भारत में असली मुद्दों से भटकाव, लोकतंत्र पर मंडरा रहा खतरा?

नई दिल्ली: भारत में जहां बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और लोकतंत्र की स्थिति गंभीर बनी हुई है, वहीं राजनीतिक और सांप्रदायिक बहसें सुर्खियों में बनी रहती हैं। हाल ही में सर्बिया समेत कई देशों में नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा और भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतरे, लेकिन भारत में राजनीतिक विमर्श का केंद्र ऐतिहासिक व्यक्तित्वों, धार्मिक विवादों और सांप्रदायिक मुद्दों तक सीमित नजर आ रहा है।

ध्यान भटकाने की राजनीति जारी?

विशेषज्ञों का मानना है कि मीडिया और राजनीतिक बयानबाजी के जरिए असली मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं।

  • मीडिया की भूमिका: प्रमुख समाचार चैनलों पर आर्थिक संकट, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विषयों के बजाय सांप्रदायिक और विवादित मुद्दों पर बहस को प्राथमिकता दी जा रही है।
  • सोशल मीडिया पर नैरेटिव सेट करना: आईटी सेल्स और संगठित प्रचार तंत्र के माध्यम से जनमत को एक खास दिशा में मोड़ने की कोशिशें हो रही हैं।
  • राजनीतिक बयानबाजी: प्रमुख नेता भड़काऊ और विभाजनकारी बयान देकर जनता का ध्यान महत्वपूर्ण मुद्दों से हटाने में सफल हो रहे हैं।

लोकतंत्र पर बढ़ता दबाव

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय लोकतंत्र को लेकर कई सवाल उठे हैं।

  • संस्थानों पर प्रभाव: न्यायपालिका और स्वतंत्र एजेंसियों की निष्पक्षता को लेकर बहस तेज हुई है।
  • विपक्ष पर शिकंजा: केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है।
  • मीडिया स्वतंत्रता पर संकट: कई पत्रकारों पर हमले हुए हैं और स्वतंत्र पत्रकारिता पर अंकुश लगाने की कोशिशें जारी हैं।

क्या जनता जागरूक हो रही है?

हालांकि सोशल मीडिया और स्वतंत्र मीडिया के जरिए कुछ तबकों में जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन बड़े स्तर पर जनता अभी भी मुख्यधारा की मीडिया के नैरेटिव से प्रभावित नजर आती है।

  • युवाओं की भूमिका: रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर युवा वर्ग मुखर हो रहा है, लेकिन इन आंदोलनों को दबाने के लिए अन्य विवादित विषय उछाल दिए जाते हैं।
  • विरोध प्रदर्शन पर सख्ती: हाल के वर्षों में सरकार विरोधी प्रदर्शनों को या तो हिंसक बताकर बदनाम किया गया या फिर सख्त कानूनों के जरिए रोका गया।

आगे की राह

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर भारत में लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखना है, तो जनता को असली मुद्दों पर ध्यान देना होगा।

  • मजबूत स्वतंत्र मीडिया: सरकार-नियंत्रित नैरेटिव से बचने के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता को समर्थन देना जरूरी है।
  • युवाओं की सक्रियता: रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर युवाओं को संगठित होकर आवाज उठानी होगी।
  • राजनीतिक सुधार: पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ईमानदार नेतृत्व को बढ़ावा देना होगा।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। जब तक जनता असली मुद्दों को प्राथमिकता नहीं देगी, तब तक लोकतांत्रिक मूल्यों पर संकट गहराता रहेगा।