Home Bihar महानायक वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव के लिए भोजपुर तैयार: 80 साल की उम्र में 15 लड़ाइयां लड़ी थी, खुद से हाथ को तलवार से काटा था

महानायक वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव के लिए भोजपुर तैयार: 80 साल की उम्र में 15 लड़ाइयां लड़ी थी, खुद से हाथ को तलवार से काटा था

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महानायक वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव के लिए भोजपुर तैयार: 80 साल की उम्र में 15 लड़ाइयां लड़ी थी, खुद से हाथ को तलवार से काटा था

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भोजपुर23 मिनट पहले

बिहार का भोजपुर जिला महानायक वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव के लिए तैयार है। 23 अप्रैल को जिले के जगदीशपुर में बाबू वीर कुंवर सिंह का विजयोत्सव मनाया जा रहा है। इस दौरान भारत के गृह मंत्री अमित शाह भी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। वीर कुंवर सिंह ने 80 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ 15 लड़ाइयां लड़ी थी। उन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान खुद अपने तलवार से ही एक हाथ काटकर गंगा में डाल दिया था। दरअसल, उनके बाजू में गोली लग गई थी।

पेंटिंग में आसन पर बैठे हुए वीर कुंवर सिंह।

पेंटिंग में आसन पर बैठे हुए वीर कुंवर सिंह।

घोड़ा दौड़ाने का बचपन से था शौक

भोजपुरी शेर बाबू वीर कुंवर सिंह के पिता बाबू साहबजादा सिंह उज्जैनिया क्षत्रियों के वंशज थे। कुंवर सिंह की माता का नाम पंचरत्न कुंवर था। जगदीशपुर गांव के लोग ऐसा बताते है कि कुंवर सिंह बचपन से ही वीर थे। बंदूक चलाने और घोड़ा दौड़ाने का नशा उनको बचपन से ही सवार था। वह छुरी-भाला और कटारी चलाने का भी अभ्यास करते रहते थे।

आरा शहर में वीर कुंवर सिंह की लगी हुई प्रतिमा।

आरा शहर में वीर कुंवर सिंह की लगी हुई प्रतिमा।

कम साधन के बावजूद अंग्रेज को चटाया धूल

साल 1857 के विद्रोही नेताओं में युद्ध विद्या की कला की योग्यता रखने वाले कुंवर सिंह से बढ़कर कोई नेता नहीं था। कुंवर सिंह ने छोटी सी सेना और बहुत कम साधन के बलबूते ही अपनी मिट्टी की रक्षा की थी। 80 साल की उम्र में जिस तरीके से वह तलवार चलते थे कि उसका लोहा अंग्रेज भी मानते थे। 1857 के नवंबर महीने में कानपुर की एक क्रांतिकारी युद्ध में बाबू कुंवर सिंह की एक महती भूमिका रही थी।

इस दौरान इन्होंने तात्या टोपे, नवाब अली बहादुर, नवाब तफच्चुल हुसेन और राय साहब पेशवा के अधीन फिरंगियों से लोहा लिया था। इस वीर महानायक ने 26 मार्च 1858 को आजमगढ़ पर पूर्ण रूप से कब्जा कर लिया था। जिसकी गाथा सुनकर आज भी युवाओं में एक अनूठी ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।

स्थानीय लोगों के बीच भी काफी लोकप्रिय थे वीर कुंवर सिंह।

स्थानीय लोगों के बीच भी काफी लोकप्रिय थे वीर कुंवर सिंह।

ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने कुंवर की वीरता का किया है बखान

27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा जमा लिया था। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र था। ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने बाबू वीर कुंवर सिंह बारे में लिखा है कि ‘उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र 80 के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।’

जगदीशपुर किले से अंग्रेजों का झंडा उतारा था।

जगदीशपुर किले से अंग्रेजों का झंडा उतारा था।

मेजर ने जगदीशपुर पर किया कब्जा

2 अगस्त 1857 को मेजर आयर से सेना की भिड़ंत आरा के बीबीगंज के निकट हो गई। इस युद्ध में बाबू कुंवर सिंह के पास सीमित सेना थी। सीमित सेना होने के बाद भी बाबू कुंवर युद्ध से पीछे नहीं भागे और युद्ध किया। लेकिन, सीमित सेना होने के कारण इस युद्ध में शिकस्त मिली। कुंवर सिंह स्त्रियों और सैनिकों के साथ महल से निकल गए। जिसके बाद मेजर आयर का जगदीशपुर पर कब्जा हो गया।

हाथ को काट दिया था

20 अप्रैल 1858 को आजमगढ़ पर कब्जे के बाद रात में कुंवर सिंह बलिया के मनियर गांव पहुंचे थे। 22 अप्रैल को सूर्योदय की बेला में शिवपुर घाट बलिया से एक नाव पर सवार हो गंगा पार करने लगे। इस दौरान अंग्रेजों की गोली उनके बांह में लग गई। इसके बाद उन्होंने यह कहते हुए कि ‘लो गंगा माई! तेरी यही इच्छा है तो’ खुद ही बांए हाथ से तलवार उठाकर उस झूलती हाथ को काट गंगा में प्रवाहित कर दिया था। उस दिन बुरी तरह घायल हो गए थे।

लेकिन कुंवर सिंह ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई। जगदीशपुर किले से “यूनियन जैक” नाम का झंडा उतार कर ही दम लिया। हालांकि, बाद में वे अपने हाथ के गहरे जख्म को सहन नहीं कर पाए। अगले ही दिन 26 अप्रैल 1858 को वे मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे।

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