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नागौर के सरासनी गांव में जो स्थिति सामने आई है, वह हमारे लोकतंत्र के मौलिक अधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। रिपोर्ट के अनुसार, किसानों का शांतिपूर्ण धरना चल रहा था, जिसमें वे JSW सीमेंट कंपनी की गतिविधियों के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे थे। यह विरोध पूरी तरह से शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत था।

हालांकि, कंपनी को किसानों के इस धरने से परेशानी हो रही थी, और प्रशासन ने इस विरोध को दबाने के लिए पुलिस बल का सहारा लिया। आज पुलिस ने धरना स्थल पर पहुंचकर किसानों को हटाने के लिए लाठीचार्ज किया, जो न केवल अत्यधिक बर्बर था, बल्कि कई किसानों और महिलाओं को गंभीर रूप से घायल भी कर गया।

यह घटना यह दर्शाती है कि किस तरह बड़े उद्योगों के दबाव में प्रशासन आम जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की अनदेखी कर रहा है। शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करना भारत के संविधान द्वारा प्रदान किया गया एक बुनियादी अधिकार है। इस प्रकार का बल प्रयोग न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा पर भी प्रहार है।

आगे क्या?

  1. कानूनी कार्रवाई:
    किसान संगठनों और प्रभावित लोगों को इस मामले को अदालत तक ले जाना चाहिए। पुलिस की इस कार्रवाई की कानूनी जांच होनी चाहिए, और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की जानी चाहिए।
  2. संघर्ष का विस्तार:
    किसानों को संगठित होकर अपने आंदोलन को राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक ले जाना चाहिए। इससे सरकार और जनता का ध्यान इस मामले की ओर जाएगा।
  3. संवाद का रास्ता:
    सरकार और प्रशासन को किसानों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए। उनकी समस्याओं और मांगों को समझकर समाधान निकालने की पहल करनी चाहिए।
  4. जन समर्थन जुटाना:
    यह मामला केवल एक गांव या कुछ किसानों तक सीमित नहीं है। ऐसे संघर्ष हर क्षेत्र में होते हैं। किसानों को अपनी लड़ाई में जन समर्थन जुटाने के लिए सामाजिक संगठनों और मीडिया का सहारा लेना चाहिए।
  5. सत्ता से सवाल:
    यह भी महत्वपूर्ण है कि जनता और सिविल सोसायटी सरकार से सवाल पूछे कि क्यों उद्योगपतियों के हित आम जनता के अधिकारों से ऊपर रखे जा रहे हैं।

इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें संगठित, सतर्क और सक्रिय रहना होगा। यह संघर्ष न केवल उनके हक की लड़ाई है, बल्कि यह लोकतंत्र और न्याय की रक्षा के लिए भी जरूरी है।