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भागलपुरएक घंटा पहले
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छउ नृत्य करते कलाकार। इसमें युद्ध के थीम काे दिखाया गया है। फाइल फाेटाे
पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और झारखंड की लोक नृत्य कला छऊ का भागलपुर में भी प्रशिक्षण केंद्र खुलेगा। मुख्य रूप से युद्ध और आखेट पर आधारित यह लोक नृत्य कला बिहार के पड़ोसी राज्यों की पहचान रही है। संगीत नाटक अकादमी ने इसके कई केंद्र खोले हैं जो असम, केरल और मणिपुर में भी हैं। भागलपुर के रहने वाले और छऊ नृत्य प्रशिक्षण केंद्र चंदनक्यारी के समन्वयक तथा संगीत नाटक अकादमी के एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य डॉ. संजय कुमार इस लोक नृत्य कला को भागलपुर लाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भागलपुर में इसके लिए केंद्र बन सके, इसके लिए वह प्रयास करेंगे। चंदनक्यारी में 2008 में छऊ प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई थी। भागलपुर में भी ऐसी शुरुआत करने के लिए राज्य और केन्द्र सरकार से बात की जाएगी। कलाकारों का वर्कशॉप किया जाएगा।
युद्ध की शैली पर आधारित है यह कला
कलिंग युद्ध के समय हुई थी शुरुआत
उन्होंने कहा कि छऊ नृत्य कला की कई विधाएं हैं। मानभूम छऊ काे 2010 में यूनेस्को ने विरासत का दर्जा दिया था। इस नृत्य कला की शुरुआत कलिंग युद्ध में हुई थी। बाद में इसका विस्तार मयूरभंज, पुरुलिया व सरायकेला के राज परिवारों में भी हुआ। ग्रामीणों की रक्षा के लिए इसे युद्ध की शैली के रूप में विकसित किया गया जिसने बाद में छऊ का रूप लिया। सरायकेला का छऊ शास्त्रीयता पर आधारित है।
मयूरभंज की शैली आखेट या याेद्धा पर आधारित है। जबकि बंगाल की कला में आंचलिकता पर जोर दिया गया है। इसमें महिषासुर मर्दिनी, भगवान कृष्ण की लीलाओं और अभिमन्यु वध को दर्शाया जाता है। सरायकेला की कला चंद्रभागा राग में है। मयूरभंज की शैली में मुखाैटे का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसकी जगह चेहरे को रंगा जाता है। सरायकेला की शैली में मुखाैटा होता है। मानभूम शैली में मुखाैटे पर मुकुट होता है। भागलपुर में भी जब इस नृत्य कला की शुरुआत होगी तो कौन सी शैली अपनाई जाए, यह भी तय किया जाएगा।
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