पुणे में शराबी रईसजादों का आतंक – पैसे, सत्ता और राजनीति का खुला संरक्षण!
पुणे: शहर के अमीर परिवारों के बिगड़ैल और नशे में धुत्त बेटे अब इसे अपना निजी आतंक का अड्डा बना चुके हैं। अपने बाप-दादाओं की दौलत और राजनीतिक पहुंच के दम पर ये खुद को कानून से ऊपर समझते हैं। महंगी गाड़ियों में तेज रफ्तार से दौड़ते, आम नागरिकों को धमकाते और सार्वजनिक जगहों पर हुड़दंग मचाते ये लोग बेखौफ घूम रहे हैं।
मानसिकता: “हमें कोई नहीं रोक सकता!”
इनका रवैया साफ है –
“हम जो चाहें कर सकते हैं। हमारे पैसे से आज़ादी खरीदी जा सकती है। कानून हमारे पैरों की चप्पल है।”
और क्यों न हो? हर बार जब ये अपराध करते हैं – चाहे वो तेज रफ्तार से लोगों की जान लेना हो, महिलाओं से बदसलूकी हो, या शहर में हंगामा करना हो – प्रभावशाली नेता और ताकतवर परिवार तुरंत मामले को दबा देते हैं या इतना लंबा खींचते हैं कि जनता का गुस्सा ठंडा पड़ जाए।
नतीजा: बेलगाम गुंडागर्दी और आम जनता की असुरक्षा
- अहंकार और गुंडागर्दी लगातार बढ़ रही है।
- निर्दोष लोग पीड़ित हो रहे हैं, लेकिन अपराधियों पर कोई असर नहीं।
- कानून दो तरह से काम कर रहा है – एक अमीरों के लिए, और दूसरा आम जनता के लिए।
क्या ये सिर्फ कानून-व्यवस्था की विफलता है?
नहीं, यह पैसे और राजनीतिक ताकत के दम पर अपराधियों को ‘अछूत’ बना देने की सच्चाई है।
अब सवाल ये है – और कितनी जिंदगियां तबाह होंगी, जब तक यह तंत्र जागेगा? या यह कभी जगेगा भी नहीं?