलिए नहीं कि क्योंकि उनकी क्वालिटी में कोई अंतर होता है, बल्कि इसलिए क्योंकि उनपर महिलाओं के लिए अलग ठप्पा लगा होता है. इसी कथित टैग के नाम पर जाने-अजनाने में महिलाओं की जेब काट ली जाती है. इसे पिंक टैक्स कहते हैं. जिसकी दुखद बात यह है कि पिंक टैक्स महिलाओं को चुकाना पड़ता है, लेकिन 90% से ज्यादा महिलाओं को भी इस बात का पता नहीं होता कि वो ये टैक्स दे रही हैं.
क्या है Pink Tax?
ये कोई सरकारी टैक्स नहीं, बल्कि वो कीमत है जो औरतें अपने औरत होने की वजह से भर रही हैं. दरअसल अगर किसी प्रोडक्ट पर ‘फॉर वूमन’ (For Women) का टैग लगा दिया जाए तो उसकी कीमत बढ़ जाएगी. आज पिंक टैक्स ऐसा टैक्स बन चुका है, जिससे बच पाना लगभग नामुमकिन है. महिलाओं और लड़कियों के ब्यूटी प्रोडक्ट्स, कपड़े और खिलौनों तक के दाम में ये हिडेन टैक्स जुड़ा है. उदाहरण के लिए महिलाओं की क्रीम के विज्ञापन में बताया जाएगा कि उसमें हार्मफुल केमिकल्स नहीं हैं ताकि महिलाओं की त्वचा ग्लोइंग करने के साथ हमेशा जवान और मुलायम बनी रहेगी.
महिलाओं को चुपके से गरीब बना रहा ये टैक्स?
दशकों पहले किसी शोध में कहा गया कि पिंक कलर देखने-पहनने से दिमाग शांत रहता है तो बाजार ने प्रोपेगेंडा पावर के दम पर औरतों के हर प्रोडक्ट को इसी रंग से पाट दिया. सभी के मन में ये बात बिठा दी गई कि पिंक महिलाओं और ब्लू पुरुषों का रंग होता है. यही वजह है कि महिलाओं की परफ्यूम बॉटल से लेकर लड़कियों की बॉर्बी डॉल यहां तक कि नर्सरी की छात्राओं के स्कूल बैग भी पिंक हो गए. यानी जो सच है वो ये है कि पिंक टैक्स भी है, जो बहुत चुपके से महिलाओं को गरीब बना रहा है.
कैसे काम करता है ये टैक्स
इस टैक्स के दायरे में किसी खास सर्विस के लिए भी महिलाओं को ज्यादा और पुरुषों को कम पैसे देने होते हैं. उदाहरण के लिए मसाज सर्विस लें, तो सिर में तेल मालिश के लिए पुरुषों को कम और औरतों को ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे, भले ही दोनों के बाल बिल्कुल बराबर हों.
महिलाओं को सालाना एक लाख की चपत
न्यूयॉर्क के कंज्यूमर फोरम डिपार्टमेंट की एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक सैकड़ों ऐसे प्रोडक्ट्स थे जिनकी प्राइस मैचिंग में पता चला कि महिलाओं के लिये बने उत्पादों की लागत पुरुषों के लिये बनाये गए उत्पादों की तुलना में 7% अधिक होती है. पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स में ये अंतर 13% तक बढ़ जाता है. ये अंतर सिर्फ यूरोप और अमेरिका में नहीं है, भारत में भी महिलाएं प्रत्येक प्रोडक्ट्स पर ‘पिंक टैक्स’ का भुगतान कर रही हैं.
आपको इसकी कुछ और मिसालें दे तो मेकअप का सामान, नेल पेंट, लिपस्टिक, आर्टिफ़िशियल ज्वेलरी, सेनिटरी पैड समेत तमाम ऐसी चीजें हैं जो काफी महंगी हैं. इन प्रोडक्ट्स के लिए महिलाओं को प्रोडक्शन कॉस्ट और मार्केटिंग कॉस्ट मिलाने के बाद भी करीब 3 गुना ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है.
बाजार के मुनाफे के लिए बने इस कंसेप्ट पर इनवेस्टमेंट बैंक जेपीमॉर्गन चेज की स्टडी का दावा है कि पिंक टैक्स के चलते एक महिला को सालभर में औसतन 13 सौ डॉलर से ज्यादा एक्स्ट्रा देना पड़ता है, इस तरह महिलाओं को सालाना 1 लाख रुपये से ज्यादा का नुकसान होता है.
अमेरिका के कुछ हिस्सों में बैन
इस टैक्स के झोल के बारे में लोगों को तब पता चला जब कैलिफोर्निया प्रशासन ने इस गोरखधंधे का पता लगाया. वहां लॉन्ड्री सर्विस में भी ये टैक्स दिखा. जहां कपड़ों की धुलाई और प्रेस के लिए महिलाओं और पुरुषों से अलग-अलग चार्ज लिया जा रहा था. उनकी रिपोर्ट छपी तो बवाल मच गया. कई महिलाओं ने पिंक टैक्स पर एतराज जताया फिर बात निकली तो दूर तक गई, जिसके बाद यहां नियम बना कि 2023 की शुरुआत से किसी भी प्रोडक्ट पर केवल जेंडर के चलते एक्स्ट्रा चार्ज नहीं वसूला जाएगा. इससे पहले 2020 में न्यूयॉर्क सिटी में भी ऐसा ही नियम बना जिसे पिंक टैक्स रिपील एक्ट कहा गया था.
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